Delhi News: सजा सुनाने के 18 साल बाद दोषी के नाबालिग होने का पता चला, दिल्ली HC ने उम्रकैद की सजा की निरस्त

अपीलकर्ता के अस्थि परीक्षण में पता चला था कि 18 दिसंबर 2019 को अपीलकर्ता की उम्र 30 से 40 साल के बीच थी। ऐसे में छह नवंबर 1999 को उसकी उम्र दस से बीस बीच वर्ष होना स्पष्ट होता है।

By Vineet TripathiEdited By: Publish:Mon, 28 Nov 2022 01:59 PM (IST) Updated:Mon, 28 Nov 2022 02:01 PM (IST)
Delhi News: सजा सुनाने के 18 साल बाद दोषी के नाबालिग होने का पता चला, दिल्ली HC ने उम्रकैद की सजा की निरस्त
तीन साल पहले दी गई थी नाबालिग होने की दलील

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। वर्ष 1999 के हत्याकांड के एक मामले में वर्ष 2004 में दोषी को सुनाई गई उम्रकैद के कारावास की सजा को दिल्ली हाई कोर्ट ने 18 साल बाद रद कर दिया। अपीलकर्ता ने घटना के दौरान नाबालिग होने की दलील दी थी और उसके अस्थि परीक्षण से पता चला था कि उस दौरान उसकी उम्र दस से 20 वर्ष के बीच थी।

पांच साल पांच महीने तक रहा था हिरासत में

अदालत ने कहा कि ऐसे में उच्च आयु सीमा को अपीलकर्ता के लिए हानिकारक नहीं माना जा सकता है और निचली सीमा के अनुसार वह घटना के समय अवयस्क था। ऐसे में वह किशोरता के लाभ पाने का हकदार है।वारदात में अपीलकर्ता की नाममात्र भूमिका थी और वह पांच साल पांच महीने तक हिरासत में रहा था जब उसकी सजा को 13 अप्रैल 2005 के आदेश के तहत निलंबित करने का निर्देश दिया गया था।

किशोर को न्याय बोर्ड के समक्ष भेजने से इन्कार

13 अप्रैल 2005 को सजा को निलंबित करने के का निर्देश देने के दौरान अपीलकर्ता लगभग पांच साल और पांच महीने तक हिरासत में रहा था। हालांकि, अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय को देखते हुए इसे किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष भेजने से इन्कार कर दिया।

तीन साल पहले दी गई थी नाबालिग होने की दलील

अपीलकर्ता ने 2005 में निचली अदालत के पांच जुलाई 2004 के फैसले को चुनौती दी थी।इसमें आरोपित को आइपीसी की धारा-302 और 452 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया था और नौ जुलाई 2005 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। अपीलकर्ता ने वर्ष 2019 में हाई कोर्ट के समक्ष घटना के दौरान नाबालिग होने की दलील दी।

स्कूल से जन्म तिथि और नगर निगम से जन्म प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं होने पर पीठ ने पहले छह नवंबर 1999 कोई हुई घटना की तारीख को निर्धारित करने के लिए मामले को निचली अदालत में भेज दिया था। दिसंबर 2019 में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था। मेडिकल बोर्ड ने अपीलकर्ता की शारीरिक रेडियोलॉजिकल और डेंटल के साथ-साथ आर्थोपेडिक जांच भी की।

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