Bihar assembly election 2020 : नहीं पार निकल सकी रेणु की 'कागज की कश्ती'
Bihar assembly election 2020 रेणु सिर्फ साहित्यकार ही नहीं थे एक क्रांतिकारी भी थे। 1972 में व्यवस्था से पनपी बेबसी से व्यथित होकर सोशलिस्ट विचारधारा के रेणु ने स्वयं फारबिसगंज विधानसभा से निर्दलीय चुनावी समर में कूद पड़े थे।
अररिया [अरुण कुमार झा]। Bihar assembly election 2020 : जब जब विधानसभा चुनाव होता है तब तब रेणु जी हर किसी को याद आते हैं। कथा साहित्य में कृतियों का पताका फहरा चुके विश्व प्रसिद्ध आंचलिक भाषा के पुरोधा अमर कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की चुनावी यात्रा का स्मरण हो जाता है।
स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि रेणु सिर्फ साहित्यकार ही नहीं थे, एक क्रांतिकारी भी थे। 1972 में व्यवस्था से पनपी बेबसी से व्यथित होकर सोशलिस्ट विचारधारा के रेणु ने स्वयं फारबिसगंज विधानसभा से निर्दलीय चुनावी समर में कूद पड़े थे। उस समय फारबिसगंज में कांग्रेस की चलती थी तब सरयू मिश्रा वहां के विधायक थे। उन्हीं के खिलाफ रेणु ने चुनाव लडऩे का फैसला लिया था। सरयू मिश्रा एवं रेणु जी परम मित्र थे। इस चुनाव में रेणु जी आजाद उम्मीदवार के रूप में थे, उनका चुनाव चिह्न नाव था। इस चुनाव में उनके एक अन्य परम मित्र लखनलाल कपूर सोशलिस्ट पार्टी से मैदान में थे। इस चुनाव वे महज साढ़े चार हजार मत ही प्राप्त कर चुनाव हार गए थे। इसके बाद उन्होंने अपने चुनाव चिह्न नाव को आधार बनाकर 'कागज की कश्ती' नामक उपन्यास की रचना शुरू कर दी। उनके पुत्र दक्षिणेश्वर प्रसाद राय पप्पू बताते हैं कि चुनाव मैदान में कूदने से पहले उन्होंने कहा था कि अगर मैं जीत गया तो छोटी-मोटी कहानियां लिखूंगा, अगर हार गया तो मोटी कहानियां लिखूंगा। इसी संदर्भ में उन्होंने कागज की नाव की रचना शुरू की जो अधूरी रह गई।
रेणु जी का चुनाव लडऩे का अंदाज भी अनोखा था अपने चुनाव चिन्ह के विषय में वे खेत खलिहानों में कार्य में जुटे मजदूर किसानों को जाकर बताते थे। रेणु जी के बड़े बेटे पूर्व विधायक पदम पराग राय वेणु बताते है कि पिता जी का चुनाव चिन्ह नाव था। चुनावी प्रचार के दौरान उनका जुमला (नारा ) काफी प्रचलित भी हुआ था- भैया गांठ बांध लो अबकी, इस बार वोट देंगे नाव में' तथा 'वोट दीजिए नाव पर, चावल दीजिए पाव भर'।
उनके पुत्र दक्षिणेश्वर प्रसाद राय पप्पू बताते हैं कि रेणु जी कहते थे चुनाव प्रचार के दौरान मैं रामायण की चौपाई का उद्धरण दूंगा। कबीर को उद्धृत करूंगा। आमिर खुसरो की बोली बोलूंगा। गालिब और मीर को गांव की बोली में प्रस्तुत करूंगा। पप्पू बताते है कि अपने गृह क्षेत्र फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र के अनेकों समस्या से वे आहत थे। हक-हकूक एवं वंचितों गरीबों की लड़ाई लड़ते रहते थे। इनको उन्होंने अपनी रचनाओं में भी बयां किया है। इसी को लेकर साहित्य और राजनीति को एक साथ साधने वाले रेणु ने एक बार चुनाव में भाग्य आजमाने का फैसला लिया था।
वेणु बताते है कि जेपी आंदोलन के दौरान फारबिसगंज के मार्केटिंग यार्ड में हुई महती सभा को संबोधित करते हुए उन्होनें (रेणु ने ) लोगों से कहा था कि आप ये नही समझे की मैं पुन: चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहा हूं। अब मैं कोई चुनाव नही लड़ूंगा। जानता की सेवा के अनेक रास्ते है़। मैं साहित्य, अखबार , पत्र पत्रिका के माध्यम से गरीब, किसान, मजदूरों की बात को रखूंगा। इससे इतर रेणु के पुत्र दक्षिणेश्वर बताते है़ कि जब जब चुनाव आता है़ तो सीमांचल के क्षेत्रों में वोटरों को आकर्षित करने के लिए चुनावी जन सभाओं में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री सहित विभिन्न दलों के नेताओं फणीश्वर नाथ रेणु व उनके साहित्य की चर्चा करते नहीं थकते। वही चुनाव के बाद रेणु को सब भूल जाते है। कितनी विडंबना है़ कि जब जब चुनाव आता है़ उसी समय रेणु सभी को याद आते है। जबकि चुनाव में चुनाव में रेणु परिजन को हासिये पर रख देते है।