निगरानी के दायरे में चुनावी घोषणा पत्र, पहली बार ‘थ्री टियर सेफ्टी’ व्यवहार में लाने की कोशिश

घोषणा पत्र को लेकर यह ‘थ्री टियर सेफ्टी’ पहली बार व्यवहार में लाने की कोशिश की जा रही है, इसलिए इसके इतिहास से लेकर वर्तमान और भविष्य पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए।

By Arti YadavEdited By: Publish:Sun, 21 Oct 2018 11:43 AM (IST) Updated:Sun, 21 Oct 2018 11:43 AM (IST)
निगरानी के दायरे में चुनावी घोषणा पत्र, पहली बार ‘थ्री टियर सेफ्टी’ व्यवहार में लाने की कोशिश
निगरानी के दायरे में चुनावी घोषणा पत्र, पहली बार ‘थ्री टियर सेफ्टी’ व्यवहार में लाने की कोशिश

मध्य प्रदेश, आशीष व्यास। मध्य प्रदेश में चुनाव सिरहाने खड़ा है। दावों-वादों की वजनदार वजहों के साथ, आश्वासनों की एक लंबी सूची लेकर राजनीतिक दल फिर आमने-सामने हैं। कई तर्क हैं, कोई किए काम का ब्योरा दे रहा है, कोई भावी योजनाओं का क्रियान्वयन बता रहा है। इसी माहौल के बीच अब घोषणा पत्र भी ‘जन-मंच’ पर लाने की तैयारी की जा रही है। माना जाता है कि चुनावी वादों से भरे घोषणा पत्रों को अभी तक राजनीतिक दलों ने न तो जिम्मेदारीपूर्वक गढ़ा और न ही जनता ने इसे गंभीरता से लिया है, क्योंकि इसमें दर्ज कई दावे-वादे जमीन पर उतरने से कतराते रहे हैं। लेकिन इस बार चुनाव आयोग की सख्ती ने अर्थ खो चुके इस शब्द को नए सिरे से तराशने का काम सौंप दिया है।

भारत निर्वाचन आयोग के आदेश का हवाला देते हुए मध्य प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी वीएल कांताराव सभी दलों से कह चुके हैं कि ‘चुनाव घोषणा पत्र जारी होने के तीन दिन के भीतर इसे चुनाव आयोग कार्यालय में जमा करवा दें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसमें ऐसा कोई वादा नहीं हो, जिसे वह पूरा नहीं कर सकें।’ यही नहीं अब इसकी तीन प्रतियां भी देनी होंगी, ताकि घोषणाओं का रिकॉर्ड रखा जा सके। परीक्षण के बाद मुख्य निर्वाचन अधिकारी इसे केंद्रीय चुनाव आयोग को भेजेंगे।

घोषणा पत्र को लेकर यह ‘थ्री टियर सेफ्टी’ पहली बार व्यवहार में लाने की कोशिश की जा रही है, इसलिए इसके इतिहास से लेकर वर्तमान और भविष्य पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए। इसी क्रम में यह जानना भी रोचक है कि घोषणा पत्र (मैनिफेस्टो) शब्द का प्रयोग पहली बार कब कैसे किया गया था। शुरुआत करते हैं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा तैयार किए गए घोषणा पत्र से। यह आजादी से पहले जारी महत्वपूर्ण घोषणा पत्रों में से एक माना जाता है। मध्य प्रदेश के लिए यह इसलिए भी महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक है, क्योंकि बिस्मिल का पैतृक गांव मुरैना के पास बरवाई है। ‘मैनपुरी- कांड’ के बाद बिस्मिल भी तीन महीने से ज्यादा समय यहां अज्ञातवास में रहे थे।

आजादी के आंदोलन के गौरवशाली इतिहास में दर्ज क्रांतिकारी बिस्मिल द्वारा गठित क्रांतिकारी पार्टी के घोषणा पत्र का एक अंश इस प्रकार है- मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण बंद किया जाए, समान पूंजी का वितरण होगा, सौदों की राजनीति से दूर रहेंगे, सभी क्रांतिकारी इसके सदस्य होंगे, राष्ट्रवादी संविधान हो, अंतरराष्ट्रीय सौहार्द स्थापित करेंगे।

