Loksabha Election 2019: भाजपा और कांग्रेस में हर दिन बढ़ रही सियासी बेचैनी

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा और कांग्रेस की सियासी बेचैनी बढ़ गर्इ है। दोनों ही दल उत्तराखंड की पांचों सीटों को अपने कब्जे में लेना चाहते हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Fri, 15 Mar 2019 09:42 AM (IST) Updated:Fri, 15 Mar 2019 09:42 AM (IST)
Loksabha Election 2019: भाजपा और कांग्रेस में हर दिन बढ़ रही सियासी बेचैनी
Loksabha Election 2019: भाजपा और कांग्रेस में हर दिन बढ़ रही सियासी बेचैनी

देहरादून, कुशल कोठियाल। उत्तराखंड की पांचों सीटों पर चुनाव पहले चरण यानी 11 अप्रैल को होने जा रहे हैं। स्वाभाविक रूप से भाजपा और कांग्रेस, दोनों कैंपों में सियासी बेचैनी तारी है। प्रत्याशियों की घोषणा का इंतजार है, समय सीमित है और महासमर सामने। हर बार की तरह लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच सिमटती नजर आ रही है।

राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय तमाम अहम मुद्दों के बावजूद चुनावी समर की धुरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही बने हैं। भाजपा रणनीति के तहत लड़ाई को मोदी बनाम राहुल बनाने जा रही है तो कांग्रेस के वाररूम में भी मोदी की ही काट खोजी जा रही है। अन्य दलों की बात करें तो नैनीताल और हरिद्वार सीट पर बसपा की मौजूदगी का अहसास हो रहा है। अन्य सीटों (टिहरी, पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा) पर बसपा कांग्रेस के पारपंरिक वोटरों में सेंधमारी कर सकती है।

उत्तराखंड से नरेंद्र मोदी का जुड़ाव जग-जाहिर है। पिछली सदी के आठवें दशक में केदारनाथ मार्ग पर गरुड़ चट्टी की गुफा में ध्यान के दिनों से केदारनाथ त्रासदी बाद तक उनकी सक्रियता रही है। राजनीतिक रूप से वह पार्टी के संगठन का काम भी उत्तराखंड में देख चुके हैं। प्रधानमंत्री के रूप में ऑलवेदर रोड हो या केदारधाम का पुनर्निर्माण, वह व्यक्तिगत रूप से रुचि ले रहे हैं। उत्तराखंड में उनकी इस धार्मिक व राजनीतिक सक्रियता को चुनाव में भुनाने में कोई कसर भाजपा छोड़ना नहीं चाहती है।

एयर स्ट्राइक के बाद के मोदी को भाजपा सैन्य बहुल उत्तराखंड के लिए बेहद मुफीद मान कर चल रही है। यही वजह है कि भाजपा इस बार भी मोदी की नाव में तैरने की तैयारी में लगी हैं। जिन सीटों पर प्रत्याशी बदलने की बात हो रही है वहां नए दावेदार बस टिकट हासिल करने तक ही अपनी लड़ाई मान कर चल रहे हैं और पार्टी को भी यह गुमान होने लगा है कि जिसे भी टिकट देंगे वही जीत जाएगा। यह अतिविश्वास, प्रत्याशी चयन में बड़ी चूक को भी अंजाम दे सकता है। कांग्रेस में इस बार प्रांतीय दिग्गज नेताओं की कमी खल रही है। बकौल कांग्रेस, उत्तराखंड से राहुल का जुड़ाव मोदी से ज्यादा गहरा रहा है। एयर स्ट्राइक के बाद मोदी के वजन में हुए राजनीतिक इजाफे से कांग्रेस नेताओं की ओर से हुई सबूतों वाली बयानबाजी का सैन्य बहुल राज्य में ज्यादा प्रभाव न पडे़, इसके लिए भी रणनीति बनाई जा रही है।

पांच सीटों में से किसी एक पर सेना के किसी सेवानिवृत्त अधिकारी को चुनाव लड़ाने पर सैद्धांतिक सहमति बनी है। कांग्रेस के कुछ पुराने नेता तो यह भी सवाल उठा रहे हैं कि कहीं प्रदेश कांग्रेस वही तो नहीं करने जा रही जो भाजपा चाहती है। भाजपा पूरी चुनावी लड़ाई मोदी बनाम राहुल बनाना चाहती है और कांग्रेस भी वही करने जा रही है। इसी सोच के चलते कांग्रेस के तीसरी पांत के नेता भी सीधे मोदी पर ही चोट कर रहे हैं।

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