Nirbhaya Case: दोषियों को जल्द फांसी देने के मामले में हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

Nirbhaya Case निर्भया के दोषियों को जल्द से जल्द फांसी दिए जाने की मांग को लेकर केंद्र सरकार की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Sun, 02 Feb 2020 03:37 PM (IST) Updated:Sun, 02 Feb 2020 09:12 PM (IST)
Nirbhaya Case: दोषियों को जल्द फांसी देने के मामले में हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
Nirbhaya Case: दोषियों को जल्द फांसी देने के मामले में हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

नई दिल्ली, जेएनएन। Nirbhaya Case:  निर्भया के दोषियों को जल्द से जल्द फांसी दिए जाने की मांग को लेकर केंद्र सरकार की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट में दोनों पक्षों के वकीलों ने बहस की। दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। 

इससे पहले कोर्ट में केंद्र का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दोषी की ओर से जानबूझकर देरी की जा रही है। उन्होंने कहा कि न्याय हित में फांसी देने में कोई देरी नहीं होनी चाहिए। दोषियों को फांसी जल्द से जल्द देना चाहिए। 

केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल ने हाई कोर्ट को सभी दोषियों की कानूनी राहत के विकल्प के स्टेट्स का चार्ट सौंपा। तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि दोषियों के रवैये से साफ है कि वे कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिनकी दया याचिका खारिज हो गई है उन्हें जितना जल्दी हो सके फांसी दिया जाए।

दोषियों की हरकतें घृणित 

तुषार मेहता ने कहा कि दोषियों की हरकतें बहुत घृणित थीं और समाज की अंतरात्मा को झकझोर दिया था। इसलिए उनकी फांसी में देरी नहीं की जा सकती। इस तरह की देरी का समाज के साथ ही दोषियों पर भी अमानवीय प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने बताया कि पवन गुप्ता की रिव्यू पिटीशन खारिज हो चुकी है। वह क्यूरेटिव और दया याचिका अभी तक फाइल नहीं किया है।

तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि जेल नियमावली के अनुसार, किसी एक दोषी की एसएलपी लंबित हो तो बाकी के दोषियों की फांसी भी रोक दी जाएगी। निचली अदालत ने इसी को आधार बनाते हुए सभी दोषियों की फांसी को स्थगित कर दिया। लेकिन यह नियम दया याचिका से संबंध नहीं रखता। दोषी मुकेश ने कानून का गलत इस्तेमाल किया। उसने दया याचिका खारिज होने के फैसले को भी चुनौती दिया। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

दोषियों के इरादे घातक

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि दोषी मुकेश की ओऱ से निचली अदालत में कहा कि गया वह दया यायिका नए सिरे से दाखिल करने पर विचार कर रहा है। जबकि नए सिरे दया याचिका तभी दायर की जा सकती है जब उसमें किसी तरह की बदलाव की जरुरत हो। इससे साफ है कि दोषी के इरादे कितने घातक हैं।

वकील एपी सिंह ने किया दोषियों का बचाव

दोषी विनय, अक्षय और पवन के लिए बहस करते हुए बचाव दल के वकील एपी सिंह ने कोर्ट में तर्क दिया कि जेल के नियम 836 और 858 दोषियों को यह अधिकार देते हैं कि वह बचे हुए अपने कानूनी विकल्प का इस्तेमाल करें। शत्रुघ्न बनाम यू.ओ.आइ का तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि संविधान में फांसी देने के लिए कोई निर्धारित समय नहीं दिया गया है। केवल दया याचिका खारिज होने के बाद भी फांसी देने के लिए 14 दिन का समय मिलता है। केवल इसी मामले में इतनी जल्दबाजी क्यों। 

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