आपातकाल के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता केसी पंत को पराजित किया था भारत भूषण ने

42 साल पहले का वह चुनावी दौर कुछ अलग ही था। तब एक साधारण किसान का बेटा न केवल संसद पहुंचा बल्कि उसने कांग्रेस के मजबूत दुर्ग में सेंध लगाते हुए जनता की ताकत का अहसास भी कराया था।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 08 Apr 2019 12:30 PM (IST) Updated:Mon, 08 Apr 2019 12:30 PM (IST)
आपातकाल के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता केसी पंत को पराजित किया था भारत भूषण ने
आपातकाल के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता केसी पंत को पराजित किया था भारत भूषण ने

रामनगर, विनोद पपनै :  42 साल पहले का वह चुनावी दौर कुछ अलग ही था। तब एक साधारण किसान का बेटा न केवल संसद पहुंचा बल्कि उसने कांग्रेस के मजबूत दुर्ग में सेंध लगाते हुए जनता की ताकत का अहसास भी कराया था। आपातकाल के बाद के उस दौर ने भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत के पुत्र केसी पंत को साधारण किसान के बेटे भारत भूषण ने धूल चटाई थी।

जनवरी 1977 में देश से आपातकाल हटाने के साथ ही आम चुनाव कराए जाने की घोषणा हुई। मार्च में आम चुनाव कराए गए थे। परिणाम आए तो देश में पहली बार गैर कांग्रेसी  गठबंधन की सरकार बनी थी। उस दौर में जयप्रकाश नारायण का जादू कांग्रेस के खिलाफ  लोगो के सिर चढ़कर बोलने लगा था। तब नैनीताल-बहेड़ी संसदीय क्षेत्र भी जेपी से प्रभावित था। इस चुनाव में कांग्रेस की ओर से 1962, 1967 और 1971 में लगातार सांसद रहे कृष्ण चंद्र पंत फिर चुनावी समर में थे। उनके खिलाफ  भारतीय लोकदल ने आम किसान परिवार से जुड़े भारत भूषण को मैदान में उतारा। तब किच्छा तहसील के चुटकी गांव (देवरिया) के साधारण किसान भारत भूषण को टिकट दिए जाने से लोग आश्चर्यचकित थे। कोई उन्हें जानता तक नही था। बावजूद इसके जनता पार्टी से उन्हें समर्थन मिला तो वह विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार घोषित हो गए।

उम्मीदवार घोषित होने के बाद उनके जानने वालों एवं परिचितों ने अपने हाथों से दीवार पर पोस्टर लगाने शुरू कर दिए थे। भारत भूषण के पुत्र श्रुतिकांत अग्रवाल बताते है कि उस समय वह काफी छोटे थे। पिता तब क्षेत्र के एकमात्र स्नातक थे। उन्होंने क्षेत्र में कई सहकारी समितियों की शुरूआत कराई थी। किच्छा चीनी मिल जो बंद थी उसे शुरू कराने में उनका अहम योगदान रहा था। बावजूद इसके तब अनजान व्यक्ति को टिकट मिलने से विपक्ष का हर स्थानीय नेता भी अचंभित था। फिर भी एक अहम बात यह थी कि उस दौर में इंदिरा हटाओ देश बचाओ का नारा लोगों के दिलो दिमाग पर छाया हुआ था। यह एक बड़ा कारण था कि भारत भूषण का नाम लोगों की जुबान पर चढऩे लगा था। कोसी रोड रामनगर निवासी धर्मपाल जिंदल बताते है कि भारत भूषण के अपरिचित होने के बावजूद जब वह एक बार रामनगर प्रचार को आए तो लोगों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। उसके बाद उनके चुनाव की कमान रामनगर में विष्णु कामरेड, शिव प्रकाश पंडा, रतन लाल झिंगन, विधायक रामदत्त जोशी (सभी दिवंगत) ने अपने कंधों पर लेते हुए कांग्रेस के खिलाफ  जमकर आग उगली।

लोगों से कहा गया कि कांग्रेस सत्ता में दोबारा आई तो फि र आपातकाल लग जाएगा। आखिरकार नतीजे आए तो कांग्रेस के दिग्गज केसी पंत भारत भूषण से 84,746 मतों से पराजित हो गए थे। धर्मपाल बताते है कि तब जीत की खुशी में पूरे शहर में कई क्विंटल लड्डू बांटे गए थे। आपातकाल विरोध लहर ने उत्तराखंड (तब उप्र) की चारों सीटें कांग्रेस से छीन ली। तब पौड़ी से जगन्नाथ शर्मा, गढ़वाल से त्रेपन सिंह नेगी, अल्मोड़ा से मुरली मनोहर जोशी और नैनीताल से भारत भूषण ने संसद भवन की राह पकड़ी थी।

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