पुराने कायदे-कानूनों में उलझकर रह गई किसानों की जीवन डोर

हाल ही में जारी हुई एक रिपोर्ट यह भी बयां करती है कि किसानों की आत्महत्या के मामले वर्ष दर वर्ष बढ़े हैं। कई राज्यों में खेत मजदूरों की आत्महत्या के मामलों में भी चिंताजनक वृद्धि हो रही है।

By JP YadavEdited By: Publish:Tue, 23 Feb 2021 08:10 AM (IST) Updated:Tue, 23 Feb 2021 08:10 AM (IST)
पुराने कायदे-कानूनों में उलझकर रह गई किसानों की जीवन डोर
कई राज्यों में खेत मजदूरों की आत्महत्या के मामलों में भी चिंताजनक वृद्धि हो रही है।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के धरना-प्रदर्शन को 3 महीने पूरे हो चुके हैं, लेकिन बीच का रास्ता फिलहाल निकलता दिखाई नहीं दे रहा है। किसान हितों को ध्यान में रखकर बनाए तीनों बिलों को नाराजगी भी समझ से परे है, जबकि केंद्र सरकार लगातार यह कहती रही है और इसके पक्ष में तर्क भी रख रही है कि तीनों कृषि कानून किसान की आय बढ़ाएंगे, जिससे उनका जीवन स्तर भी सकारात्मक रूप से प्रभावित होगा। बावजूद इसके किसान तीनों कृषि कानूनों की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन पर अड़े हैं।

इस बीच नए कृषि कानून विरोधी आंदोलन के बीच सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की सालाना रिपोर्ट स्टेट आफ इंडियाज एन्वायरमेंट पुराने कृषि कानूनों पर सवाल खड़े कर रही है। हाल ही में जारी हुई यह रिपोर्ट बयां करती है कि किसानों की आत्महत्या के मामले वर्ष दर वर्ष बढ़े हैं। कई राज्यों में खेत मजदूरों की आत्महत्या के मामलों में भी चिंताजनक वृद्धि हो रही है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 के दौरान 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आए। 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में खेत मजदूरों ने अपनी जीवनलीला खत्म कर ली, जबकि नौ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आत्महत्या के मामलों में साफ तौर पर वृद्धि देखने को मिली।

 

श्रमिकों की आत्महत्या के मामले बढ़े

रिचर्ड महापात्र (वरिष्ठ निदेशक, सीएसई) का कहना है कि किसानों और खेत मजदूरों की आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ने का सीधा सा कारण खेतीबाड़ी का घाटे का सौदा साबित होना रहा है। हर किसान पर लगभग 74 हजार रुपये का कर्ज रहता है। फसल का उचित मूल्य उसे मिल ही नहीं पाता। परिवार को कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिए ही वह आत्महत्या जैसा कदम उठाता है। यह स्थिति वाकई चिंताजनक है और पिछले एक से डेढ़ दशक में तीन लाख से अधिक किसानों की जिंदगी लील चुकी है।  

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