उपयोगी बने फसल बीमा योजना: बीमा कंपनियों को किसानों के बीच साख कायम करने की जरूरत

योजनाओं की संरचना किसानोन्मुखी हो नुकसान की भरपाई अविलंब हो तथा प्रीमियम के अनुपात में भुगतान की राशि उत्साहवर्धक हो।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 06 Feb 2020 01:29 AM (IST) Updated:Thu, 06 Feb 2020 01:29 AM (IST)
उपयोगी बने फसल बीमा योजना: बीमा कंपनियों को किसानों के बीच साख कायम करने की जरूरत
उपयोगी बने फसल बीमा योजना: बीमा कंपनियों को किसानों के बीच साख कायम करने की जरूरत

[ केसी त्यागी ]: हाल में पेश की गई आर्थिक समीक्षा में यह स्वीकारोक्ति की गई है कि फसल बीमा योजना किसानों को बहुत ज्यादा रास नहीं आ रही। समीक्षा में यह भी कहा गया है कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने जैसे लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों में क्रेडिट, इंश्योरेंस कवरेज तथा सिंचाई की सुविधाओं आदि जैसी बुनियादी चुनौतियों का गंभीरता से समाधान किए जाने की त्वरित आवश्यकता है। समीक्षा में 50 प्रतिशत किसानों को फसल बीमा के दायरे में लाए जाने का भी उल्लेख है।

फसल बीमा योजना के सफल क्रियान्वयन को लेकर सरकार गंभीर

आम बजट में फसल बीमा योजना के लिए 15,695 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं जो गत वर्ष की तुलना में 1695 करोड़ रुपये अधिक है। यह दर्शाता है कि सरकार इस योजना के सफल क्रियान्वयन को लेकर गंभीर है। हालांकि पिछले तीन वर्षों के दौरान किसानों के बीच इस योजना को लेकर पनपी उदासीनता चिंताजनक है।

बीमा योजना की समीक्षा के लिए मंत्रियों का सात सदस्यीय समूह गठित

जब जनवरी 2016 में ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ शुरु हुई तब किसानों में भारी उत्साह का संचार हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे उसे लेकर नकारात्मक तथ्य सामने आने लगे। राहत की बात यह है कि केंद्र सरकार ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में मंत्रियों का एक सात सदस्यीय समूह गठित किया है। यह समूह बीमा योजना की समीक्षा करके इसे और बेहतर बनाने की दिशा में सुझाव देगा। यह ध्यान रहे कि कई राज्यों द्वारा मौजूदा योजना में बदलाव की मांग की जा चुकी है। कई राज्य सरकारों द्वारा इस योजना से दूरी बनाने के कारण भी केंद्र को इस योजना में संशोधन के लिए उन्मुख होना पड़ा।

फसल बीमा योजना में बीमित किसानों की संख्या घटी

पिछले तीन वर्षों से फसल बीमा योजना में बीमित किसानों की संख्या और खेती का दायरा लगातार घटा है। प्रीमियम के रूप में सरकारी-गैर सरकारी बीमा कंपनियों के मुनाफे में तेज बढ़ोतरी भी योजना की सफलता पर सवाल खड़े करती है।

योजना से कंपनियों को हुआ फायदा, किसानों को नहीं हुआ अपेक्षित लाभ

आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016-17 में कंपनियों को 21,892 करोड़ रुपये बतौर प्रीमियम मिले जबकि 16,659 करोड़ रुपये के क्लेम दिए गए। इसी तरह 2017-18 में 25,461 करोड़ रुपये का प्रीमियम जमा हुआ और 21,680 करोड़ रुपये का क्लेम किसानों को भुगतान किया गया। इससे स्पष्ट है कि योजना से कंपनियों को फायदा हुआ। वहीं किसानों को अपेक्षित लाभ नहीं हुआ।

कई राज्यों की बेरुखी से इस योजना को लगा बट्टा

एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा बंगाल द्वारा 2017-18 के प्रीमियम का अपना हिस्सा अभी तक अदा नहीं किया गया है। इससे इतर बिहार एवं पंजाब सरकार इस योजना के बजाय अपनी ही बीमा योजना संचालित कर रही हैं। जून 2018 तक बिहार में अन्य बीमा योजना समेत प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना चलाई जा रही थी, लेकिन मुआवजे की राशि कम होने और सभी किसानों को इसका लाभ न मिल पाने की वजह से राज्य में फसल सहायता योजना की शुरुआत की गई जिसके तहत फसल की वास्तविक उपज दर में 20 फीसद तक की कमी होने पर 7,500 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से अधिकतम 15 हजार और 20 प्रतिशत से अधिक क्षति होने पर 10 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से अधिकतम 20 हजार रुपये दिए जाने का प्रावधान है।

