दोषी कौन

पश्चिम सिंहभूम के अति पिछड़े इलाके में शुमार टोंटो प्रखंड के एक गांव में छात्र की बिजली पोल पर चढऩे से मौत हो गई।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 25 May 2017 05:26 AM (IST) Updated:Thu, 25 May 2017 05:26 AM (IST)
दोषी कौन
दोषी कौन

हाईलाइटर
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बिजली पोल पर चढऩे से हुई छात्र की मौत व्यवस्था की खामियों को उजागर कर रही है। इसपर गंभीर मंथन की जरूरत है ताकि इस तरह के हादसे को टाला जा सके।
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पश्चिम सिंहभूम के अति पिछड़े इलाके में शुमार टोंटो प्रखंड के एक गांव में छात्र की बिजली पोल पर चढऩे से मौत हो गई। पहली नजर में तो यह प्रतीत होता है कि वह बिजली पोल पर नहीं चढ़ा होता तो जान नहीं गई होती लेकिन उसकी मौत से उठे सवाल का दायरा बड़ा है। यह घटना व्यवस्था की खामियों को उजागर कर रही है और इसपर गंभीर मंथन की तस्दीक करा रही है ताकि आगे से इस तरह के हादसे को टाला जा सके। छात्र को बिजली पोल पर इसलिए चढऩा पड़ा क्योंकि इलाके में 15 दिनों से बिजली विभाग के संविदा कर्मी हड़ताल पर थे। बिजली आपूर्ति में होनेवाली गड़बड़ी को दुरुस्त करने की व्यवस्था ठप पड़ी हुई थी। इसी गड़बड़ी को अपने स्तर से ठीक करने को विवश हुआ छात्र पोल पर चढ़ा और अकाल मौत का शिकार हो गया। सवाल यह कि आखिर यह स्थिति अपने झारखंड में ही क्यों? व्यवस्थागत चीजों को पटरी पर लाने का काम गंभीरता के साथ क्यों नहीं किया जाता? विकास के लिए बिजली-पानी की उपलब्धता आवश्यक मानी जाती है। राज्य में बिजली की कैसी बदहाली है, इसपर कोल्हान में शोध किया जा सकता है। जमशेदपुर शहर में कंपनी कमांड एरिया से बाहर निकलते ही बिजली व्यवस्था की पोल खुलनी शुरू हो जाती है। हवा की रफ्तार जरा सी तेज हुई कि बिजली आपूर्ति काट दी जाती है। वजह जर्जर तारों को बताया जाता है। यदि आंधी-पानी का प्रकोप कुछ ज्यादा हो जाता है तो बिजली कब आएगी, बतानेवाला कोई नहीं मिलता। ग्र्रामीण इलाकों में तो स्थिति और भी गंभीर है। घंटों बिजली आती ही नहीं। आती भी है तो ज्यादा देर तक रहती नहीं। जब बिजली का यह दयनीय हाल हो तो फिर विकास की बात ही बेमानी है। आखिर सरकार 24 घंटे बिजली के सपने को कब हकीकत बनाएगी? शहरी इलाकों में अंडरग्र्राउंड केबलिंग की योजना कब प्रारंभ की जाएगी? जर्जर पोल व तार को बदलने के काम को अभियान के रूप में कब लिया जाएगा? बिजली बिल वसूलने से लेकर उपभोक्ताओं की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई की मुकम्मल व्यवस्था कब बनेगी? ये सभी प्रश्न अब भी अनुत्तरित हैं। यदि यह सब व्यवस्था बन गई होती तो टोंटो में उस छात्र की जान जाने की नौबत ही नहीं आती। काश, अब हम इस हादसे से भी कुछ सीख जाएं तो झारखंड का बहुत भला होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]

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