1977 में गजब हुआ था भाई.. दिव्यांग प्रत्याशी के प्रचार में दे डाले एक लाख रुपये और जीप; जब हार गए तो बधाई भी दी

Lok Sabha Election 2024 Update देश में चहुंओर होली के रंग और चुनावी किस्से की बहार है तो ऐसा ही साल 1977 के लोकसभा चुनाव एक बेहद रोचक किस्सा आज हम आपके लिए लाए हैं जोकि राजनीति गिराने नहीं उसूलों से लड़ने की मिसाल पेश करता है। यह किस्सा है रीवा के पूर्व महाराज मार्तंड सिंह और उनके विरोधी प्रत्याशी का।

By Jagran NewsEdited By: Ajay Kumar Publish:Fri, 22 Mar 2024 02:01 PM (IST) Updated:Fri, 22 Mar 2024 02:01 PM (IST)
1977 में गजब हुआ था भाई.. दिव्यांग प्रत्याशी के प्रचार में दे डाले एक लाख रुपये और जीप; जब हार गए तो बधाई भी दी
Lok Sabha Election 2024 : मार्तंड सिंह (बाएं) और यमुना प्रसाद शास्त्री (दाएं)।

भास्कर दुबे, जबलपुर। देश में होली का उत्सव आ रहा है और चुनावी माहौल है। चुनाव में आपने, मैंने और हम सभी ने ज्यादातर प्रत्याशियों को एक-दूसरे पर कटाक्ष कराते, कीचड़ उछालते और निजी हमले करते देखा है, लेकिन साल 1977 के लोकसभा चुनाव का माहौल ऐसा नहीं था। आज हम आपके लिए उस चुनाव एक ऐसा किस्सा लाए हैं, जिसके बाद कहेंगे कि राजनीति में उसूल वाले नेता होते हैं।

साल 1977 का लोकसभा चुनाव था। बघेलखंड की चर्चित रीवा लोकसभा सीट से यहां के पूर्व महाराज मार्तंड सिंह चुनावी मैदान में थे। मार्तंड सिंह के सामने चुनावी मैदान में थे भारतीय लोकदल पार्टी से पंडित यमुना प्रसाद शास्त्री। यमुना प्रसाद दिव्यांग (दृष्टिहीन) थे और आर्थिक तौर पर कमजोर भी। वे आपातकाल के दौर में 19 महीने की जेल काटकर बाहर आए थे।

महाराजा के प्रचार में चलता काफिला

महाराज मार्तंड सिंह निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतरे थे। वह राजपरिवार से थे तो किसी तरह की सुविधा और साधन की कोई कमी नहीं थी। चुनाव में उनका पूरा काफिला प्रचार में जाता था। समर्थकों की लंबी-चौड़ी फौज होती थी। इसकी वजह यह भी थी कि रीवा राजपरिवार की लोगों में लोकप्रियता काफी थी। उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस का समर्थन भी मिला था। यमुना प्रसाद खुद मार्तंड सिंह को अन्नदाता कहते थे।

यमुना प्रसाद अकेले रिक्शा से करते थे प्रचार

भारतीय लोकदल पार्टी के प्रत्याशी यमुना प्रसाद शास्त्री आर्थिक रूप से कमजोर थे। उनके पास चुनाव प्रचार के लिए न गाड़ी थी और ना काफिला। वह अकेले रिक्शा पर बैठ लोकसभा क्षेत्र में प्रचार करने जाते थे।

बस किसान-मजदूर और अनुसूचित जनजाति के मुद्दों के सहारे मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बना रहे थे। एक तो दिव्यांग और ऊपर से कोई सुविधा नहीं, इस कारण वह पूरे लोकसभा क्षेत्र में प्रचार करने भी नहीं पहुंच पा रहे थे।

जब पता चला महाराज ने भेजी मदद

एक दिन जब यमुना प्रसाद शास्त्री की स्थिति के बारे में रीवा के पूर्व महाराज मार्तंड सिंह को जानकारी मिली। जब किसी ने बताया कि आपका विरोधी दृष्टिहीन है और गरीब भी। आर्थिक तंगी की वजह से वाहन से प्रचार भी नहीं कर पा रहा है। इसके बाद महाराज ने शास्त्री की आर्थिक मदद की।

रीवा के इतिहासकार असद खान बताते हैं कि चुनाव के दौरान मार्तंड सिंह ने दरियादिली दिखाई थी। उन्होंने एक जीप और एक लाख रुपये की नकदी यमुना प्रसाद तक पहुंचाई। इसके बाद से चुनाव समीकरण बदल गए। जब चुनाव परिणाम आया तो आम लोगों से लेकर राजनीतिक पंडित तक सब हक्के-बक्के रह गए। दरअसल, यमुना प्रसाद ने महाराज को ही 6695 मतों से शिकस्त दे दी थी।

'मैं जीता नहीं, आपने जितवाया है'

रीवा के पूर्व महाराज मार्तंड सिंह अपनी ही मदद की वजह से हार चुके थे। हार के बावजूद भी वह जीते प्रत्याशी यानी यमुना प्रसाद शास्त्री  को उनके घर बधाई देने पहुंचे थे। तब विजेता प्रत्याशी यमुना प्रसाद ने कहा था कि हम नहीं जीते बल्कि आपने ही मुझे जितवाया है। इस बात को 47 साल होने वाले हैं, लेकिन रीवा में आज भी हर चुनाव में यह किस्सा जरूर सुनाई पड़ जाता है। 

यह भी पढ़ें: 'जब पांच मिनट का कह 22 मिनट तक बोलते रहे अटल बिहारी', 1979 की यह रैली कैसे बन गई चुनावी किस्‍सा?

chat bot
आपका साथी