International Day of Older Persons 2019: जानें-शहरों में बच्चे क्रेच में और बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहने को विवश क्‍यों?

International Day of Older Persons 2019 वर्तमान समय में अधिकांश लोगों की दौड़ती-भागती जिंदगी के बीच समाज में वृद्धों की देखभाल सही तरीके से नहीं हो पा रही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 01 Oct 2019 10:20 AM (IST) Updated:Tue, 01 Oct 2019 03:46 PM (IST)
International Day of Older Persons 2019: जानें-शहरों में बच्चे क्रेच में और बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहने को विवश क्‍यों?
International Day of Older Persons 2019: जानें-शहरों में बच्चे क्रेच में और बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहने को विवश क्‍यों?

[मुनि शंकर]। International Day of Older Persons 2019: प्रसिद्ध विचारक जेम्स गारफील्ड ने कहा है, ‘यदि वृद्धावस्था की झुर्रियां पड़ती हैं तो उन्हें हृदय पर मत पड़ने दो। कभी भी आत्मा को वृद्ध मत होने दो।’ मगर आज ये झुर्रियां अपनों के बर्ताव के कारण बहुत से वृद्धों के चेहरे पर समय से पहले दिखने लगती हैं। वर्तमान समय में हमारे देश में वरिष्ठ नागरिकों की आबादी 11 करोड़ से अधिक है। इस लिहाज से एक आंकड़ा यह भी है कि दुनिया के हर दसवें बुजुर्ग का घर भारत है।

संयुक्त परिवारों का स्थान एकल परिवारों ने लिया

हम सब जानते हैं कि वर्ष 1991 के बाद आर्थिक नीतियों के बदलाव ने कृषि को घाटे का सौदा बना दिया और लगातार अंधाधुंध शहरीकरण पर जोर दिया गया, तथा उसकी चमक में सर्वाधिक योगदान करने वाले सेवानिवृत्त हो रहे हैं। विगत दशकों में संयुक्त परिवारों का स्थान बड़े पैमाने पर एकल परिवारों ने लिया है, जिससे ना केवल सामाजिक तानाबाना बिखरा, बल्कि पीढ़ियों से जो संस्कार आसानी से अगली पीढ़ी तक पहुंच जाते थे उसमें कमी भी आ रही है। अब शहरों में बच्चे क्रेच में पलने और बुजुर्ग ओल्ड एज होम्स या वृद्धाश्रम में रहने को विवश हैं।

समाज और संस्कृति के लिए अहितकारी

यही कारण है कि बड़े शहरों में विगत एक दशक में ओल्ड एज होम्स की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। केवल पिछले एक दशक में हैदराबाद शहर में ही 500 से ज्यादा ओल्ड एज होम खोले गए हैं, जो हमारे देश, समाज और संस्कृति के लिए अहितकारी है। भारतीय संस्कृति के चिरकालिक होने में नानी के किस्सों व दादी के नुस्खों का भी योगदान रहा है। मौजूदा पीढ़ी अपने निर्माताओं के योगदान को नजरअंदाज करते हुए उन्हें अकेलेपन, असहायता के साये में धकेल रही है।

वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल एवं कल्याण कानून

कुछ दिन पहले वरिष्ठ नागरिकों की वर्तमान स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि केंद्र सरकार अपनी योजनाओं का पुनर्मूल्यांकन करे और ये वरिष्ठ नागरिकों के गरिमामय जीवन का निर्वहन सुनिश्चित करे। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने केंद्र को निर्देश देते हुए कहा कि केंद्र सरकार सभी राज्यों से प्रत्येक जिले में वरिष्ठ नागरिकों के लिए उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं और ओल्ड एज होम की स्थिति के बारे में अदालत को जानकारी उपलब्ध कराए। साथ ही ‘वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल एवं कल्याण कानून, 2007’ के प्रावधानों का समुचित प्रचार करने के लिए कार्ययोजना तैयार करे जिससे वरिष्ठ नागरिकों और आम लोगों को बुजुर्गों की उनके संवैधानिक और विधायी अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा सके।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो

इससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय भी मानता है कि हमारे यहां वरिष्ठ नागरिकों का अपमान किया जा रहा है। पीठ ने इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा है कि वरिष्ठ नागरिकों को यह अधिकार है कि अगर उनके बच्चे उनका समुचित ख्याल नहीं रखते तो वो उन्हें अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं। हाल के वर्षों में वरिष्ठ नागरिकों के प्रति अपराधों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। ज्यादातर मामलों में अपराधी करीबी रिश्तेदार या नौकर पाए जाते हैं जो वरिष्ठ नागरिकों की स्थिति से भलीभांति परिचित होते हैं। ‘राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो’ ने भी यह माना है कि वरिष्ठ नागरिकों के प्रति अपराध बढ़े हैं और सबसे आम अपराध लूटपाट की घटनाएं हैं जो इनके साथ घटित होती हैं।

बुजुर्गों के खिलाफ अपराध ज्यादा

राजधानी दिल्ली में तो पूरे भारत की तुलना में लगभग पांच गुना से ज्यादा अपराध बुजुर्गों के खिलाफ ही हुए हैं। ये वे अपराध हैं जो रिपोर्ट किए जाते हैं। देखा गया है कि बुजुर्गों को मिलने वाली पेंशन अक्सर उनके बच्चे हड़प लेते हैं और असहाय बुजुर्ग कुछ नहीं कर पाते। घरों में होने वाली मारपीट, भोजन न देना, कमरे में अकेले बंद करना जैसी कई घटनाएं आजकल सामान्य हो गई हैं जो वरिष्ठ नागरिकों को झेलनी पड़ती हैं। जिस संस्कार के बीज वो बो रहे हैं, उसके वृक्ष तले उन्हें भी सुकून नहीं मिलेगा।

कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी

वर्तमान में वरिष्ठ नागरिकों की समस्या के समाधान के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों एवं सामाजिक स्वयंसेवी संगठनों को मिलकर कार्य करना होगा। हालांकि हाल ही में भारत सरकार द्वारा लिया गया निर्णय जिसमें सीएसआर यानी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के खर्च में केंद्र और राज्य की सरकारी शिक्षण संस्थाओं और शोध में संलग्न संस्थाओं के लिए खोल दिया गया, जिसके फलस्वरूप अन्य आर्थिक मंदी से गुजर रही स्वयंसेवी संस्थाओं को जो धन मिलने की संभावना थी वो भी अब कम हो जाएगी।

अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस, एक विशेष दिन

भारत सरकार के सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं का लाभ वरिष्ठ नागरिकों को मिल तो रहा है, लेकिन उसके और अधिक प्रसार की जरूरत है। हालांकि आज यानी एक अक्टूबर, अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस, एक विशेष दिन है जब सरकार वृद्धों को समर्पित लोगों, संस्थाओं और सक्रिय बुजुर्ग नागरिकों को उनके विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत करती है।

बुजुर्ग नागरिकों की संख्या में वृद्धि

यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि जिस तेजी से बुजुर्ग नागरिकों की संख्या में वृद्धि हो रही है, स्वास्थ्य सुविधाओं में बढ़ोतरी नगण्य है। भारत में अभी भी जरा चिकित्सा विशेषज्ञों (जेरियाट्रिक एक्सपट्र्स) का बहुत अभाव है। साथ ही आयुष मंत्रालय में भी वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य के संदर्भ में शोध की कमी है। हमें जापान और दक्षिण कोरिया से सीख लेनी चाहिए, जिन्होंने अपने वरिष्ठ नागरिकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए उनके अनुभव और योग्यता का सर्वाधिक लाभ देशहित में लिया है।

वैसे भी भारत की युवा आबादी की ऊर्जा और वरिष्ठ नागरिकों के अनुभव का समुचित संगम हो जाए तो बहुत कुछ हो सकता है। इसकी मिसाल ‘इसरो’ है, जहां के वैज्ञानिकों को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी स्वेच्छा से कार्य करने का अवसर दिया जाता है। किसी शायर ने युवाओं के लिए सच ही लिखा, ‘जब चलना सीखा था तुमने तो उन्होंने ऊंगली थमाई थी, आज कुछ देना नहीं बस चुकाना है उन्हीं का, जिन्होंने आपकी खातिर सारी दौलत लुटाई थी।’

[स्वतंत्र पत्रकार]

यह भी पढ़ें:

अकेलेपन को यूं दूर कर रहे बुजुर्ग, जीवन की हर शाम को बना रहे मस्तानी

लोकसभा चुनाव 2019 : झुर्रियों से झांकता लोकतंत्र का पर्व, वृद्धाआश्रम तक चुनावी उफान

chat bot
आपका साथी