लोगों के अतार्किक भरोसे को तोड़कर आखिर बबल ही साबित हुआ बिटक्वाइन

आमतौर पर लोग एप डाउनलोड करते हैं, किसी को पैसा देते हैं और तब उन्हें प्रसन्नता होती है, जब एप में कोई बड़ी संख्या दिखती है

By Praveen DwivediEdited By: Publish:Sun, 16 Dec 2018 02:28 PM (IST) Updated:Sun, 10 Feb 2019 12:54 PM (IST)
लोगों के अतार्किक भरोसे को तोड़कर आखिर बबल ही साबित हुआ बिटक्वाइन
लोगों के अतार्किक भरोसे को तोड़कर आखिर बबल ही साबित हुआ बिटक्वाइन

साल 2017 के आखिर में और 2018 की शुरुआत में मैंने जो कॉलम लिखे उनमें यह पाया कि बिटक्वाइन पर असलियत में विश्वास रखने वालों की भावनाओं पर बिटक्वाइन की कीमतों में कमी ने कोई फर्क नहीं डाला है। उस वक्त करीब एक साल की अवधि में बिटक्वाइन के दाम 20,000 डॉलर (करीब 14 लाख रुपये) से घटकर 9,000 डॉलर (करीब छह लाख रुपये) पर आ चुके थे। अब जब एक साल और बीत चुका है बिटक्वाइन के दाम 3,500 डॉलर (करीब दो लाख रुपये) तक आ चुके हैं। अतीत के अन्य वित्तीय संकटों से अलग बिटक्वाइन के तकरीबन सभी उत्साही समर्थकों में यह विश्वास बना हुआ है कि बिटक्वाइन को तबाह करने के लिए तरह-तरह की साजिशें रची गईं।

पिछले वर्ष मैंने बंदरों और बकरियों की एक काल्पनिक कहानी के जरिये यह बताने की कोशिश की थी कि अच्छे से अच्छा निवेशक आखिरकार वास्तविक मूल्य से अधिक कीमत देकर निवेश कर बैठता है। अलबत्ता ओवरप्राइस निवेश जिसमें कुछ वास्तविक वैल्यू है और ऐसा निवेश जिसमें वैल्यू सन्निहित है, में अंतर है। जब मेरा यह कॉलम प्रकाशित हुआ था तो बिटक्वाइन में विश्वास रखने वालों ने जितनी तीव्रता से मेरी आलोचना की थी, वह एक दृष्टांत हो सकता है। मैं अक्सर काफी स्पष्ट और बिना किसी बनावट के काफी बातें कहता हूं।

लेकिन मैंने कभी आलोचना का इतना तीखा प्रवाह नहीं देखा था। यहां तक कि बिटक्वाइन को बबल कहने पर मुझे अवमानना तक का शिकार होना पड़ा। मेरी समझ कहती है कि बिटक्वाइन में विश्वास रखने वाले काफी या शायद अधिकतर लोग मानते हैं कि इससे निपटने के लिए उन्हें पहले से स्थापित लोगों और विचारों की आवश्यकता नहीं है। वे इससे खुद निपट सकते हैं और दूसरों की तरह वे भी एक्सपर्ट हैं। बिटक्वाइन को लेकर किसी की अवधारणा उनके लिए एकदम नए अनुभव के समान थी। मुङो जितने भी ईमेल मिले उनमें ज्यादातर एक ही बात कह रहे थे कि इसे आप जैसे लोग कैसे समङोंगे, यह टेक्नोलॉजी है।

उस वक्त भी साजिश की अवधारणा आ चुकी थी। उन दिनों पता नहीं कैसे, एक सामान्य अवधारणा यह बनी थी कि चीन की सरकार और गोल्डमैन सैश बिटक्वाइन को तबाह करने के लिए मिल कर काम कर रहे हैं। इसके पीछे की धारणा यह थी कि उन्हें लगता था कि ऐसा नहीं किया तो बिटक्वाइन उन्हें तबाह कर देगा। यह अवधारणा अब सब तरफ से फेल चुकी है। दुनिया के लगभग सभी रेगुलेटर और सरकारें या तो इसे लेकर चेतावनी जारी कर चुकी हैं या इस पर रोक लगा चुकी हैं। यही नहीं तकरीबन सभी प्रमुख वेबसाइटों पर इसके विज्ञापन भी रुक चुके हैं। बिटक्वाइन के विरोध को साजिश बताने वालों के लिए अब तक यह साबित हो चुका है कि बिटक्वाइन का विरोध करने वाले ही सही थे।

बिटक्वाइन को लेकर पागलपन के पीछे एक विचित्र बात यह थी कि उनमें यह विश्वास घर कर गया था कि बिटक्वाइन की परिकल्पना अद्भुत इसलिए है, क्योंकि इसके पीछे न तो कोई सरकार है, न कोई केंद्रीय बैंक और न ही कोई अन्य केंद्रीय अथॉरिटी। वास्तविकता यह है कि शायद ही किसी ने बिटक्वाइन में उसकी तकनीक को समझकर, सॉफ्टवेयर डाउनलोड कर या अपनी की जेनरेट करके अपना वैलेट बनाकर निवेश किया हो। इसके विपरीत अपने देश में जमीनी स्तर पर जाकर बिटक्वाइन के निवेशकों देखने से पता चलता है कि यहां एक मल्टीलेवल मार्केटिंग नेटवर्क काम कर रहा था। प्रत्येक निवेशक को इसका आइडिया किसी दूसरे निवेशक ने दिया था। उसी निवेशक ने नए निवेशक को ब्रोकर या ऑपरेटर जैसे लोगों से मिलवाया।

आमतौर पर लोग एप डाउनलोड करते हैं, किसी को पैसा देते हैं और तब उन्हें प्रसन्नता होती है, जब एप में कोई बड़ी संख्या दिखती है। किसी के लिए भी इसमें किंचित भी संदेह नहीं होना चाहिए कि यह ऐसा सिस्टम है जो पूरी तरह सरकारों और केंद्रीय अथॉरिटी से मुक्त है। आखिर में बिटक्वाइन का पागलपन वहां पहुंच गया जहां उसे पहुंचना चाहिए था। बिटक्वाइन बबल में सब कुछ गलत निकला। एक क्रिप्टोग्राफिक करेंसी तैयार करना वैश्विक पागलपन में तब्दील हो गया। पागलपन की स्थिति में पहुंचने तक यह गुप्त इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट के लिए उपयोगी था। खासतौर पर डार्क वेब के भुगतान में यह उपयोगी साबित होता। लेकिन इसका गुब्बारा बड़ा होता गया और बिटक्वाइन बेकार होता चला गया।

यह पूरी तरह सट्टे पर आधारित पागलपन था, जिसका कोई आधार नहीं था। भविष्य में यह मनोरोग विशेषज्ञों के अध्ययन के लिए काम आ सकता है।

(इस लेख के लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार है)

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