...तो क्या इस बार महिला उम्मीदवार को मिलेगा गाजियाबाद का प्रतिनिधित्व

गाजियाबाद में सिर्फ मतदाता ही नहीं महिलाओं को बराबरी का ओहदा देने का दम भरने वाले सियासी दलों ने भी आधी आबादी पर भरोसा जताने से कन्नी काटी है।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Sun, 17 Mar 2019 05:51 PM (IST) Updated:Sun, 17 Mar 2019 05:51 PM (IST)
...तो क्या इस बार महिला उम्मीदवार को मिलेगा गाजियाबाद का प्रतिनिधित्व
...तो क्या इस बार महिला उम्मीदवार को मिलेगा गाजियाबाद का प्रतिनिधित्व

गाजियाबाद [मनीष शर्मा]। लोकतंत्र के महायज्ञ में आधी आबादी की आहुतियां बराबर की होंगी, लेकिन गाजियाबाद में इनका सियासी अफसाना पहले आम चुनाव से अभी तक अधूरा ही रहा। आजादी के बाद से अभी तक लोकसभा के 17 चुनाव हो चुके हैं और अट्ठारहवीं बार चुनावी वेदी सज चुकी है। इन अंतराल में गाजियाबाद लोकसभा ने महज एक बार महिला को अपने प्रतिनिधित्व का जिम्मा सौंपा। सिर्फ मतदाता ही नहीं, महिलाओं को बराबरी का ओहदा देने का दम भरने वाले सियासी दलों ने भी आधी आबादी पर भरोसा जताने से कन्नी काटी है। सबसे हैरतजनक बात यह है कि ऐसा तब है जबकि गाजियाबाद में महिलाओं का वोट प्रतिशत लगभग पुरुषों के बराबर है।

गाजियाबाद में महिलाएं आपको लंबी-लंबी कारों के साथ-साथ बड़े-बड़े बिजनेस तक चलाती दिख जाएंगी। इन सबसे इतर बात जब सियासत की आती है तो यहां भी अच्छी खासी संख्या में महिला जगत की उपस्थिति है, लेकिन चुनाव लड़ने-लड़ाने के मोर्चे पर सारे समीकरण धरे के धरे दिखते हैं। इतिहास के पन्ने जरा पलटें तो पता चलता है कि वर्ष 1951 में हुए आम चुनाव में मेरठ जिला दक्षिणी के नाम से जानी जाने वाली गाजियाबाद लोकसभा से पांच प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें एक महिला, सरोजनी देवी, बतौर निर्दलीय उम्मीदवार थीं।

करीब 185764 में से महज 8471 वोट ही सरोजनी देवी को मिल सके थे। पिछले लोकसभा चुनाव में महिला प्रत्याशी ही नहीं थी। गाजियाबाद के इतिहास में 1962 का लोकसभा चुनाव जरूर क्रांतिकारी रहा। इस चुनाव में कांग्रेस ने न सिर्फ कमला चौधरी को उम्मीदवार बनाया, बल्कि गाजियाबाद के जनमानस ने भी विश्वास जताया। कमला चौधरी 81999 मत पाकर जीत हासिल की। हालांकि 1967 के अगले चुनाव में कांग्रेस ने तो कमला चौधरी को ही टिकट दिया, लेकिन गाजियाबाद के वोटरों ने नकार दिया।

आधी आबादी गाजियाबाद में सिर्फ मतदाता बनकर रह गई। वर्ष 1971, 1977, 1980 के चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल ने महिला उम्मीदवार को चुनावी रण में नहीं उतरा, न ही किसी महिला ने निर्दलीय ताल ठोंकने की हिम्मत जुटाई। वर्ष 1984 के चुनाव में 24 उम्मीदवारों के बीच सुशीला त्यागी अकेली निर्दलीय उम्मीदवार थीं। इस चुनाव में उन्हें महज 221 मत मिल सके। वर्ष 1989 के चुनाव में फिर महिलाओं की उपस्थिति सिफर रही, जबकि 1991 में शांता गोपीनाथ एकमात्र निर्दलीय प्रत्याशी रहीं।

वर्ष 1996 का चुनाव ऐसा था, जिसमें चार महिलाओं ने लोकसभा के लिए दावेदारी पेश की। इनमें कांग्रेस से रीता सिंह व पीएचके से विजय लक्ष्मी चुनाव मैदान में थीं, जबकि संतोष गोयल व रामेशरी बतौर निर्दलीय उम्मीवार थीं। वर्ष 1998 में डॉ.किरण सिंह तोमर और 2004 में अधिवक्ता गीता तोमर निर्दलीय उम्मीदवार थी। हालांकि वर्ष 1999 व 2009 में लोकसभा चुनाव बिना महिला उम्मीदवारों के लड़ा गया। गत लोकसभा चुनाव में जरूर आम आदमी पार्टी ने शाजिया इल्मी पर दांव खेला, जो पांचवें पायदान पर रही थीं।

मतों के मामले में बराबरी का हक

गाजियाबाद लोकसभा के अधीन पांचों विधानसभा पर महिला मतदाताओं की संख्या लगभग पुरुषों के बराबर है। यदि गौर करें तो गाजियाबाद विधानसभा में तकरीबन 44.42 फीसद महिला मतदाता हैं, जबकि साहिबाबाद में 43.05, मुरादनगर में 46.01, लोनी में 43.82 और धौलाना विधानसभा में करीब 44 प्रतिशत वोट महिलाओं के हैं।

वर्तमान में विधानसभावार मतदाताओं की संख्या

विधानसभा महिला मतदाता

गाजियाबाद- 194441

साहिबाबाद-   391128

मोदीनगर-     155851

मुरादनगर-    197727

लोनी-           213065

धौलाना-       49493

कुल-            1201705

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