फसल बीमा योजना में बदलाव जरूरी: वे फसलें योजना के दायरे में नहीं आतीं जिन्हें टिड्डियों ने क्षति पहुंचाई

टिड्डियों से सभी प्रभावित किसानों को राहत पहुंचाने की जरूरत है। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य की प्राप्ति में भी इससे मदद मिलेगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 09 Jun 2020 12:24 AM (IST) Updated:Tue, 09 Jun 2020 12:24 AM (IST)
फसल बीमा योजना में बदलाव जरूरी: वे फसलें योजना के दायरे में नहीं आतीं जिन्हें टिड्डियों ने क्षति पहुंचाई
फसल बीमा योजना में बदलाव जरूरी: वे फसलें योजना के दायरे में नहीं आतीं जिन्हें टिड्डियों ने क्षति पहुंचाई

[ केसी त्यागी ]: कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच ‘लोकस्ट अटैक’ यानी टिड्डियों के हमले भारत तथा दुनिया के कई मुल्कों के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। पिछले कुछ दिनों में टिड्डियों ने फसलों पर हमला कर एशिया एवं अफ्रीका के कई मुल्कों को अपनी चपेट में लिया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दक्षिण-पश्चिम एशिया में भारत, पाकिस्तान और ईरान समेत कुछ अन्य देशों पर टिड्डियों का प्रकोप कुछ ज्यादा ही पड़ा है। भारत में गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र्, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब और हरियाणा आदि राज्यों में टिड्डियों के हमले से अधिक नुकसान की खबर है। दिल्ली, हिमाचल, तेलंगाना, कर्नाटक आदि राज्यों में भी इसे लेकर अलर्ट जारी किए गए। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन यानी एफएओ ने अपनी चेतावनी में कहा कि टिड्डी दलों का आक्रमण बिहार तथा ओडिशा में भी हो सकता है।

राजस्थान में टिड्डियां 90 हजार हेक्टेयर फसल चट कर गईं

एक अनुमान के अनुसार राजस्थान में अब तक बागवानी एवं सब्जियों की 90 हजार हेक्टेयर फसल नष्ट हो चुकी है। उत्तर प्रदेश तथा गुजरात के क्रमश: 17 एवं 16 जिले इसकी चपेट में आ चुके हैं। केंद्र सरकार ने राज्यों को इस संभावित संकट से निपटने के लिए डिजास्टर रिस्पांस फंड की 25 फीसद तक की राशि का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया है।

बोआई से पहले टिड्डियों पर काबू नहीं पाया गया तो धान, गन्ना तथा कपास को होगा भारी नुकसान

विशेषज्ञों का मानना है कि धान, गन्ना तथा कपास की बोआई से पहले इन पर काबू नहीं पाया गया तो भारी नुकसान हो सकता है। केंद्र एवं राज्य सरकारों के निर्देश पर फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव समेत अन्य बचाव के उपाय किए जा रहे हैं, लेकिन ये काफी जहरीले हैं। ये रसायन भूमि की उर्वरता के साथ-साथ फसलों की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं।

देश की बेहाल कृषि अर्थव्यवस्था पर कोरोना के बाद दूसरी मार 

देश की बेहाल कृषि अर्थव्यवस्था पर इस साल यह दूसरी मार पड़ी है। इससे पहले कोरोना के चलते बंद बाजार एवं यातायात व्यवस्था के कारण हताश हो चुका यह क्षेत्र अब अगली खरीफ फसल को कैसे बचाए यह न सिर्फ कृषकों के लिए चुनौतीपूर्ण है, बल्कि हमारे आत्मनिर्भर खाद्यान्न भंडारण तंत्र के लिए भी चिंता का बड़ा विषय है।

टिड्डियों के हमले से नष्ट हुईं गैर-खड़ी फसलें फसल बीमा योजना के अंतर्गत नहीं आती

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सभी प्रभावित राज्यों को मदद दिए जाने की घोषणा ने बहुत हद तक राहत प्रदान की है, लेकिन परेशानी बढ़ाने वाला एक पहलू यह भी है कि टिड्डियों के हमले से नष्ट हुईं गैर-खड़ी फसलें जैसे मौसमी फल, सब्जियां, चारा आदि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत अधिसूचित फसलों में नहीं आती हैं। इस लिहाज से उत्पादकों का एक बड़ा वर्ग जिसकी फसल किसी भी तरह के बीमा दायरे में नहीं है, उसे भारी तबाही का सामना करना पड़ेगा।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सिर्फ खड़ी फसलों को ही रखा गया 

