राजस्थान के युवा किसान का IDEA ऐसा कि खेतों की मेड़ भी उगल रहीं पैसा

आबिद चुरू में जहां करीब 50 किसानों की जमीन पर एलोवेरा और पीली शतावर की बिजाई करवा रहे हैं।

By JP YadavEdited By: Publish:Thu, 03 May 2018 01:17 PM (IST) Updated:Fri, 04 May 2018 08:38 AM (IST)
राजस्थान के युवा किसान का IDEA ऐसा कि खेतों की मेड़ भी उगल रहीं पैसा
राजस्थान के युवा किसान का IDEA ऐसा कि खेतों की मेड़ भी उगल रहीं पैसा

नई दिल्ली (बिजेंद्र बंसल)। यूं तो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर देश भर में किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रयास हो रहे हैं, मगर राजस्थान के एक युवा किसान ने ऐसा आइडिया निकाला कि खेतों के साथ-साथ मेड़ (क्यारी को बांटने वाली मिट्टी की डोल) भी पैसा उगलने लगी हैं। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के चुरू जिला के किसान आबिद हसन की, जो एलोवेरा की खेती से जहां परंपरागत खेती के मुकाबले चार गुणा लाभ कमा रहे हैं, वहीं खेतों की मेड़ पर पीली शतावर की पौध लगाकर अतिरिक्त आमदनी कर रहे हैं।

आबिद चुरू में जहां करीब 50 किसानों की जमीन पर एलोवेरा और पीली शतावर की बिजाई करवा रहे हैं, वहीं उन्होंने हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के भी 60 किसानों को इस तरह की आधुनिक खेती से जोड़ा है।

आबिद बताते हैं कि गेहूं, चावल, बाजरा, कपास, जौ, ज्वार, सरसों जैसी परंपरागत फसलों की बार-बार बुआई से न सिर्फ जमीन की उर्वरा क्षमता घटती है, बल्कि उससे होने वाली आमदनी भी सामान्य ही रहती है। कई बार तो प्राकृतिक आपदा के कारण किसान को उसकी लागत भी नहीं मिल पाती। उन्होंने दो साल पहले चुरू जिला में करीब दो हजार एकड़ जमीन में एलोवेरा की खेती शुरू की थी।

आबिद बताते हैं कि एलोवेरा तो हर छह माह में तैयार हो जाता है और इसकी बिक्री के लिए उन्होंने पतंजलि सहित आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली अन्य कंपनियों से तालमेल किया हुआ है। इसके साथ ही करीब 550 रुपये प्रति किलोग्राम बिकने वाली पीली शतावर भी वे मेड़ में बो रहे हैं। बेशक पीली शतावर 18 से 24 माह में तैयार होती है, मगर बिना किसी अतिरिक्त खर्च के तैयार होने वाली पीली शतावर किसान को मालामाल कर देती है।

आबिद के सुझाव पर हरियाणा के हिसार जिले में भी तीन किसान संतलाल चित्र, राजा सोनी और मुकेश सोनी ने पहले 62 एकड़ जमीन लीज पर लेकर एलोवेरा की खेती शुरू की और अब वे पीली शतावर बोने की तैयारी में हैं।

आबिद हसन के मुताबिक, खेती से आमदनी बढ़ाने के लिए हमें नए प्रयोग करने चाहिए। मैं भी पहले परंपरागत फसलों की खेती करता था, लेकिन जब से मैंने एलोवेरा की खेती की है तब से मेरी आमदनी देखकर चुरू में मेरे आसपास के सभी किसान भी एलोवेरा उगाने लगे। इसका मुझे यह फायदा हुआ कि आयुर्वेदिक उत्पाद तैयार करने वाली बड़ी कंपनियां फसल तैयार होने से पहले ही हमसे संपर्क कर लेती हैं। मुझे हमारे गांव के एक पुराने बुजुर्ग ने बताया कि पीली शतावर जमीन के अंदर करीब डेढ़ साल में तैयार होती है। बस मैंने वह आइडिया ले लिया और अपने खेतों की मेड़ पर पीली शतावर की बुवाई की। यह फसल हमारे यहां करीब दो साल में तैयार हुई है और सिर्फ खेतों की मेड़ में बोई पीली शतावर से इतनी आमदनी हुई है कि जितनी पूरे खेत से नहीं हुई। 

मेड़ पर चलने-फिरने से भी नहीं होता पीली शतावर को नुकसान

पीली शतावर बोने के लिए किसान को न अतिरिक्त पानी चाहिए और न ही जमीन। मेड़ पर चलने-फिरने का भी इस पर कोई असर नहीं होता। खेत में जुताई करने पर भी मेड़ के नीचे पीली शतावर को कोई नुकसान नहीं होता। 50 रुपये किलो बीज की औषधीय पौध से 550 रुपये किलो कीमत की फसल तैयार होती है।

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