दम मारो दम की संस्कृति को करें खारिज

नशाखोरी के खिलाफ पिछले 28 वर्षों से एक संस्था के रूप में काम करने के दौरान हमने कई तथ्यों, आंकड़ों और खतरनाक प्रवृत्तियों को उभरते हुए देखा है:

By Rajesh NiranjanEdited By: Publish:Mon, 10 Nov 2014 01:40 AM (IST) Updated:Mon, 10 Nov 2014 01:42 AM (IST)
दम मारो दम की संस्कृति को करें खारिज

नशाखोरी के खिलाफ पिछले 28 वर्षों से एक संस्था के रूप में काम करने के दौरान हमने कई तथ्यों, आंकड़ों और खतरनाक प्रवृत्तियों को उभरते हुए देखा है:

* नशाखोरी करने वाले व्यक्तियों की औसत आयु में कमी आई है।

* महिलाओं और किशोरों में नशाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ी है।

* इंटरनेट, मोबाइल फोन, टेलीविजन जैसे साधनों से व्यवहारगत व्यसन की प्रवृत्ति में इजाफा हुआ है।

इन सबके पीछे प्रमुख कारण यह है नशीले पदार्थों शराब, वाइन, बीयर और सिगरेट का आकर्षण और सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ी है। युवाओं में इनका आकर्षण बढ़ाने के लिए प्रमुख रूप से हिंदी सिनेमा को जिम्मेदार माना जाता है। फिल्मी दृश्य और गाने नकारात्मक संदेश देते हैं और युवा पीढ़ी अपने पसंदीदा कलाकारों और रोल मॉडल को फिल्मों में देखकर गलत ढंग से प्रभावित हो जाते हैं। कई फिल्मी गाने 'पियो दारू' जैसा प्रत्यक्ष संदेश देते हैं। इन नशीले पदार्थों के बारे में दो प्रमुख गलत धारणाएं हैं:

1. ये आनंद प्रदान करते हैं।

2. तनाव कम करने में सहायक होते हैं। हर फिल्म में जब हीरो अथवा हीरोइन आनंद या संकट के क्षणों में ड्रिंक करते हैं तो इस गलत धारणा को पेश किया जाता है। कई फिल्म स्टार युवाओं के रोल मॉडल भी होते हैं। वे उस स्टार की हेयर स्टाइल और फैशन को कॉपी करने के साथ उसके सिगरेट पीने और ड्रिंक करने के अंदाज को भी अपनाने की कोशिश करते हैं। हमारे केंद्र में इलाज करवाने के लिए आने वाले युवाओं से पूछने पर वे नशाखोरी के लिए इस कारण को प्रमुख वजह बताते हैं। हालांकि अब हिंदी सिनेमा में सिगरेट या शराब के दृश्यों से पहले 'वैधानिक चेतावनी' आती है लेकिन सेंसर बोर्ड को ऐसे दृश्यों को पूरी तरह से फिल्म से हटा देना चाहिए।

किशोर अपने साथियों से नशाखोरी सीखते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि स्कूलों में नशाखोरी के दुष्प्रभावों के विषय में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रयास करना चाहिए। उच्च कक्षाओं के स्कूली पाठ्यक्रम में इसको हिस्सा बनाया जाना चाहिए। एजुकेशन बोर्ड द्वारा इस क्षेत्र में काउंसलरों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और ऐसे मामलों से निपटने के लिए संबंधित कानूनी एजेंसियों को विशेष ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।

उल्लेखनीय है कि भारत इस वक्त दुनिया में सबसे युवा देशों की श्रेणी में शामिल है और ये युवा राष्ट्र का भविष्य हैं। इसलिए उनमें नशाखोरी के खिलाफ एक सतत अभियान चलाए जाने की जरूरत है। एक संस्था के रूप में हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह आशा करते हैं कि अगली बार राष्ट्र को संबोधित करने के दौरान इस विषय पर जोर देते हुए युवा पीढ़ी को नशाखोरी के दुष्प्रभावों के बारे में बताएंगे। जीवन के सभी क्षेत्रों में बढ़ती नशाखोरी के कारण ऐसे लोगों को सहयोग, सहायता और मार्गदर्शन की जरूरत है।

-मुक्ता पुणतांबेकर [डिप्टी डायरेक्टर, मुक्तांगण, पुणे]

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