दिल्ली में वोट फीसद गिरने से प्रत्याशियों में बेचैनी, हो सकता इस पार्टी को नुकसान

भाजपा कांग्रेस व आम आदमी पार्टी तीनों ही अपनी जीत के दावे कर रहे हैं लेकिन कम मतदान उन्हें परेशान कर रहा है।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Tue, 14 May 2019 01:48 PM (IST) Updated:Tue, 14 May 2019 02:05 PM (IST)
दिल्ली में वोट फीसद गिरने से प्रत्याशियों में बेचैनी, हो सकता इस पार्टी को नुकसान
दिल्ली में वोट फीसद गिरने से प्रत्याशियों में बेचैनी, हो सकता इस पार्टी को नुकसान

नई दिल्ली[संतोष कुमार सिंह]। राजधानी दिल्ली के मतदाताओं ने अपना फैसला सुना दिया है। इस बार लगभग 60 फीसद मतदान हुआ है यानी वर्ष 2014 की तुलना में करीब पांच फीसद कम मतदाता घर से निकले हैं। मत फीसद में यह कमी राजनीतिक दलों व उनके प्रत्याशियों की बेचैनी तो बढ़ा ही रही है। वहीं अब जीत के दावों से भी प्रत्याशी डगमगाने लगे हैं और कह रहे हैं चुनावी ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है।

भाजपा, कांग्रेस व आम आदमी पार्टी तीनों ही अपनी जीत के दावे कर रहे हैं, लेकिन कम मतदान उन्हें परेशान कर रहा है। भाजपा की चिंता इसलिए बढ़ रही है, क्योंकि यह माना जाता है कि जिस वर्ग में उसकी पकड़ मजबूत है, वह अमूमन वोट देने में पीछे रह जाता है। दूसरी ओर मुस्लिम इलाके में अच्छी वोटिंग को भी वह अपने लिए नुकसानदेह मानता है।

हालांकि, भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि मुस्लिमों का वोट आप और कांग्रेस के बीच बंट रहा है, जिसका फायदा भाजपा प्रत्याशियों को होगा। विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों का एकतरफा वोट आम आदमी पार्टी के साथ था, लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस के प्रति भी उनका रुझान बढ़ा है।

इसी तरह से भाजपा नेताओं को झुग्गियों और अनधिकृत कॉलोनियों में समर्थन मिलने की उम्मीद है। उनका कहना है कि पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनावों में इन क्षेत्रों में आप और कांग्रेस को वोट मिले थे, लेकिन इस बार स्थिति बदल गई है। भाजपा का इन क्षेत्रों में जनाधार बढ़ा है।

भाजपा नेताओं के इन तर्कों के बावजूद जानकारों को मानना है कि मतदान में कमी का सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा प्रत्याशियों को ही होगा। हालांकि, राहत की बात यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में मत फीसद में बहुत ज्यादा कमी नहीं है।

आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 1977 में हुए आम चुनाव में दिल्ली में लगभग 71 फीसद वोट पड़े थे। वह चुनाव आपातकाल के बाद हुआ था और लोगों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध में भारी मतदान किया था। उस चुनाव के बाद दिल्ली में कभी भी इतने वोट नहीं पड़े हैं। लेकिन जब भी ज्यादा मतदान हुआ, उसका परिणाम बदलाव के रूप में सामने आया है।

वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव हो या फिर 2015 का विधानसभा चुनाव, दोनों ही चुनावों में 65 फीसद से ज्यादा लोगों ने वोट दिए और उसके परिणाम सबके सामने है। 2014 में भाजपा को सातों सीटों पर जीत मिली थी तो 2015 में आप को विधानसभा की 70 में से 67 सीटों पर जीत। अब लोगों को इंतजार है कि इस बार के मत फीसद में गिरावट का क्या परिणाम सामने आता है।

बाजारों में लगती रही जीत-हार पर बाजी
लोकतंत्र के महापर्व में राजधानी के लोगों ने ईवीएम का बटन दबाकर प्रत्याशियों को लेकर अपना फैसला सुना दिया है। उन्होंने क्या फैसला दिया है, इसका पता तो 23 मई को मतगणना के बाद लगेगा, लेकिन सियासी गलियारों में गर्माहट सोमवार को भी बरकरार रही। सियासी दावों के साथ ही गली नुक्कड़ व बाजारों में भी लोग हार-जीत पर बाजी लगाते रहे।

राजनीतिक पार्टियों के कार्यालयों, रेस्तरा, चाय-पान की दुकानों से लेकर मेट्रो स्टेशनों, मेट्रो व बसों में भी दिनभर चुनावी चर्चा चली। भाजपा नेता जहां सातों सीटें जीतने जबकि कांग्रेसी नेता बेहतर प्रदर्शन की बात कह रहे हैं। आप के नेता अंदरखाने पार्टी को तीन से चार सीटें मिलने का दावा कर रहे हैं।

आप उत्तर-पश्चिमी, पूर्वी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली में जीत की उम्मीद कर रही है। वहीं, कांग्रेस चार सीटों पर भाजपा से सीधा मुकाबला होने व जीत का दावा कर रही है। पार्टी को उम्मीद है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली, नई दिल्ली, चांदनी चौक और पश्चिमी दिल्ली में उसे जीत मिलेगी।

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