बड़ा मुद्दा: जम्मू कश्मीर में खेलों से हो रहा खेल, राजनीतिक दावे फेल

राज्य के प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को पड़ोसी राज्यों की तरफ पलायन करना पड़ रहा है। सवाल यह भी उठने लगे हैं विशेष एक खेल पर ही सरकार दयालु है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Mon, 08 Apr 2019 11:13 AM (IST) Updated:Mon, 08 Apr 2019 11:13 AM (IST)
बड़ा मुद्दा: जम्मू कश्मीर में खेलों से हो रहा खेल, राजनीतिक दावे फेल
बड़ा मुद्दा: जम्मू कश्मीर में खेलों से हो रहा खेल, राजनीतिक दावे फेल

जम्मू, अशोक शर्मा। राज्य में खेलों की बदहाली पर सवाल उठाने वाले सियासतदानों से लेकर नौकरशाह तक पीछे नहीं रहते, लेकिन खेलों के बढ़ावे के लिए क्या हो इसे लेकर न तो अधिकारी गंभीर हैं और न राजनीतिक दल। खिलाड़ी अपने दम पर ही पदक जीत कर राज्य व देश का नाम रोशन करते हैं। जम्मू-कश्मीर खेल परिषद पदक विजेताओं को प्रोत्साहित तक नहीं करती। इसका नतीजा यह है कि खिलाड़ी अन्यों राज्यों से मुकाबला नहीं कर सकते। न तो अच्छे मैदान हैं और न ही कोच। ढांचागत सुविधा भी नाममात्र हैं। आज तक राज्य की खेल नीति तक नहीं बन सकी है। जिन खेलों में खिलाडिय़ों और कोचों की मदद से राज्य का नाम है, उनके लिए आज तक मैदान नहीं है।

राज्य के प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को पड़ोसी राज्यों की तरफ पलायन करना पड़ रहा है। सवाल यह भी उठने लगे हैं विशेष एक खेल पर ही सरकार दयालु है। अन्य खेल अपने हाल पर हैं। इसका फायदा जम्मू में कुछ निजी खेल क्लब उठा रहे हैं। वे खिलाडिय़ों को सुविधाएं देकर बेहतर मुकाबले के लिए तैयार करते हैं। स्टेट स्पोट्र्स काउंसिल में एसआरओ-349 के तहत हर वर्ष 25 खिलाडिय़ों को सरकारी नौकरी देने का प्रावधान है, लेकिन काउंसिल की नालायकी की वजह से चार वर्षों से एसआरओ से खिलाड़ी लाभांवित नहीं हो पाए हैं। इससे खिलाडिय़ों का भविष्य अंधकारमय है। ज्यादातर खिलाडिय़ों में ओवरऐज होने की चिंता सता रही है। एसआरओ का पिछला कोटा क्लीयर ही नहीं हुआ है कि काउंसिल की ओर से तीन दिन पहले फिर से एसआरओ 349 से नई अधिसूचना जारी की गई है। खिलाड़ी बोलते हैं कि इसका तुक नहीं है। जब तक पुराने मामलों का निपटारा नहीं हो जाता तब तक नई अधिसूचना जारी करना तर्कसंगत नहीं है।

स्पोटर्स काउंसिल हो या फिर युवा सेवा एवं खेल विभाग, खेलों से रुचि रखने वाले या फिर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राज्य और देश का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाडिय़ों को इसका प्रभारी नियुक्त किया जाना चाहिए ताकि खिलाडिय़ों की डूबती नैया को पार लगाया जा सके। कहने को केंद्र सरकार की ओर से खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएं हैं, लेकिन जमीन पर योजनाएं नहीं दिख रही हैं। पहले खिलाडिय़ों को प्रोत्साहन के लिए कुछ भी नहीं मिलता था। अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले खिलाडिय़ों को एसआरओ-349 के तहत खेल कोटे तहत सरकारी नौकरियां मिलने का प्रावधान है। गांवों के खिलाड़ी शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए खेलों में भाग लेते हैं। शहरों के खिलाड़ी प्रोफेशनल हैं। उन्हें आगे बढऩे के लिए अपार मौके हैं।

