अपनी मूल विचारधारा से भटक चुकी है आज की कांग्रेस

जो राहुल गांधी कुछ समय पहले मंदिरों की दौड़ लगा रहे थे और खुद को जनेऊधारी ब्राह्म्ण साबित करने में लगे हुए थे वह पिछले कुछ समय से हिंदू और हिंदुत्व में अंतर बताने में लगे हुए हैं।

By Neel RajputEdited By: Publish:Wed, 29 Dec 2021 10:01 AM (IST) Updated:Wed, 29 Dec 2021 10:01 AM (IST)
अपनी मूल विचारधारा से भटक चुकी है आज की कांग्रेस
कांग्रेस की वैचारिक लड़ाई (फोटो : दैनिक जागरण)

कांग्रेस के स्थापना दिवस के अवसर पर पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भाजपा को निशाने पर लेते हुए एक बार फिर वह सब कुछ कहा, जो वह पहले भी कई बार कह चुकी हैं। उनके ऐसे कथन नए नहीं हैं कि देश का आम नागरिक असुरक्षित महसूस कर रहा है और संविधान को दरकिनार किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि संसदीय लोकतंत्र की परंपराओं को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। उनके इस कथन से संसद के शीतकालीन सत्र का स्मरण हो आना स्वाभाविक है, जिसे विपक्ष और खासकर कांग्रेस के हंगामे के कारण समय से एक दिन पहले खत्म करना पड़ा।

सवाल उठेगा कि आखिर इस हंगामे से कौन सी संसदीय परंपराएं समृद्ध हुईं? सोनिया गांधी की ओर से एक अर्से से दिए जा रहे एक जैसे बयान यही बताते हैं कि कांग्रेस में शीर्ष स्तर पर ही विचारों का अभाव है। भले ही सोनिया गांधी ने यह कहा हो कि कांग्रेस भाजपा से अपनी वैचारिक लड़ाई जारी रखेगी, लेकिन आज सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर देश के इस सबसे पुराने दल की विचारधारा क्या है? आज की कांग्रेस अपनी मूल विचारधारा से इतना भटक चुकी है कि किसी के लिए और यहां तक कि खुद कांग्रेसजनों के लिए भी यह समझना कठिन है कि कांग्रेस किन विचारों का प्रतिनिधित्व कर रही है? जो राहुल गांधी कुछ समय पहले मंदिरों की दौड़ लगा रहे थे और खुद को जनेऊधारी ब्राह्म्ण साबित करने में लगे हुए थे, वह पिछले कुछ समय से हिंदू और हिंदुत्व में अंतर बताने में लगे हुए हैं।

यह भी किसी से छिपा नहीं कि कांग्रेस किस तरह वामपंथी विचारों को आत्मसात कर चुकी है। वह न केवल उद्यमियों के साथ उद्यमशीलता पर प्रहार करने में लगी हुई है, बल्कि गरीबों को गरीब बनाए रखने वाली नीतियों का पोषण कर रही है। कांग्रेस हो या कोई अन्य दल, वह अपनी लड़ाई तभी लड़ सकता है, जब खुद उसकी अपनी विचारधारा स्पष्ट हो। समस्या केवल यह नहीं कि कांग्रेस अपनी विचारधारा को लेकर असमंजस से ग्रस्त है, बल्कि यह भी है कि वह यह नहीं तय कर पा रही है कि पार्टी का संचालन कैसे किया जाए? क्या यह विचित्र नहीं कि सोनिया गांधी ने पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर ऐसे कोई ठोस संकेत देना आवश्यक नहीं समझा कि वह कब तक अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी और कांग्रेस को अगला अध्यक्ष कब मिलेगा? ऐसे कोई संकेत न मिलने से तो यही स्पष्ट होता है कि वही कामचलाऊ व्यवस्था कायम रहेगी, जो सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद से लागू है और जिसके तहत राहुल गांधी पर्दे के पीछे से पार्टी चला रहे हैं।

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