MP Election 2018 : 40 बूथ जहां पहुंचने में लगते हैं दो घंटे, चुनाव कराना भी मुश्किल

MP Election 2018: महू विधानसभा क्षेत्र में न केवल जनता तक पहुंचना, बल्कि प्रशासनिक अमले के लिए चुनाव कराना भी पहाड़-सा लगता है।

By Prashant PandeyEdited By: Publish:Tue, 27 Nov 2018 03:57 PM (IST) Updated:Tue, 27 Nov 2018 03:57 PM (IST)
MP Election 2018 : 40 बूथ जहां पहुंचने में लगते हैं दो घंटे, चुनाव कराना भी मुश्किल
MP Election 2018 : 40 बूथ जहां पहुंचने में लगते हैं दो घंटे, चुनाव कराना भी मुश्किल

इंदौर, जितेंद्र यादव। पहाड़ों के बीच सैकड़ों फीट नीचे चोरल नदी किनारे केकड़िया डाबरी में रहने वाले 65 वर्षीय विश्राम हों या लोधिया गांव के भेरूसिंह या तुलसीराम, सबकी एक ही पीड़ा है- गांवों में खेतों के लिए पानी नहीं है। गांव तक का पहुंच मार्ग अब भी खराब है। बेका और गोकल्याकुंड के तालाब मंजूर तो हुए लेकिन उनमें वादों और घोषणाओं का पानी अब तक ठहरा हुआ है। ये तालाब धरातल पर नहीं आ पाए। कुलथाना, उतेड़िया, कोपरबेल, भाट्याखेड़ा हो या इमलीपुरा, हर जगह जिंदगी दुर्गम राह पर है। शायद इसीलिए यहां विधानसभा चुनाव के एक दिन पहले तक भी उम्मीदवार नहीं पहुंच पाए। पहुंचे हैं तो उनके इक्का-दुक्का कार्यकर्ता अपने नेता का संदेश लेकर।

भौगोलिक रूप से दूर-दूर तक फैले महू विधानसभा क्षेत्र में न केवल जनता तक पहुंचना, बल्कि प्रशासनिक अमले के लिए चुनाव कराना भी पहाड़-सा लगता है। क्षेत्र के लगभग 40 मतदान केंद्र ऐसे हैं, जहां पहुंचना मुश्किल काम होता है। पोलिंग पार्टी को इन केंद्रों पर पहुंचने में डेढ़-दो घंटे लगते हैं। सोमवार को नईदुनिया ने इसी ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाके की खाक छानी।

यहां के मतदान केंद्रों पर बिजली तक नहीं है। सोमवार को जिम्मेदार कर्मचारी बिजली की फिटिंग करवा रहे थे। पानी के इंतजाम के लिए गांव के लोगों से मिल रहे थे। रिटर्निंग अधिकारी प्रतुल सिन्हा बताते हैं कि मतदान केंद्रों के लिए हम काफी पहले से तैयारी करना शुरू कर देते हैं, जिससे वहां की समस्याओं को पहले से दूर कर लिया जाए। ये केंद्र दूर जरूर हैं लेकिन मतदान दलों को दिक्कत नहीं आएगी।

तालाब बने तो सैकड़ों एकड़ में होगी सिंचाई

भेरूसिंह बताते हैं कि वर्षों से मांग करने के बाद लोधिया से चोरल तक की कच्ची सड़क बनी लेकिन दो पुलिया अब भी छोड़ दी है। पितांबरी से ऊपर झर में तालाब बन जाए तो इससे लोधिया की नदी तो जिंदा होगी ही, करोंदिया, भगोरा, आंबाचंदन, बागोदा की सैकड़ों एकड़ जमीन भी सिंचित हो जाएगी। सालों से मांग करने के बाद भी किसी नेता का ध्यान नहीं है। सातारूंडी के परमानंद कहते हैं कि सरकार ने हमारे खेतों के लिए किसी योजना में सिंचाई का पानी नहीं दिया। हम तीन-चार किसान ही मिलजुल कर सैकड़ों फीट नीचे से चोरल नदी से पाइप लाइन करके पानी लाए। रेलवे लाइन बीच में होने से रेलवे को भी 1.90 लाख स्र्पए चुकाने पड़े।  

chat bot
आपका साथी