CG Chunav 2018: नारे... नारे ही रह गए या असर भी हुआ, बताएगा चुनाव परिणाम

Chhattisgarh Chunav 2018: यहां राजनीतिक दलों ने चुराए हुए नारों से ज्यादा काम चलाया। नए नारे एक्का-दुक्का ही लगे।

By Rahul.vavikarEdited By: Publish:Sat, 08 Dec 2018 11:02 PM (IST) Updated:Sun, 09 Dec 2018 07:43 AM (IST)
CG Chunav 2018: नारे... नारे ही रह गए या असर भी हुआ, बताएगा चुनाव परिणाम
CG Chunav 2018: नारे... नारे ही रह गए या असर भी हुआ, बताएगा चुनाव परिणाम

रायपुर, नईदुनिया, राज्य ब्यूरो। नारे और मुद्दे के लिहाज से छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव सूखा रहा। यहां राजनीतिक दलों ने चुराए हुए नारों से ज्यादा काम चला। दो-चार नए नारे लगे भी तो मतदाताओं के मस्तिष्क में छाप छोड़ने में सफल नहीं रहे, बल्कि चुराए हुए नारों की चर्चा रही। अब नारे...नारे रही बनकर रह गए या फिर उनका असर भी हुआ, यह तो आने वाला चुनाव परिणाम ही बता पाएगा।

भाजपा में सबसे ज्यादा रमन पर विश्वास, सबका विकास नारा ही चला। इसके अलावा पार्टी के आइटी सेल ने कई नारे सोशल मीडिया में चलाए, लेकिन वह पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की जुबान पर ही नहीं टिक पाए। ऐसे ही कांग्रेस में वक्त है बदलाव का...नारा सबसे ज्यादा चला। इस नारे को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्तर पर चलाने के लिए दिया था। इससे मिलता-जुलता नारा प्रदेश कांग्रेस ने परिवर्तन लाना है, यह नारा चलाया। यह पार्टी की चुनावी मंचों से सुनाई पड़ा।

प्रदेश कांग्रेस ने किसानों पर सबसे ज्यादा फोकस किया, इसलिए उसने 'किसानों का कर्ज माफ, बिजली बिल हाफ" जैसे कुछ और नारों को भी प्रसारित किया, ये ऐसे नारे थे, जिन्हें कांग्रेस ने दूसरे राज्यों के चुनाव में भी इस्तेमाल किया है। दूसरे राजनीतिक दलों की बात करें, तो और किसी ने प्रभावी नारा नहीं दिया।

राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे ज्यादा छाए रहे, स्थानीय पर बात कम

अब मुद्दों पर आएं, तो स्थानीय से ज्यादा राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों को स्टार प्रचारकों ने फोकस किया। जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह व भाजपा के अन्य स्टार प्रचारकों ने अपने भाषणों में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी पर तीखे हमले किए। वहीं, राहुल गांधी और कांग्रेस के दूसरे स्टार प्रचारकों ने राफेल, नोटबंदी, जीएसटी, महंगाई को लेकर मोदी और उनकी सरकार पर हमला बोला। पत्रकार वार्ता में भी राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर ज्यादा बात हुई। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो इसका कारण यह था कि राष्ट्रीय स्तर के नेता विधानसभा चुनाव की पिच पर लोकसभा चुनाव के लिए बैटिंग कर रहे थे। स्थानीय नेताओं ने ही छत्तीसगढ़ के मुद्दे बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, कृषि पर बात की। भाजपा नेताओं ने इस क्षेत्रों में विकास बताया, तो कांग्रेस ने आंकड़ों के साथ दावों को झूठलाने की कोशिश की।

बयानों से गरमाई सियासत

इस बार चाहे भाजपा हो या फिर कांग्रेस, दोनों राष्ट्रीय दलों के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने पिछले चुनावों की तुलना में ज्यादा पत्रकारवार्ता की। बयानबाजी से राजनीति गरमाई की कोशिश हुई। जैसे कि कांग्रेस के स्टार प्रचारक व उत्तरप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर ने नक्सलियों को भटके हुए क्रांतिकारी बोलकर सियासी हलचल तेज कर दी। इसके बाद तो मोदी से लेकर शाह और भाजपा के नेता इसी बयान पर कांग्रेस पर हमला बोलते रहे।

मोबाइल तो गायब ही रहा

चुनाव से पहले भाजपा सरकार ने स्काय योजना के तहत स्मार्ट फोन बांटे। पहले चरण में 20 लाख फोन बांटने का लक्ष्य रखा था, लेकिन पांच-सासत लाख ही बंट पाया। जिस तरह से पिछले चुनावों में चावल और धान के समर्थन मूल्य को भाजपा ने हथियार बनाया था, उसी तरह से मोबाइल पर वोट मांगने की रणनीति थी, लेकिन मोबाइल नहीं बंट पाने और कई जगहों पर मोबाइल के फटने के कारण भाजपा ने चुनावी सभाओं के मंच से मोबाइल का नाम ही नहीं लिया।

चुनाव आयोग की सख्ती ने भी लगाया लगाम

पहले बैनर, फ्लैक्स और दीवारों पर राजनीतिक दलों के नारे लिखे नजर आते थे। अब चुनाव आयोग की सख्ती के कारण बैनर और फ्लैक्स तो दूर, दीवारों पर भी नारे नहीं लिखे जा सके। इस कारण लिखे हुए नारे यदा-कदा ही दिखे। जनसंपर्क के दौरान कार्यकर्ता ही नारे लगाने सुनाई पड़े, लेकिन उन्होंने ने भी पुराने नारे ज्यादा लगाए।

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