बगैर आलोचक के पूरी नहीं होती रचना

जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : दैनिक जागरण की मुहिम '¨हदी हैं हम' के तहत दैनिक जागरण

By JagranEdited By: Publish:Sun, 21 Jan 2018 08:25 PM (IST) Updated:Sun, 21 Jan 2018 08:25 PM (IST)
बगैर आलोचक के पूरी नहीं होती रचना
बगैर आलोचक के पूरी नहीं होती रचना

जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : दैनिक जागरण की मुहिम '¨हदी हैं हम' के तहत दैनिक जागरण मुक्तांगन के मासिक कार्यक्रम के मौके पर पहली बार एक मंच पर रचनाकार और आलोचक एक साथ नजर आए। दोनों के बीच शिकवे शिकायत तो आम हैं। मुक्तांगन की पहली सालगिरह पर रचनाकार और आलोचकों में अच्छी नोंक झोंक भी हुई। रचनाकारों का कहना है कि उनकी कठिन परिश्रम के बाद सुनी सुनाई बातों के सहारे उनकी रचना पर एक दिन में पानी फेर दिया जाता है, वहीं आलोचकों का कहना है कि रचना समाज की होती है, ऐसे में आलोचक अपने विवेक को गिरवी नहीं रख सकते। हालांकि, दोनों ने कुछ अपवाद स्वरूप रचनाओं को छोड़कर स्वीकार किया कि आलोचकों को ध्यान में रखकर रचना लिखना संभव नहीं है तो बगैर आलोचक के रचना भी पूरी नहीं होती। विषय था ¨हदी लेखन के बदलते स्वरूप में आलोचना की भूमिका।

आलोचक दिनेश कुमार ने ताकतवर शब्द को परिभाषित करे बगैर यह भी कहा कि जो ज्यादा ताकतवर है वह साहित्य को प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि विषय से साहित्य कमजोर नहीं होता, इसमें रचना की दृष्टि महत्वपूर्ण होती है। उन्होंने इस बात पर ¨चता जताई कि जिस तरह से साहित्य में बाजार का दखल बढ़ रहा है, उससे ऐसा नहीं लग रहा है कि साहित्य साहित्य रह जाएगा। रचनाकार गीताश्री ने कहा कि वह नकारात्मक आलोचना से ही साहित्य जगत में चर्चित हुईं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि आलोचकों को स्त्रियों के नाम पर खोले गए बाजार नहीं दिखते, जब लिखा जा रहा है तो बाजार दिखने लगा। रचनाकार आशा प्रभात ने कहा कि अगर आलोचकों का दृष्टिकोण सही हो तो रचनाकार और आलोचक दोनों के लिए फायदेमंद होता है। यह भी कहा कि जिसके पास अध्ययन नहीं है, दृष्टि नहीं है, ऐसे रचनाकारों की पीढ़ी भी आ गई। ऐसे में पाठक के सामने क्या पढ़ें या न पढ़ें यह समस्या पैदा हो गई है। आलोचक ज्योतिष ज्योति ने कहा कि आलोचना एक मुर्खतापूर्ण परंपरा है जो चलती आ रही है। उन्होंने यह भी कहा कि दुर्भाग्य से रचनाकार मजे लेने के लिए लिखते हैं, आलोचक अपने लिए लिखते हैं। दूसरे सत्र में खबरों की कहानियां और कहानियों की खबरें विषय पर चर्चा के लिए पत्रकार व लेखक प्रियदर्शन और जयंती रंगनाथन एक साथ मंच पर रहे। अंत में वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने भी अपने विचार रखे। जयंती रंगनाथन ने कहा कि गोधरा कांड हो या आरुषि हत्याकांड इन पर अभी तक बड़ी रचनाएं नहीं लिखी गईं। पत्रकार व रचनाकर प्रियदर्शन ने भी कहा कि जल्दीबाजी में खबरें परोसने की वजह से बड़ी रचना देने में हम असमर्थ हो रहे हैं। घटनाओं की स्मृति शेष रहते ही महान रचना आ जाती है। वरिष्ठ पत्रकार राहुलदेव ने कहा महत्वपूर्ण घटनाओं पर लेखक लिखने से भी बच रहे हैं, यह भी एक विडंबना है। इस मौके पर ट्रस्टी राकेश वैद, ऊषा वैद, आराधना प्रधान सहित काफी संख्या में लोग उपस्थित थे।

chat bot
आपका साथी