किसानों द्वारा प्रीमियम का भुगतान- खरीफ और रबी फसलों के लिए अलग-अलग

प्राकृतिक आपदाओं, कीट, रोगों के परिणामस्वरूप अधिसूचित फसल में से किसी भी विफलता की स्थिति में किसानों को बीमा कवरेज और वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लोकप्रिय रही। इस योजना के तहत किसानों द्वारा सभी खरीफ फसलों के लिए केवल दो प्रतिशत एवं सभी रबी फसलों के लिए 1.5 फीसद का एक समान प्रीमियम का भुगतान किए जाने का प्रावधान है। शेष प्रीमियम केंद्र व राज्य सरकार द्वारा बराबर-बराबर वहन किए जाने की व्यवस्था है।

खेती को घाटे से उबारने की दिशा में यह योजना उपयोगी है

किसानों की आमदनी दोगुनी करने की दिशा में इस योजना का अहम योगदान भी अपेक्षित था। किसानों की आय को स्थायित्व प्रदान करने, कृषि में नवाचार एवं आधुनिक पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने, इस क्षेत्र में ऋण के प्रवाह सुनिश्चित करने आदि की दिशा में यह कल्याणकारी भी है और खेती को घाटे से उबारने की दिशा में उपयोगी भी। काफी समय से मांग हो रही है कि किसानों के लिए यह बीमा योजना स्वैच्छिक हो और अधिक प्रीमियम वाली फसलों को इससे बाहर रखा जाए।

पूरा प्रीमियम सरकार अदा करे

कुछ संगठनों की यह भी मांग है कि पूरा प्रीमियम सरकार अदा करे। वैसे भी यह ठीक नहीं कि ऐसी योजना से निजी कंपनियां मालामाल हों। यह जरूरी है कि इस योजना का उचित क्रियान्वयन हो। चूंकि यह योजना खेती को लाभप्रद बनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निवेश के लिए बनाई गई थी, तो इसे निजी कंपनियों के मकड़जाल से बचाने की जरूरत है।

कई संकटों के कारण किसानों की आय में वृद्धि तो दूर स्थिरता भी नहीं बन पाती

भारतीय किसान संकटों का सामना करने पर मजबूर हैं। तमाम प्राकृतिक आपदाएं उनकी परेशानियां बढ़ाती रही हैं। इससे इतर फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिल पाना भी एक समस्या है। इन कारणों से किसानों की आय में वृद्धि तो दूर स्थिरता भी नहीं बन पाती है।

किसानों की रक्षा के लिए फसल बीमा योजना चलाई गई थी

हालांकि ऐसे दुष्प्रभावों से किसानों की रक्षा के प्रयास में 1972 में ही फसल बीमा योजना चलाई गई थी। 1985 में व्यापक फसल बीमा योजना की शुरुआत हुई थी। यह पहली राष्ट्रव्यापी योजना थी। 1999 तक यह योजना 15 राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों में मूर्त रूप भी लेने लगी, लेकिन यह मुख्य रूप से कर्जदार किसानों के लिए थी। 1999 में राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना भी चलाई गई, लेकिन इन योजनाओं में किसानों के बड़े समूहों की कोई दिलचस्पी नहीं रही।

2012-13 में देश के मात्र सात प्रतिशत किसानों ने एक फसल का बीमा कराया था

आंकड़ों पर गौर करें तो 2012-13 में देश के मात्र सात प्रतिशत किसानों ने अपनी एक फसल का बीमा कराया था। 2002-2003 में यह आंकड़ा चार प्रतिशत हो गया। एक अध्ययन की मानें तो लगभग 66 प्रतिशत किसानों को बीमा योजनाओं की जानकारी नहीं है।

बीमा कंपनियों को है किसानों के बीच अपनी साख कायम करने की जरूरत

इस सूरत में स्पष्ट है कि बीमा कंपनियों को किसानों के बीच अपनी साख और विश्वास कायम करने की जरूरत है। योजनाओं की संरचना किसानोन्मुखी हो, नुकसान की भरपाई अविलंब हो तथा प्रीमियम के अनुपात में भुगतान की राशि उत्साहवर्धक हो।

( लेखक जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं )

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