बहुमत वाली सरकार की और बड़े बहुमत से सत्ता में हुई वापसी

एसा कई अर्से बाद हुआ है जब किसी बहुमत वाली सरकार की और बड़े बहुमत से सत्ता में वापसी हुई है।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Fri, 24 May 2019 10:06 AM (IST) Updated:Fri, 24 May 2019 10:06 AM (IST)
बहुमत वाली सरकार की और बड़े बहुमत से सत्ता में हुई वापसी
बहुमत वाली सरकार की और बड़े बहुमत से सत्ता में हुई वापसी

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा और उसका गठबंधन जैसी शानदार जीत हासिल करता दिख रहा उससे भारतीय राजनीति एक नया आयाम रचती दिख रही है। यह अर्से बाद है जब कोई बहुमत वाली सरकार और बड़े बहुमत से सत्ता में लौट रही है। मोदी सरकार बिना किसी भावनात्मक मुद्दे के सहारे सत्ता में वापसी करके यही बता रही है कि काम के आधार पर भी प्रचंड जीत पाई जा सकती है। पांच साल पहले मोदी के नेतृत्व में जब भाजपा ने अपने बलबूते बहुमत हासिल किया था तो बार-बार यह रेखांकित किया गया था कि यह तो संप्रग शासन के प्रति आम लोगों की नाराजगी और साथ ही नरेंद्र मोदी की ओर से किए गए अच्छे दिन के वायदे का असर है। पांच साल बाद अगर मोदी ने और अधिक बहुमत हासिल किया तो इसका सीधा मतलब है कि उन्होंने सत्ता विरोधी रुझान को मात दे दी। ऐसा तभी होता है जब जनता को यह यकीन हो जाए कि जो पांच साल में नहीं हो सका वह आने वाले समय में अवश्य होगा। इतने बड़े देश में जहां समस्याओं का अंबार हो और जहां कोई भी सरकार पांच साल में चाहकर भी सब कुछ नहीं कर सकती वहां सत्ता विरोधी प्रभाव को कम करना किसी करिश्मे से कम नहीं। अबकी बार भाजपा की झोली में अधिक सीटें दिख रही हैं तो इसका एक बड़ा कारण उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में उसका बेहतर प्रदर्शन तो है ही, उन कई राज्यों में भी बढ़त हासिल करना है जहां उसे पिछली बार भी उल्लेखनीय जीत मिली थी। राजनीति में चुनावी सफलता मुश्किल से ही दोहराई जाती है, लेकिन मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने यह काम कर दिखाया।

जब यह माना जा रहा था कि उत्तर प्रदेश और बिहार सरीखे राज्य जातिवादी राजनीति की ओर लौट सकते हैं तब अगर इस तरह की राजनीति करने वाले दलों के मेल-मिलाप से भी ऐसा नहीं हुआ तो इससे यही रेखांकित हो रहा है कि देश का मानस बदल रहा है। यह बदलना भी चाहिए, क्योंकि जाति के आधार पर किसी दल के पक्ष या विरोध में गोलबंद होना लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुकूल नहीं। जातिवादी राजनीति के प्रति देश के बदलते मानस को प्रोत्साहित करना होगा, क्योंकि इससे एक तो जात-पांत के बजाय सरकारों के काम-काज के आधार वोट देने का सिलसिला कायम होगा और दूसरे, मजहबी आधार पर गोलबंदी को भी थामा जा सकेगा। वास्तव में ऐसा होने पर ही नए भारत का निर्माण आसानी से हो सकेगा। यह अच्छा है कि सत्ता में और मजबूती से लौटे मोदी अपनी नई पारी के लिए कमर कसे हुए हैं। यह जरूरी है, क्योंकि कई मोर्चो पर चुनौतियां उनका इंतजार कर रही हैं। उन्हें उनसे पार पाना ही होगा। इसी के साथ यह भी अपेक्षित है कि विपक्ष अपनी पराजय के मूल कारणों की छानबीन करने का काम ईमानदारी से करे। उसे यह समझ आए तो बेहतर कि विरोधी के प्रति जरूरत से ज्यादा नकारात्मक प्रचार उसके पक्ष में माहौल बनाने का काम करता है। इस बार ऐसा ही हुआ और इसका एक बड़ा प्रमाण कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अमेठी में मिली पराजय है।

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