ईवीएम पर भरोसा, EVM को बदनाम करने के अभियान पर लगी लगाम

ईवीएम की विश्वसनीयता और उपयोगिता प्रमाणित हो चुकी है लेकिन कुछ लोग और साथ ही राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक संगठन उस पर बेवजह सवाल उठाने से बाज नहीं आ रहे हैं। वे रह-रहकर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं। उच्चतर न्यायपालिका को ऐसे तत्वों को हतोत्साहित करना चाहिए अन्यथा वे कोई न कोई बहाना लेकर ईवीएम के खिलाफ मोर्चा खोलते ही रहेंगे।

By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya Publish:Fri, 26 Apr 2024 10:00 PM (IST) Updated:Fri, 26 Apr 2024 10:00 PM (IST)
ईवीएम पर भरोसा, EVM को बदनाम करने के अभियान पर लगी लगाम
ईवीएम पर भरोसा, EVM को बदनाम करने के अभियान पर लगी लगाम (File Photo)

यह अच्छा हुआ कि बेतुकी दलीलों और कुछ फर्जी खबरों के सहारे ईवीएम का बटन दबाते समय दिखने वाली पर्ची यानी वीवीपैट के सौ प्रतिशत मिलान की मांग वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। ईवीएम से प्राप्त नतीजों का सभी वीवीपैट से मिलान करने की मांग एक तरह से पिछले दरवाजे से मतपत्र से चुनाव कराने की पैरवी ही थी।

यह पैरवी इससे भली तरह अवगत होने के बाद भी की जा रही थी कि मतपत्रों से चुनाव के समय किस तरह धांधली होती थी और मतपेटियां लूटने के साथ नतीजे आने में समय लगता था। बंगाल में तो पंचायत चुनावों में अभी भी मतपेटियां लूटने का काम होता है। ईवीएम के खिलाफ पहले भी सवाल उठते रहे हैं और उनका समाधान भी किया गया है।

पहले वोटर को यह नहीं दिखता था कि उसका वोट वांछित प्रत्याशी को गया या नहीं? यह दिखाने के लिए वीवीपैट की व्यवस्था की गई। फिर प्रत्येक संसदीय क्षेत्र के हर विधानसभा के एक बूथ की ईवीएम से मिले नतीजों का मिलान वीवीपैट से किया जाने लगा। इसके बाद यह मिलान पांच बूथों पर होने लगा। इसके बाद भी कुछ लोग संतुष्ट होने को तैयार नहीं। इनमें याचिकाबाज वकीलों के साथ कुछ राजनीतिक दल भी हैं। इनमें वे दल भी हैं, जो ईवीएम से हुए चुनावों में जीत हासिल कर सत्ता तक पहुंचे हैं।

ईवीएम की विश्वसनीयता और उपयोगिता प्रमाणित हो चुकी है, लेकिन कुछ लोग और साथ ही राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक संगठन उस पर बेवजह सवाल उठाने से बाज नहीं आ रहे हैं। वे रह-रहकर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं। उच्चतर न्यायपालिका को ऐसे तत्वों को हतोत्साहित करना चाहिए, अन्यथा वे कोई न कोई बहाना लेकर ईवीएम के खिलाफ मोर्चा खोलते ही रहेंगे, क्योंकि उन्होंने ऐसा करने को अपना धंधा बना लिया है।

ऐसे तत्व विदेशी मीडिया के उस हिस्से को भी खाद-पानी देने का काम करते हैं, जिसे न तो भारत की प्रगति रास आ रही है और न ईवीएम की सफलता पच रही है। क्या यह हास्यास्पद नहीं कि ईवीएम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे वकील प्रशांत भूषण ने यह दलील दी कि वह यह दावा तो नहीं करते कि इस मशीन से छेड़छाड़ हो रही है, लेकिन ऐसा हो सकता है। ईवीएम विरोधी यह भी दलील दे रहे थे कि मतदान की गोपनीयता भंग होने की चिंता नहीं की जानी चाहिए।

यदि ईवीएम विरोधियों की यह मांग मान ली जाती कि सभी वीवीपैट की गिनती की जाए तो उससे नतीजे मिलने में कम से कम 12-15 दिन का समय तो लगता ही, खर्च भी बहुत अधिक बढ़ जाता। यह ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम पर भरोसा जताया और सभी याचिकाएं खारिज कर दीं, लेकिन बेहतर होता कि वह इस मशीन को बदनाम करने के अभियान पर लगाम भी लगाता।

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