नक्सलगढ़ बीजापुर में दो धुर विरोधी रिस्क लेकर बहा रहे पसीना

बीजापुर इलाके में लोकतंत्र पर नक्सली हावी हैं। जगह-जगह चुनाव विरोधी पर्चे टंगे हैं। नेताओं को धमकियां मिल रही हैं। मुकाबला इतना कठिन है कि नेता कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Fri, 19 Oct 2018 08:41 PM (IST) Updated:Fri, 19 Oct 2018 08:41 PM (IST)
नक्सलगढ़ बीजापुर में दो धुर विरोधी रिस्क लेकर बहा रहे पसीना
नक्सलगढ़ बीजापुर में दो धुर विरोधी रिस्क लेकर बहा रहे पसीना

रायपुर। बस्तर की 12 सीटों में से सर्वाधिक नक्सल प्रभावित मानी जाने वाली बीजापुर सीट पर दो चिर प्रतिद्वंद्वियों की उपस्थिति से मुकाबला रोचक होने की पूरी संभावना बन रही है। कांग्रेस ने पिछली बार हारे विक्रम उसेंडी को मैदान में उतार दिया है।

भाजपा ने टिकट का एलान तो नहीं किया है, लेकिन पूरी संभावना इसी बात की है कि वर्तमान विधायक और राज्य सरकार में मंत्री महेश गागड़ा ही कमान संभालेंगे। अगर ऐसा हुआ तो मुकाबला कई मोर्चों पर लड़ा जाएगा। दरअसल गागड़ा और विक्रम दोनों ही भैरमगढ़ के रहने वाले हैं।

दोनों ने साथ में राजनीति शुरू की और दोनों ही स्थानीय राजनीति से उठकर सदन की राह पर चले हैं। गागड़ा तो सफल रहे जबकि विक्रम अब तक सदन की राह में संघर्ष कर रहे हैं। इस बार चुनाव में जकांछ-बसपा-सीपीआइ गठबंधन भी है। गठबंधन ने सकनी चंद्रैया को प्रत्याशी बनाया है जो दोनों की राह में कांटे बोने लगे हैं। दूसरी पार्टियों के साथ ही निर्दलीय भी किस्मत आजमाने की तैयारी में हैं।

नक्सली गांवों में घूम रहे नेता

इस इलाके में लोकतंत्र पर नक्सली हावी हैं। जगह-जगह चुनाव विरोधी पर्चे टंगे हैं। नेताओं को धमकियां मिल रही हैं। इसके बावजूद मुकाबला इतना कठिन है कि नेता कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे। मंत्री महेश गागड़ा नक्सलियों की हिट लिस्ट में हैं।

इसके बाद भी पिछले कुछ महीनों में उन्होंने कुटरू, गंगालूर, भोपालपटनम, बासागुड़ा, भद्रकाली जैसे धुर नक्सल इलाकों का दौरा किया है। कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम को टिकट मिलने की उम्मीद 50-50 ही थी, लेकिन उन्होंने भी तैयारियों में कोई कमी नहीं की थी। वे गंगालूर जैसे इलाकों में थानों के आगे बसे अंदरूनी गांवों तक पहुंच रहे हैं। इस लड़ाई में जिंदगी का रिस्क भी है, लेकिन दो धुर विरोधियों के बीच अबकी बार यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बनता दिख रहा है। 

चुनाव का माहौल बनाने में छूट रहा पसीना

इस नक्सल इलाके में चुनाव का माहौल बनाना भी कठिन काम है। प्रशासन ने हाट-बाजार, राशन दुकान जैसी जगहों पर स्वीप कार्यक्रम चलाकर मतदाताओं को जागरूक करने का प्रयास किया है। जगह-जगह ईवीएम और वीवीपैट मशीन का प्रदर्शन भी किया गया। मुख्य सड़क और अंदर बसे प्रमुख कस्बों तक आदिवासियों को यह तो पता है कि चुनाव हो रहे हैं लेकिन उनकी खामोशी टूट नहीं रही है।

76 मतदान केंद्रों को शिफ्ट करने का प्रस्ताव

बीजापुर जिले में पामेड़ की ओर तेलंगाना सीमा से सटे इलाकों, गंगालूर से अंदर बसे दर्जनों गांवों और इंद्रावती नदी के उस पार अबूझमाड़ के इलाके के गांवों में नक्सलियों का आतंक है। इनमें से अधिकांश गांव पहुंचविहीन भी हैं। यहां चुनाव कराने के लिए मतदान कर्मियों को दो से तीन दिन तक पैदल चलकर जाना होता है। प्रशासन ने इस बार 76 मतदान केंद्रों को शिफ्ट करने का प्रस्ताव दिया है। चुनाव में सुरक्षा के लिए 16 हजार जवान बाहर से बुलाए जा रहे हैं।

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