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ऐसी विपत्तियों से लड़ने के उद्देश्य से ही बनाई गई है, लेकिन इसके दायरे में सिर्फ खड़ी फसलों को ही रखा गया है। रबी फसलों की कटाई और खरीफ फसलों की बोआई से पहले किसान भूमि के बड़े रकबे पर मौसमी सब्जियों एवं फलों की खेती करते हैं। यह उनकी आमदनी का अतिरिक्त स्रोेत बन जाता है। महाराष्ट्र्, गुजरात, राजस्थान समेत अन्य राज्यों के किसान खरीफ फसल से पहले बड़े पैमाने पर सब्जियों की खेती करते रहे हैं। मौजूदा परिप्रेक्ष्य में आलम यह है कि इन्हें टिड्डी दलों के आतंक का भारी नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे में जरूरत है कि गैर अधिसूचित फसलों को भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में शामिल कर गैर खड़ी फसलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

बीमित किसानों की संख्या और खेती के दायरे में गिरावट आने से बीमा योजना सवालों के घेरे में

मौजूदा बीमा योजना के तहत किसानों द्वारा सभी खरीफ फसलों के लिए केवल दो फीसद एवं सभी रबी फसलों के लिए 1.5 फीसद का एकसमान प्रीमियम का भुगतान किए जाने का प्रावधान है। शेष प्रीमियम केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बराबर-बराबर वहन किए जाने का प्रावधान है। इस योजना के शुरू होने के बाद कृषकों के बीच काफी सकारात्मक संदेश गया था, लेकिन पिछले तीन वर्षों के दौरान इसमें बीमित किसानों की संख्या और खेती का दायरा, दोनों में लगातार गिरावट आना इसके उद्देश्यों पर सवाल खड़ा करता है। दूसरा चिंताजनक पक्ष यह है कि प्रीमियम के रूप में सरकारी-गैर सरकारी बीमा कंपनियों के मुनाफे में जहां तेज बढ़ोतरी हुई तो वहीं बीमित फसलों के मुआवजे की राशि समय पर न मिल पाने तथा नुकसान मापने का पैमाना अव्यावहारिक होने को लेकर किसान एवं उनके संगठनों में भी काफी असंतोष पनप चुका है।

किसानों को देर से क्लेम मिलने से फसल बीमा योजना में बदलाव करना समय की मांग है

र्ष 2020-21 के लिए खरीफ फसल की बोआई होनी है, लेकिन एक रिपोर्ट यह भी है कि अब तक पिछले खरीफ वर्ष यानी 2019-20 का क्लेम किसानों को नहीं मिला है। अब तक सिर्फ 60 फीसद क्लेम का निपटारा हो सका है। ऐसी खामियों के मद्देनजर सरकार इसमें कुछ बदलाव कर इस महत्वाकांक्षी योजना को पुन: पटरी पर लाने की दिशा में प्रयत्नशील हुई है। कई राज्य सरकारों द्वारा अपने-अपने राज्य में स्वयं की बीमा योजना चल रही हैं। यह भी एक कारण रहा कि सभी राज्य इसे लेकर सकारात्मक नहीं रहे।

बिहार में किसानों को पीएम फसल बीमा योजना का लाभ न मिलने से फसल सहायता योजना चलाई

जून 2018 तक बिहार में अन्य बीमा योजना समेत प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना चलाई जा रही थी, लेकिन मुआवजे की राशि कम होने तथा सभी किसानों को इसका लाभ न मिल पाने की वजह से राज्य में फसल सहायता योजना की शुरुआत की गई। इसमें फसल की वास्तविक उपज दर में 20 फीसद तक की कमी होने पर 7500 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से अधिकतम 15 हजार रुपये और 20 फीसद से अधिक क्षति होने पर 10 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से अधिकतम 20 हजार रुपये दिए जाने का प्रावधान है। योजना के अंतर्गत रैयत और गैर रैयत दोनों ही किसानों को लाभ मिलने की व्यवस्था है।

टिड्डियों के आतंक के बीच सभी प्रभावित किसानों को राहत पहुंचाने की जरूरत

बहरहाल टिड्डियों के आतंक के बीच सभी प्रभावित किसानों को राहत पहुंचाने की जरूरत है। यह कृषि क्षेत्र के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जीवित रखने में संजीवनी का काम करेगी। साथ ही 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य की प्राप्ति में भी इससे मदद मिलेगी।

( लेखक जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं )

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