Lok sabha Election 2019 : वृद्धा आश्रम की चर्चा, मतदान के दिन बनता था घर-घर में पकवान

चेहरे पर उम्र से झांकती झुर्रियां आंखों में दर्द लिए जब रामकली अम्मा से देश के पहले चुनाव पर मतदान की चर्चा हुई तो उनकी सूनी आंखों में चमक आ गई।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 02 Apr 2019 09:01 PM (IST) Updated:Wed, 03 Apr 2019 08:50 AM (IST)
Lok sabha Election 2019 : वृद्धा आश्रम की चर्चा, मतदान के दिन बनता था घर-घर में पकवान
Lok sabha Election 2019 : वृद्धा आश्रम की चर्चा, मतदान के दिन बनता था घर-घर में पकवान

वाराणसी [वंदना सिंह]। चेहरे पर उम्र से झांकती झुर्रियां, आंखों में दर्द लिए जब रामकली अम्मा से देश के पहले चुनाव पर मतदान की चर्चा हुई तो उनकी सूनी आंखों में चमक आ गई। दुर्गाकुंड वृद्धाश्रम में कई वर्षों से रह रही उड़ीसा की 92 वर्षीय रामकली देवी अचानक चहकती हुई बोलीं हम गए थे पहले चुनाव में पति के साथ जवाहिर भइया को वोट देने। उस दिन खूब सुंदर साड़ी पहनी थी। हंसते हुए बोलीं बनारसी था बिटिया-उन्होंने- कहा था यही पहनकर चलो। रामकली देवी के पति का लगभग 30 साल पहले देहांत हो गया। उनकी एक लड़की है जो अपने ससुराल कलकत्ता में रहती है। पति चार भाई थे और अब कोई नहीं बचा। रामकली देवी काशी प्रवास को आईं और फिर वृद्धाश्रम में रहने लगीं।

भूली बिसरी, धुंधली यादों में झांकते हुए रामकली बताती हैं कि पहला चुनाव जब था तो हमारे पूरे मुहल्ले में पकवान की सुगंध आ रही थी। हर घर से लोग सजधजकर बाहर निकल रहे थे। हमारे यहां भी हलवा, पूड़ी और सब्जी बनी थी। हमें लग रहा था कोई त्योहार है। नेता का नाम भुला गया है फिर बोली हां, जवाहिर भइया को दिए थे वोट। बहुत अच्छा लग रहा था कि अंग्रेज चले गए और अपने पसंद का राजा चुनेंगे। हल्का हल्का याद है उस समय लोग कहते थे कि अब सब अच्छा होगा, देश में धन आएगा, भारत आगे बढ़ेगा। यहां की जनता खुश रहेगी। मगर तब से आज दुनिया बदल गई है।

इतनी उम्र बीत गई दुनिया बदलती गई और मैं उसका हिस्सा रही तो समझ सकती हूं वाकई तब से आज में भारत कितना बदल गया। बच्चों के पास बड़ों के लिए वक्त नहीं, अब थोड़ी सी नोकझोक में गोली चल जाती है, खाने में जहर मिलाया जाता है। कुल मिलाकर कहा जाए तो अत्याचार अब अपने कर रहे हैं और पहले अंग्रेज करते थे। 

नेहरु चाचा के लिए सब मानती थीं कमला : दुर्गाकुंड वृद्धाश्रम में कोलकाता की कमला देवी जिनकी उम्र लगभग 84 वर्ष है उन्होंने आजादी के बाद के  पहले चुनाव में अपनी मां और पिताजी को वोट देते देखा था। उम्र के इस पायदान पर भी कमला देवी की याददाश्त कमाल की थी। हालांकि शरीर से थोड़ी लाचार जरूर थीं उनकी आवाज उतनी साफ नहीं रह गई थी मगर खुशी से चहकते हुए उन्होंने बताया मैं करीब 13-14 साल की थी। जिस दिन मां पिताजी वोट देने जा रहे थे हमें घर में बंद करके गए बोला कहीं बाहर मत जाना वोट देने जा रहे हैं अपने राजा को चुनने। हम लोग बहुत खुश थे उस वक्त मेरी मां कहती थीं कि अगर बात नहीं सुनोगी तो नेहरु जी को वोट नहीं दूंगी। मैं झट से उनकी बात मान जाती थी। हमारे यहां रसगुल्ला बना था मैंने जमकर खाया था। नए कपड़े पहने थे। उस दिन का माहौल ही अलग था। हमारे बड़ों ने कहा आज देश का सूरज कुछ अलग ही लग रहा है। कक्षा चार तक पढ़ी कमला देवी बताती हैं मेरा ससुराल कोलकाता दमदम नागोरी बाल झील में था। पति रायफल फैक्ट्री में काम करते थे। उस समय कुछ बाहरी आक्रमणकारी आए थे जो कोलकाता पर दखल करना चाहते थे। वे लोग बम फेंकते थे तो रायफल फैक्ट्री के पहरेदार लोगों को बम से बचने के लिए टेबल के नीचे छिपने के साथ ही अन्य उपाय बताते थे।

कमला देवी की दो बेटियां हैं जो अपने अपने ससुराल में हैं। वर्ष 2016 में कमला अपने पति के साथ मोक्ष प्राप्ति के लिए काशी आईं थीं। इसके बाद पति का देहांत हो गया और वह बेटियों के ससुराल जाकर नहीं रहना चाहती थीं क्योंकि उनके यहां ऐसा करना अच्छा नहीं माना जाता था। इसलिए वह वृद्धाश्रम में रहने लगीं। कमला बताती हैं अंग्रेजों के जाने के बाद इतनी आजादी हो गई कि हम लोग आराम से फिल्में देखने जाते थे। कोई पाबंदी नहीं थी। फिल्में देखने की शौकीन कमला राजनीति के बारे में भी अच्छी पैठ रखती हैं। रेडियो और टीवी के जरिए वह हर नेता को जानती हैं। किसने मां के पैर छूटकर देश की राह पकड़ी तो किसने गंगा स्नान किया। कमला का वोटर कार्ड नहीं है लेकिन इससे पहले उन्होंने लगभग हर चुनाव में अपने मत का प्रयोग किया और आज भी वह कहती हैं कि जनता वोट जरूर करे सही  नेता चुने ताकि देश आजाद रहे क्योंकि आज तो घर में ही लड़ाइयां शुरू हो चुकी हैं। उनका कहना है कि जो देश और जनता हित की सोचे, गरीब तक खुद जाए उसे चुनो।

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