लोकसभा चुनावों की घोषणा के पहले से ही कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने का जो सिलसिला कायम हुआ था, वह थमता नहीं दिख रहा है। कांग्रेस छोड़ने की तैयारी करने वालों में नया नाम जुड़ा है दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली का। पता नहीं उनका अगला कदम क्या होगा, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि दिल्ली में टिकट वितरण से नाराज कांग्रेस के एक और नेता राजकुमार चौहान पार्टी छोड़ चुके हैं। इसकी गिनती करना कठिन है कि पिछले एक-डेढ़ माह में देश भर में कितने कांग्रेस नेताओं ने पार्टी छोड़ी है। हैरानी नहीं कि लोकसभा चुनाव संपन्न होने तक कुछ और नेता कांग्रेस छोड़ दें। पता नहीं कांग्रेस को इसकी कोई परवाह है या नहीं कि देश भर में उसके लोग पार्टी छोड़कर जा रहे हैं, लेकिन दिल्ली में यानी कांग्रेस नेतृत्व की नाक के नीचे जो असंतोष उभरा, उसके लिए वही जिम्मेदार है।

अरविंदर सिंह लवली ने अपने इस्तीफे का एक कारण आम आदमी पार्टी से समझौता किया जाना बताया है। इस कारण की केवल इसलिए अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ दिया, क्योंकि यह एक तथ्य है कि दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को हाशिये पर ले जाने का काम आम आदमी पार्टी ने ही किया। इसके बावजूद कांग्रेस नेतृत्व ने अपने स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं और जमीनी हकीकत की अनदेखी कर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। यह फैसला इसके बावजूद किया गया कि अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में उसके साथ मिलकर लड़ना स्वीकार नहीं किया। साफ है कि कांग्रेस नेतृत्व ने आम आदमी पार्टी के समक्ष पूरी तरह समर्पण कर दिया। यह इससे भी स्पष्ट होता है कि उसे दिल्ली की सात में से केवल तीन सीटों पर लड़ने का अवसर मिला। कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं को इसे स्वीकार करना इसलिए कठिन रहा, क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी दिल्ली में पांच सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे थे।

अरविंदर सिंह लवली की नाराजगी का एक कारण प्रत्याशी चयन भी नजर आता है। कांग्रेस ने जिस तरह अपने पुराने नेताओं की अनदेखी कर दूसरे दलों से आए कन्हैया कुमार और उदित राज को चुनाव मैदान में उतारा, उससे स्थानीय नेताओं में असंतोष उभरना स्वाभाविक था। कहना कठिन है कि इस असंतोष की उसे कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन यह एक तरह का राजनीतिक आत्मघात ही है कि जिस दल ने दिल्ली में कांग्रेस का बेड़ा गर्क किया, उससे ही उसने उसकी शर्तों पर समझौता करना पसंद किया। कांग्रेस जिस तरह अपने मजबूत गढ़ों में सहयोगी दलों के लिए अपनी राजनीतिक जमीन छोड़ती चली जा रही है, उससे वह अपने आपको खत्म करने का ही काम कर रही है। अच्छा हो कि कांग्रेस नेतृत्व यह समझे कि फौरी राजनीतिक लाभ के लिए वह अपने दीर्घकालिक हितों पर कुठाराघात कर रहा है।