Lok Sabha Election 2019: राजमहल में दिलचस्प लड़ाई... थॉमस से लड़ते-लड़ते अब उनके बेटे से लड़ रहे हेमलाल

विजय हांसदा के पिता थॉमस हांसदा ने 1978 में बरहड़वा का मुखिया बनकर राजनीति में कदम बढ़ाए और 1980 से 1990 तक बरहेट विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे।

By mritunjayEdited By: Publish:Thu, 25 Apr 2019 06:26 PM (IST) Updated:Thu, 25 Apr 2019 06:26 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: राजमहल में दिलचस्प लड़ाई... थॉमस से लड़ते-लड़ते अब उनके बेटे से लड़ रहे हेमलाल
Lok Sabha Election 2019: राजमहल में दिलचस्प लड़ाई... थॉमस से लड़ते-लड़ते अब उनके बेटे से लड़ रहे हेमलाल

उधवा, नव कुमार मिश्रा। राजमहल के निवर्तमान सांसद विजय हांसदा व उनके प्रतिद्वंद्वी हेमलाल मुर्मू के बीच राजनीतिक अदावत करीब तीन दशक पुरानी है। पूर्व में विजय हांसदा के पिता थामस हांसदा से हेमलाल मुर्मू की राजनीतिक भिड़ंत होती थी। थामस हांसदा के असमय निधन के बाद हेमलाल से दो-दो हाथ करने की जिम्मेदारी उनके बेटे विजय हांसदा ने संभाल ली है। इसके लिए उन्हें पार्टी तक बदलनी पड़ी। उन्होंने उस झामुमो का झंडा थाम लिया, जिसने उनके पिता की राजनीतिक राह में कांटे बोए। उधर, थामस परिवार से राजनीतिक मुकाबला करने के लिए हेमलाल ने भी भाजपा का दामन थाम लिया।

मुखिया बनकर थॉमस हांसद ने बढ़ाए राजनीति में कदमः विजय हांसदा के पिता थॉमस हांसदा ने 1978 में बरहड़वा का मुखिया बनकर राजनीति में कदम रखा और 1980 से 1990 तक बरहेट विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे। बरहेट सीट को अपने कब्जे में करने के लिए झामुमो ने हेमलाल मुर्मू को आगे किया। हेमलाल को इसमें सफलता भी मिली। 1990 के विधानसभा चुनाव में हेमलाल ने तत्कालीन आबकारी मंत्री थॉमस हांसदा को हराकर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया। 1990 में चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने शिबू सोरेन को चुनौती देने के लिए थॉमस हांसदा को 1992 में बिहार विधान परिषद में भेजा। दो साल बाद ही 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर केंद्र की राजनीति में चले गए।

नाै वोट से 1998 में थॉमस को मिली हारः 1998 में थॉमस हांसदा को भाजपा के सोम मरांडी ने मात्र नौ वोट से पराजित कर दिया। इसके बाद 1999 में 13वीं लोकसभा चुनाव में वे दूसरी बार सांसद चुने गए। अब झामुमो उन्हें लोकसभा में पहुंचने से रोकने की जुगत में जुट गया। उनके खिलाफ यहां भी हेमलाल को भेजा गया। 2004 के लोकसभा चुनाव में झामुमो के हेमलाल मुर्मू के कारण राजमहल में थॉमस हांसदा को हार मिली। इसके बाद इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में थॉमस हांसदा ने पुन: राजमहल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और सफल रहे। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजमहल सीट जेएमएम के लिए छोड़ दी। यहां से हेमलाल मुर्मू की जीत पक्की थी, लेकिन थॉमस हांसदा अपने परंपरागत प्रतिद्वंद्वी को इतनी आसानी से छोडऩे वाले नहीं थे। थॉमस हांसदा राजद के टिकट पर चुनावी मैदान में आ गए। इस कारण झामुमो के हेमलाल मुर्मू को भाजपा के देवीधन बेसरा के हाथों हारना पड़ा। थॉमस हांसदा की अपने परंपरागत प्रतिद्वंद्वी को पराजित करने की मंशा पूरी हो गई। 2009 में हेमलाल मुर्मू बरहेट विधानसभा क्षेत्र से झामुमो के टिकट पर विधानसभा पहुंचे। झारखंड सरकार में मंत्री बने। 2014 में यह सीट गठबंधन के तहत झामुमो के खाते में चली गई। झामुमो के लिए हेमलाल बूढ़े हो चुके थे। उसे अब भाजपा की लोकप्रियता से डर लगने लगा था। ऐसी स्थिति में पुरानी बातों को भूलकर झामुमो ने थॉमस हांसदा के पुत्र विजय हांसदा को अपनी पार्टी में शामिल करा कर टिकट भी थमा दिया। इससे नाराज हेमलाल ने भाजपा का दामन थाम लिया।

मोदी लहर में झामुमो को मिली जीतः मोदी लहर के बावजूद 2014 में हेमलाल मुर्मू राजमहल से लोकसभा चुनाव हार गए। उन्हें चिर परिचित प्रतिद्वंद्वी थॉमस हांसदा के पुत्र विजय हांसदा के हाथों पराजय का मुंह देखना पड़ा। विगत पांच साल के राजनीतिक कैरियर में विजय हांसदा अपने पिता थॉमस हांसदा जैसी लोकप्रियता नहीं हासिल कर सके हैं, लेकिन हेमलाल को संसद पहुंचने से रोकने के लिए झामुमो को कोई दूसरा उम्मीदवार भी नहीं मिला। परिणामस्वरूप एक बार फिर वे मैदान में हैं।

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