जीने की जद्दोजहद

बाढ़ जब आती है तो जीने की जद्दोजहद में प्रभावित व्यक्ति की संवेदना के साथ-साथ विवेक को भी निगलने लगती है। कटिहार में बुधवार को ऐसा ही हुआ।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 29 Jul 2016 04:02 AM (IST) Updated:Fri, 29 Jul 2016 04:04 AM (IST)
जीने की जद्दोजहद

बाढ़ जब आती है तो जीने की जद्दोजहद में प्रभावित व्यक्ति की संवेदना के साथ-साथ विवेक को भी निगलने लगती है। कटिहार में बुधवार को ऐसा ही हुआ। अपनी जान बचाने के लिए लोगों ने तटबंध पर ही हमला बोल दिया। इससे महानंदा का पानी उन सुरक्षित गांवों में प्रवेश कर गया है, जो बाढ़ के कोप से बचे हुए थे। चाहकर भी तटबंध के बाहर बसे लोग और प्रशासनिक अधिकारी हरवे हथियार से लैस हमलावरों को रोक नहीं पाये। यह घटना महानंदा नदी के दाएं तटबंध पर कचोरा और कुरसेला के बीच परतीबाड़ी में हुई। अपने गांव को बचाने के लिए तटबंध के अंदर बसे लोगों ने तटबंध काटने में तनिक भी दूसरों का ख्याल नहीं रखा। नदी का पानी बाहरी क्षेत्र में फैल जाने से कटिहार-पूर्णिया मार्ग अवरुद्ध हो गया है। हालात बिगड़ता देख बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में सेना उतारी गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वे किया। वे हालात से अवगत हुए तथा अधिकारियों को बचाव व राहत कार्य के लिए दिशा निर्देश दिया। नेपाल के जलग्र्रहण क्षेत्र में हो रही बारिश बिहार के कोसी, सीमांचल और उत्तर बिहार के कई क्षेत्रों में तबाही मचाने लगी है। इन क्षेत्रों की लाखों की आबादी विस्थापन का दंश झेलने को विवश है। सड़क संपर्क भंग होने से कई क्षेत्र टापू में तब्दील हो गए हैं। दर्जनों गांव में नदियों का पानी फैल गया है। फिलहाल कई क्षेत्रों में फौरी तौर पर राहत पहुंचने की सूचना नहीं है। इन क्षेत्रों में स्थानीय प्रशासन को सक्रिय करने की जरूरत है।

सबसे बड़ी समस्या आवासन की है। ऊंचे स्थानों पर ठिकाना बनाए लोगों को पेयजल से लेकर खाने-पीने की सामग्र्री तक की परेशानी झेलनी पड़ रही है। हर तरफ पानी होने से पशुओं के चारे की विकट समस्या है। प्रशासन की कोशिश हो कि विस्थापित होकर विभिन्न बांधों और ऊंचे स्थानों पर शरण लिये लोगों को चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराए। खासकर पेयजल का अभाव और कीड़े-मकोड़े के प्रकोप से कई तरह की बीमारियों का खतरा बना रहता है। इन क्षेत्रों में कटाव की वजह से कई घर नदी में समा चुके हैं। ऐसे लोगों का विस्थापन ज्यादा कष्टकर होता है, क्योंकि कुछ दिनों के लिए ऊंचे स्थान पर शरण लेने के बाद पुन: गांव में लौट आने वाली आबादी तो जैसे-तैसे खुद को पुन: व्यवस्थित कर लेती है, लेकिन जिनका आशियाना ही नदी की भेंट चढ़ गया हो वे अर्थाभाव में दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हो जाते हैं। ऐसी आबादी को विस्थापन से बचाने के लिए शासन ही नहीं, स्वयं सेवी संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए। गांवों का सड़क संपर्क भंग होने से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी नावों पर निर्भर हो गई है। ऐसे क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में नावों की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि आपात स्थिति में वहां पहुंचा जा सके। मुजफ्फरपुर-दरभंगा एनएच-57 पर बागमती का खतरा बना हुआ है। नदी का जलस्तर बढऩे से एनएच पर दबाव बढ़ेगा। कहीं-कहीं बांध टूटने से फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। मधेपुरा में नहर का बांध टूटने से तीन सौ एकड़ की धान की फसल डूब गई है। फिलहाल स्थानीय प्रशासन का मुख्य कार्य बचाव और राहत होना चाहिए। सेना के साथ-साथ विभिन्न संगठनों और स्वयंसेवी संस्थाओं को सामूहिकता के साथ इस आपदा से निबटने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि नुकसान को कम किया जा सके।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]

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