सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से स्पष्ट है दिल्ली सरकार प्रदूषण को लेकर गंभीर नहीं: आदेश गुप्ता
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा कि पड़ोसी राज्यों व नगर निगमों को दोष देने के बजाय सरकार को प्रदूषण की समस्या हल करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। वहीं दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग की है।
नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। भाजपा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से स्पष्ट हो गया है कि दिल्ली सरकार प्रदूषण की समस्या को लेकर गंभीर नहीं है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा कि पड़ोसी राज्यों व नगर निगमों को दोष देने के बजाय सरकार को प्रदूषण की समस्या हल करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। वहीं, दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग की है। गुप्ता ने कहा कि सुप्रीम ने कोर्ट आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को कई बार फटकार लगा चुकी है बावजूद इसके समस्या को लकेर वह गंभीर नहीं है।
अपनी नाकामी छिपाने के लिए यह प्रचारित किया जाता है कि पड़ोसी राज्यों में जलने वाली पराली से दिल्ली में प्रदूषण हो रहा है। सच्चाई यह है कि यहां प्रदूषण का बड़ा कारण सड़कों पर उड़ने वाली धूल और वाहनों का धुआं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को दूसरों को दोष देने के बजाय समस्या हल करने के लिए किए गए अपने काम बताने को कहा है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के लोग प्रदूषण से परेशान हैं और मुख्यमंत्री व अन्य मंत्री दूसरे राज्यों में घूम रहे हैं। शायद उन्हें भी यहां के प्रदूषण से डर लगने लगा है। सरकार के साथ ही आप के नेता आक्सीजन और कोयले की कमी के बाद प्रदूषण की समस्या को लेकर झूठ बोल रहे हैं।
सरकार ने वर्ष 2018 में हरित नीति घोषित की थी, लेकिन उसमें किए गए प्रविधान पर काम नहीं हुआ। सार्वजनिक परिवहन प्रणाली बदहाल हो गई है। सड़कों पर धूल उड़ती है। सरकार को बताना चाहिए कि उसने समस्या हल करने के लिए कौन से पांच बड़े कदम उठाए हैं। लाकडाउन लगाना, कर्मचारियों को घर से काम करने को कहा समस्या का समाधान नहीं है। यह अस्थायी व्यवस्था है। समस्या हल करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे और भाजपा दिल्लीवासियों के हित में सरकार के साथ मिलकर काम करने को तैयार है।
बिधूड़ी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में नाकाम बताया है। अब मुख्यमंत्री को अपने पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं है। सरकार को वसूले गए 1439. 65 करोड़ रुपये पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क का हिसाब देना चाहिए।