राज्य सरकार का सहयोग नहीं

अंतरराष्ट्रीय फेंसिंग रेफरी एवं खिलाड़ी रशीद चौधरी ने कहा कि स्पोटर्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया जम्मू-कश्मीर में फेंसिंग और वुशू एकेडमी खोलने को तैयार है पर हैरानगी इसकी है कि स्पोट्र्स काउंसिल राज्य में एकेडमी खोलने के लिए जमीन तक उपलब्ध नहीं करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। सीएसआर के तहत औद्योगिक घराने खिलाडिय़ों को आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। कोई भी इसको लेकर संजीदा नहीं है। खिलाड़ी कहते हैं कि उन्हें कुछ और नहीं तो अच्छा प्रदर्शन करने पर नौकरियां तो मिलनी ही चाहिए।

स्कूल भी खेलों को लेकर गंभीर नहीं

स्कूलों भी खेलों के बढ़ावे के लिए सिर्फ दावे ही करते हैं। जमीनी हकीकत यह है कि बच्चा जो करता है अपने दम पर ही। उसे स्कूल से किसी का सहयोग नहीं मिलता। स्कूल गेम्स में भाग लेने वाले खिलाड़ी मैदान तक अपने खर्चे पर पंहुचते हैं। कुछ स्कूल हैं, जो बच्चों को अपनी गाड़ी पर खेल मैदान तक ले जाते हैं। स्कूल नेशनल गेम्स में भाग लेने वाले खिलाडिय़ों को अंतिम समय तक पता नहीं होता कि उनकी ट्रेन में रिजरवेशन भी हुई है कि नहीं। अगर जाने की रिजरवेशन हो तो आने में परेशानी होती है। ऐसे में अभिभावक भेजने को तैयार नहीं होते। कुछ वर्ष पहले इतना जरूर हुआ कि युवा सेवा एंव खेल विभाग पदक विजेताओं को इनामी राशि जरूर दे रही है। राष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक लेने वाले को दस हजार, रजत वाले को साढ़े सात हजार और कांस्य विजेता को पांच हजार दिया जाता है। प्रतिभागी खिलाड़ी को 1700 रुपये दिये जाते हैं। फेंसिंग के खिलाड़ी मयंक शर्मा ने कहा कि फेंसिग का शू ही 12-15 हजार का आता है। जब ढांचागत सुविधा नहीं होंगी। बच्चे के पास तलवार तक नहीं होगी तो पदक कहां से आएंगे। खिलाडिय़ों की सुविधाओं की कोई बात तक नहीं करता।

- खेलों को लेकर भाजपा ने दावे तो बहुत किए पर गंभीरता नहीं दिखाई। खेल मंत्री रहते हुए मैंने जो काम शुरू करवाए थे भाजपा ने बंद करवा दिए। खेलो इंडिया से जम्मू के कितने खिलाडिय़ों को लाभ हुआ। यह तो मात्र पैसे खाने का तरीका है। इससे खेलों का कोई भला नहीं हो रहा। - रमण भल्ला, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता

- आज तक अगर ऊधमपुर संसदीय क्षेत्र से कोई अच्छा खिलाड़ी नहीं निकला तो इसके लिए पिछली सरकारें जिम्मेवार हैं। पूरे क्षेत्र में आज तक अच्छा स्टेडियम नहीं हैं। कोच हैं तो ढांचागत सुविधाएं नहीं हैं। दिन भर मैदान में पसीना बहाने वाले खिलाड़ी राज्य का गौरव बढ़ाने के सपने देखते रहते हैं। कितने राजनीतिक दलों ने घोषणा पत्रों में खेलों और खिलाडिय़ों की बात की है। - बलवंत सिंह मनकोटिया, अध्यक्ष पैंथर्स पार्टी

- भाजपा ने खेलो इंडिया योजना लागू कर देश भर की प्रतिभा को मौका दिया है। कई नई खेल अकेडमियां बनी हैं। मौलाना आजाद स्टेडियम को अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम बनाने का कार्य चल रहा है। खेलों को लेकर मोदी सरकार के कार्यकाल में जितना काम हुआ है, शायद ही कभी हुआ हो। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखने भी लगे हैं। - जुगल किशोर शर्मा, सांसद 

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