बंदिश न कोई रोकटोक..संगीत सुरधारा बह चली हर ओर

संजीव कुमार मिश्रा नई दिल्ली शुक्र है सुर सीमाओं में सिमटे नहीं रहते। संगीत पर कोई ब

By JagranEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 12:43 AM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 12:43 AM (IST)
बंदिश न कोई रोकटोक..संगीत सुरधारा बह चली हर ओर
बंदिश न कोई रोकटोक..संगीत सुरधारा बह चली हर ओर

संजीव कुमार मिश्रा, नई दिल्ली :

शुक्र है, सुर सीमाओं में सिमटे नहीं रहते। संगीत पर कोई बंदिश नहीं होती। नृत्य की झंकार सरहद में दबी नहीं रहती। सीमाएं सील हों, देश से देश की आने-जाने की दूरी हो, पर शास्त्रीय संस्कार न बंधा है, न बंधेगा। तकनीकी दुनिया के संजाल में में बगैर उलझे दबे पांव आपके मन में आकर बैठ जाएगा। बल्कि इस महामारी के काल में तो संगीत और नृत्य हर उम्र वर्ग के लिए दवा, दुआ और मन की तसल्ली बन गया। स्पिक मैके की इस यू-ट्यूब की अद्भुत दुनिया में ऐसे ही अनुभव हो रहे हैं।

दरअसल स्पिक मैके का जून में कानपुर में होने वाला सम्मेलन कोविड-19 की वजह से प्रस्तुत नहीं हो सका। लेकिन देखिए कहते हैं न चाह हो तो राह बन ही जाती है आज यू ट्यूब लाइव में सैंकड़ों लोग देश-दुनिया से जुड़ रहे हैं। शायद कामकाजी दुनिया काम की बेड़ियों से निकल तब यहां जीवंत आयोजन में शिरकत करने आ पाती या नहीं लेकिन अब यहां लाइव शो में हर छोर से लोग शिरकत कर रहे हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, दुबई और हागकाग से सबसे ज्यादा पंजीकरण हुए हैं। यहां से युवा ना केवल बतौर वालंटियर्स जुड़े हैं बल्कि वे आयोजन में किसी तरह की तकनीकी बंदिश भी नहीं आने देते। उसे तुरंत हाथों हाथ दूर करते हैं। स्पिक मैके के वालंटियर्स अंशुमान जैन के मुताबिक स्पिक मैके इस वर्ष अपना 8वा वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 1 से 7 जून तक आइआइटी कानपुर में आयोजित करने वाला था लेकिन महामारी के कारण उसे रद्द करना पड़ा। युवाओं को हताशा और निराशा से उबारने के मकसद से ऑनलाइन अनुभव का आयोजन किया गया। विदेशी वालंटियर्स में भारतीय युवा ज्यादा होते हैं जो कभी भारत में रहते थे, लेकिन अब देश की माटी को छोड़ काम के कारण बाहर हैं। प्रसून राज व पायस्वनी इंजीनियरिंग के बाद रिसर्च कर रहे हैं। ये दोनों इन दिनों दुबई में हैं। इन्होंने भारत में रहते हुए स्पिक मैके गतिविधियों में काम किया था। आज विदेश में रहकर भी इस ऑनलाइन आयोजन की तैयारी में पूरी तरह जुड़े हुए हैं। प्रसून कहते हैं कि हम अपनी संस्कृति को नहीं भूले हैं और दुनिया में जहा भी रहें देश की संस्कृति को संस्कारों से उस परिवेश को पुष्पित पल्लवित करते रहना चाहते हैं।

वहीं जर्मनी में रह रहे निलेश व्यास भी आयोजन में पूरा योगदान दे रहे हैं। वो कार्यक्रम के पोस्टर और प्रतिदिन की सूची डिजाइन करते हैं। बकौल निलेश दूर रह कर भी संस्था को अपना योगदान देने से उन्हें आत्मिक सुख मिलता है और अपनी संस्कृति के लिए कुछ करने की संतुष्टि मिलती है।

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-शीर्षक : रानी को है रफी और किशोर के गीत में ताल की तलाश

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-क्रॉसर : रानी ने चेहरे के विविध भावों से 15 तरीके से तुम बोलकर दिखाया

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जागरण संवाददाता, नई दिल्ली

कथक नृत्यागना रानी खानम स्पिक मैके अनुभव में दर्शकों से मुखातिब हुई। करीब चालीस मिनट का यह सेशन यादगार बन गया। रानी खानम ने न केवल अपनी जिंदगी की कहानी सुनाई बल्कि युवाओं को कथक की बारीकिया भी बताईं। बिहार से दिल्ली तक का उनका सफर दिलचस्प था। सबसे खास बात जो रही, उन्होंने चेहरे के विविध भावों के जरिए 15 बार अलग-अलग तरीके से तुम बोलकर दिखाया, जिसकी श्रोताओं ने बहुत प्रशंसा की। पंडित बिरजू महाराज से दीक्षा के दौरान की यादें भी साझा कीं। बताती हैं कि नृत्य में चेहरे, हाथ समेत अन्य अंगों के भाव का महत्व है। सिर के भाव जब सही नहीं आते तो गुरु जी सिर पर तबला रखकर चलने को कहते। कई बार चेहरे एवं हाथों के भाव के लिए दुपट्टा ओढ़ाकर प्रैक्टिस करवाते। बकौल रानी खानम उन्हें बचपन में गाने का शौक ज्यादा था। यही वजह थी कि गायन की दीक्षा पहले शुरू हुई बाद में नृत्य की। वो गाने की इस कदर शौकीन थीं कि मुहम्मद रफी और किशोर कुमार के गानों को ताल के पैमाने पर परखती थीं। दिव्यागों को सशक्त बनाने की रानी की मुहिम भी दर्शकों के दिलों को छू गई।

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