Trade War: ‘मेक इन इंडिया’ के बढ़ते जलवे से कुछ कम हुई है 'मेड इन चाइना' की चमक

भारत और चीन के बीच व्‍यापारिक घाटा काफी बड़ा है। इसके बावजूद मेक इन इंडिया की वजह से चीन के उत्‍पादों को कम करने में कुछ सफलता हमें जरूर मिली है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Wed, 30 Oct 2019 10:38 AM (IST) Updated:Wed, 30 Oct 2019 10:38 AM (IST)
Trade War: ‘मेक इन इंडिया’ के बढ़ते जलवे से कुछ कम हुई है 'मेड इन चाइना' की चमक
Trade War: ‘मेक इन इंडिया’ के बढ़ते जलवे से कुछ कम हुई है 'मेड इन चाइना' की चमक

सुशील कुमार सिंह। अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर की समस्या के चलते चीन ने अपने उत्पाद के लिए प्रमुख बाजार के रूप में भारत से विवाद कम करने की दिशा में एक पहल की जिसमें चीन ने बढ़ते व्यापार घाटे को लेकर भारत की चिंताओं का समाधान करने का वादा किया। इसके साथ ही द्विपक्षीय वाणिज्यिक रिश्तों में संतुलन कायम करने के लिए औद्योगिक उत्पादन, पर्यटन और सीमा व्यापार जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का सुझाव दिया है। चीन के साथ भारत का वार्षिक व्यापार 95 अरब डॉलर से अधिक का है और रही बात घाटे की तो भारत का दुनिया में कुल व्यापार घाटा 105 अरब डॉलर के मुकाबले आधे से अधिक घाटा केवल चीन से है।

हतोत्साहित करना मुश्किल

भारत में चीन के उत्पाद जिस तरह स्थान बना चुके हैं उसे हतोत्साहित करना मुश्किल है। पिछले पांच वर्षो में ‘मेक इन इंडिया’ का जलवा बढ़ा है और मेड इन चाइना की चमक कुछ हद तक फीकी हुई है। भारत के व्यापारियों ने चीन से आयात कम किया है। जनता भी स्वदेशी पर जोर दे रही है।

भारतीय बाजार बनाम चीन

भारत वर्ष 2024 तक पांच टिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का संकल्प दोहरा रहा है। जबकि चीन मौजूदा समय में 12 टिलियन डॉलर से अधिक की अर्थव्यवस्था है। भारतीय स्मार्टफोन बाजार दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता बाजार है और यहां किफायती मिड सेगमेंट मोबाइल फोन बाजार में 10 ऐसी चीनी कंपनियां हैं जिनका एक छत्र राज कहा जा सकता है। इन कंपनियों ने 2015 में फोन बनाना शुरू किया और 2017 समाप्त होते-होते इनकी हिस्सेदारी 49 प्रतिशत हो गई। कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के संदर्भ से भी यह पता चलता है कि चीनी सामान के बहिष्कार के अभियान का असर मूर्तियों के बाजार पर अधिक दिख रहा है। आयात कम होने की वजह से व्यापार संतुलन भी हासिल किया जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच-छह वर्षो में दिवाली के अवसर पर बिकने वाली चीन की बनी मूर्तियों में 70 से 80 प्रतिशत तक कमी आई है।

ब्लू प्रिंट तैयार करें चीनी कंपनियां

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में चीन छोड़ने पर विचार कर रही कंपनियों को भारत लाने के लिए ब्लू प्रिंट तैयार करने की बात कही है। गौरतलब है कि 200 अमेरिकी कंपनियां चीन को छोड़ सकती हैं जिसमें से कई भारत का रुख कर सकती हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर से उपजी परेशानियों में कंपनियों के लिए चीन से बेहतर भारत में यूनिट लगाना सही प्रतीत हो रहा है। वैसे भी भारत में कारोबारी सुगमता बढ़ने के कारण भी भारत ने विदेशी कंपनियों को काफी सुगमता दे दी है।

चीन के निवेश का भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर 

अमेरिकी कंपनियां यदि भारत में निवेश करती हैं तो इसका सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। जितनी ज्यादा कंपनियां होंगी उतनी नौकरियां होंगी। एक ओर जहां डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती आएगी वहीं सामान भी सस्ते हो जाएंगे। लिहाजा महंगाई कम होगी और व्यापार में हो रहे घाटे को भी पाटने में सहायता मिलेगी। हालांकि इस मामले में भारत कितना सफल होगा अभी कहना कठिन है, पर जिस तरह भारतीय अर्थव्यवस्था को ऊंचाई देने के लिए सरकार ने नियमों में ढिलाई बरती है उससे दुनिया की कई कंपनियां आकर्षित हो सकती हैं।

दुष्प्रभाव का आकलन

संसद की स्थायी समिति का बीते वर्ष चीनी आयात और उसके भारतीय उद्योग पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का आकलन किया गया था जिसमें यह निष्कर्ष निकला कि चीन के उत्पादों के भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा होने की बड़ी वजह उनकी कम कीमत है। समिति की रिपोर्ट से यह भी पता चला कि चीन में लागत अगर कारोबार का एक फीसद है तो भारत में यही तीन फीसद है। ऐसे में बिजली, वित्तीय और लॉजिस्टिक्स को मिलाकर भारत और चीन की लागत में करीब नौ फीसद का अंतर है। पिछले कुछ महीनों से भारत की अर्थव्यवस्था को कहीं अधिक सुदृढ़ता देने के लिए कई आर्थिक प्रयोग किए जा रहे हैं। चीन से अपना बिजनेस समेट रही या इस पर विचार कर रही कंपनियों पर भारत की नजर है। इससे चीनी उत्पाद की चमक भी फीकी होगी और व्यापारिक घाटा भी पटेगा।

इमरान खान का इस्लामिक कार्ड

कश्मीर मामले पर पाकिस्तान को जब दुनिया भर में कहीं से भी समर्थन हासिल होने की उम्मीद नहीं दिखी तो पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस्लामिक कार्ड खेला जिससे प्रभावित होकर मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में तूल देने की कोशिश की। लेकिन बीते दिनों भारतीय कारोबारी संगठनों ने जैसे ही मलेशिया से कारोबारी रिश्तों में कुछ सख्ती दर्शाने की घोषणा की, उसके बाद से उसके तेवर कुछ ढीले पड़ते हुए दिख रहे हैं

(लेखक वाइएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में निदेशक हैं) 

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