एक जनवरी 1924 को किसी गुमनाम स्थान से प्रकाशित करवाकर इस चार पेज के पर्चे को 28 से 31 जनवरी 1924 के बीच हिंदुस्तान के सभी प्रमुख स्थानों पर बंटवाया गया था। बिस्मिल पर चार पुस्तकें लिख चुके मुरैना के साहित्यकार प्रहलाद भक्त बताते हैं- ‘बिस्मिल की आत्मकथा लिखते समय जो शोध किया था, उस समय पता चला था कि उन्होंने 21 बिंदुओं का घोषणा पत्र भी बनाया था। विजय कुमार के छद्म नाम से अपने दल की विचारधारा का लिखित रूप से खुलासा करते हुए उन्होंने साफ शब्दों में घोषित किया था कि क्रांतिकारी इस देश की शासन व्यवस्था में किस तरह का बदलाव चाहते हैं और इसके लिए वे क्या-क्या कर सकते हैं। क्या आज इतनी स्पष्टता और गंभीरता का पालन किया जा रहा है?

दरअसल मैनिफेस्टो इटली का शब्द है जो लैटिन के ‘मैनी फेस्टम’ से निकला है। इसका अर्थ जनता के ‘सिद्धांत और इरादे’ से जुड़ा हुआ है, लेकिन धीरे-धीरे यह राजनीतिक दलों से जुड़ता चला गया। इसीलिए राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र एक समय के बाद अब विवाद का विषय बनते हैं। राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय दल हों या केवल चर्चा में बने रहने वाले निर्दलीय या बागी, अधिकतर के दस्तावेज में दर्ज होते हैं लोकलुभावने आश्वासन और मुश्किल या आधे-अधूरे ढंग से पूरे हो सकने वाले वादे।

बड़े आयोजन-उत्सव के माध्यम से इन्हें सार्वजनिक किया जाता है, बुनियादी बदलाव से लेकर अत्याधुनिक सुविधाओं के सपनों को सच की तरह सामने भी रखा जाता है। छोटी-बड़ी आम सभाओं में बार-बार इन्हें दोहराया जाता है। आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भी सभी दल फिर सक्रिय हैं। भाजपा की घोषणा पत्र समिति के संयोजक विक्रम वर्मा कहते हैं- ‘घोषणा पत्र को लेकर हमने 12 से 15 समूह बनाए थे। इन्होंने जिलों में जाकर अलग-अलग वर्ग से सुझाव मांगे। करीब तीन हजार सुझावों का अध्ययन कर कुछ बिंदुओं को शामिल किया है।’उधर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता एक नई स्थापना गढ़ रहे हैं- ‘हम इस बार घोषणा नहीं ‘वचन-पत्र’ ला रहे हैं। इसीलिए इसमें सिर्फ पूरे होने वाले वादे ही इसका हिस्सा होंगे!’ गंभीर तैयारी के ऐसे दावों के बीच सवाल फिर वही है, चुनाव के बाद यह घोषणा पत्र कब-कैसे और कितना पूरा होगा या क्या यह भी जीते प्रत्याशी की तरह ही मतलब-मुहावरों में बदल जाएगा? इसमें आश्चर्य इसलिए नहीं है कि निगरानी की कोई व्यवस्था अभी है ही नहीं।

वर्ष 2012 में सूचना के अधिकार के तहत एक सामाजिक कार्यकर्ता ने निर्वाचन आयोग से पूछा था, ‘राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणा पत्रों की उपयोगिता, वादे नहीं निभाने की स्थिति में कार्रवाई और मतदाताओं को भ्रमित करने पर की जाने वाली कार्रवाई के बारे में बताएं?’ तब चुनाव आयोग ने जवाब दिया था कि आयोग इस तरह की जानकारी का संग्रह नहीं करता है और न ही आयोग को यह पता है कि यह जानकारी कहां से उपलब्ध होगी। बहरहाल ऐसे सवालों का जवाब उस समय भले ही न मिला हो, लेकिन लगता है कि चुनाव आयोग ने अब इसकी निगरानी शुरू कर दी है! उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार जवाबदेह जनप्रतिनिधि, जिम्मेदारी से साथ ही अपनी घोषणाओं को ‘परंपरागत-पत्र’ बनाने से परहेज करेंगे!

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