मिशन 2019: जीरो पर आउट होने की आशंका से महागठबंधन के साथ रहेंगे वाम दल

आगामी लोकसभा चुनाव को ले महागठबंधन में वाम दालों को खास तवज्जो नहीं मिल रहा, लेकिन वे अलग राह पर चलते नहीं दिख रहे। क्‍या हैं इसके कारण, जानिए इस खबर में।

By Amit AlokEdited By: Publish:Fri, 11 Jan 2019 07:43 PM (IST) Updated:Fri, 11 Jan 2019 07:54 PM (IST)
मिशन 2019: जीरो पर आउट होने की आशंका से महागठबंधन के साथ रहेंगे वाम दल
मिशन 2019: जीरो पर आउट होने की आशंका से महागठबंधन के साथ रहेंगे वाम दल

पटना [अरुण अशेष]। आगामी लोकसभा चुनाव में सीटों की कमी के चलते महागठबंधन से वाम दलों के छिटकने की आशंका तो है, लेकिन फिलहाल वे अलग राह पर चलते नहीं दिख रहे। अकेले लड़कर जीरो पर आउट होने की आशंका के कारण तीनों वाम दल हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।

हिसाब यह बैठ रहा है कि अगर महागठबंधन पांच सीटें देने को राजी हो जाए तो तुरंत समझौता हो जाएगा। जबकि, वाम के हिस्से में तीन सीटें रखी गई हैं। इधर पांच से कम पर गुंजाइश नहीं बैठ रही है। वाम दलों में विचार चल रहा है कि जीरो पर आउट होने से बेहतर है कि तीन सीटों पर जीत की संभावनाएं देखी जाएं।

पिछले चुनाव में वाम दलों के थे 20 उम्‍मीदवार

लोकसभा के पिछले चुनाव में वामदलों के कुल 20 उम्मीदवार थे। भारतीय कम्‍युनिष्‍ट पार्टी मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी (भाकपा माले) के 16 और मार्क्‍सवादी कम्‍युनिष्‍ट पार्टी (माकपा) के दो उम्मीदवार अपने दम पर मैदान में गए। जबकि, भारतीय कम्‍युनिष्‍ट पार्टी (भाकपा) ने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से गठजोड़ कर दो उम्मीदवार खड़े किए। आगे 2015 के विधानसभा चुनाव में तीनों दलों के बीच समझौता हुआ। भाकपा माले के तीन उम्मीदवारों की जीत हुर्ई। तीनों वाम दलों को साढ़े तीन फीसद वोट मिले थे।

माले व भाकपा मांग रहीं छह-छह सीटें

इस समय माले और भाकपा छह-छह सीटों की मांग कर रही हैं। माकपा पिछली बार दो पर लड़ी थी। वह इसबार भी दो की मांग कर रही है। भाकपा राष्ट्रीय परिषद की सदस्य निवेदिता का दावा है- छह सीटों पर हमारी तैयारी है। ये हैं- बेगूसराय, मधुबनी, खगडिय़ा, बांका, पश्चिम चंपारण और गया। लेकिन समझौते के दौरान कुछ सीटें कम भी हो सकती हैं। पिछली बार भाकपा सिर्फ बेगूसराय और बांका सीटों पर लड़ी थी।

मुश्किल है मांगी गई सीटों का मिलना

जाहिर है, इतनी सीटें भाकपा को नहीं मिलने जा रही हैं। बांका राष्‍ट्रीय जनता दल (राजद) की सिटिंग सीट है तो गया पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का दावा है। पश्चिम चंपारण पर राजद के अलावा कांग्रेस और राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) की भी नजरें हैं। अंदरूनी बात यह है कि भाकपा दो उम्मीदवारों के लिए सीट मिल जाने पर राजी हो सकती है। एक कन्हैया और दूसरी सत्यनारायण सिंह के लिए। सत्‍यनारायण सिंह की पसंद खगडिय़ा है।

माले के लिए आरा और सीवान की सीटें मुफीद मानी जा रही हैं। आरा में 1989 में पूर्ववर्ती आइपीएफ की जीत हुई थी। बाद के चुनावों में भी वहां माले संघर्ष में रहा। हाल के दिनों में कटिहार में भी उसकी हालत सुधरी है, लेकिन वहां तारिक अनवर के दावे को खारिज नहीं किया जा सकता है। माकपा तत्कालीन जनता दल की मदद से नवादा से जीती थी। अब भी किसी खास सीट को लेकर उसका आग्रह नहीं है। सिर्फ गठबंधन के नाम पर उसका समायोजन हो सकता है। 

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