बच्चों की मौत पर अधिकारी व नेता मौन

निहाल सिंह, नई दिल्ली उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में पिछले 13

By JagranEdited By: Publish:Thu, 20 Sep 2018 11:03 PM (IST) Updated:Thu, 20 Sep 2018 11:03 PM (IST)
बच्चों की मौत पर अधिकारी व नेता मौन
बच्चों की मौत पर अधिकारी व नेता मौन

निहाल सिंह, नई दिल्ली

उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में पिछले 13 दिनों में डिप्थीरिया से पीड़ित 11 बच्चों की मौत होने के बाद निगम के अधिकारियों व नेताओं ने चुप्पी साध ली है। इस वर्ष अबतक 44 बच्चों की इस बीमारी से मौत हो गई है। इतना ही नहीं, पिछले साल इस बीमारी से पीड़ित 90 बच्चों की मौत हो गई थी। बावजूद इसके स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने के अस्पताल प्रशासन का कहना है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस बार कम मौत हुई है। इस मामले में उत्तरी दिल्ली नगर निगम के निगमायुक्त मधुप व्यास से मिलने का प्रयास किया गया तो उन्होंने मिलने से इन्कार कर दिया। वहीं, उत्तरी दिल्ली नगर निगम की स्वास्थ्य समिति के चेयरमैन विनीत वोहरा का कहना है कि इस संबंध में उन्हें कोई जानकारी नहीं है।

उत्तरी दिल्ली नगर निगम के इस अस्पताल में दवाइयों की कमी है। अस्पतालों व डिस्पेंसरियों में मरीजों को टीका लगवाने के लिए सी¨रज तक बाहर से खरीदनी पड़ती है। इतना ही नहीं, निगम के अस्पतालों में कुत्तों के काटने पर लगने वाला रेबीज का इंजेक्शन तक उपलब्ध नहीं रहता, जबकि हर साल दस हजार से अधिक लोगों को आवारा कुत्ते अपना शिकार बनाते हैं। खराब आर्थिक स्थिति से जूझ रहा उत्तरी निगम अपने अस्पतालों को केंद्र सरकार को सौंपने को तैयार नहीं है। फरवरी में निगमायुक्त मधुप व्यास ने स्थायी समिति के समक्ष प्रस्ताव रखा था कि निगम के अधीन आने वाले सभी अस्पतालों को केंद्र सरकार को सौंप दिया जाए। इससे इन अस्पतालों के संचालन में निगम पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ कम होगा, लेकिन स्थायी समिति ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। निगमायुक्त ने कहा था कि निगम के बजट का 60 फीसद हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च हो रहा है। निगम के अस्पतालों में करीब पांच हजार डॉक्टर व कर्मचारी कार्यरत हैं। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद निगम कर्मियों के वेतन पर आने वाला खर्च बढ़कर 85 फीसद तक पहुंच गया है। उत्तरी निगम के पास पांच अस्पताल और एक मेडिकल कॉलेज है, लेकिन उनमें कार्यरत डॉक्टरों और कर्मचारियों को समय पर वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है।

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