स्पेक्ट्रम नीलामी की योजना पर ट्राई के पक्ष में टेलीकॉम आयोग

स्‍पैक्‍ट्रम नीलामी मामले में टेलीकॉम आयोग ने ट्राई केे सुझाव को सही मानते हुए उसका पक्ष लिया है। इस नीलामी से सरकार की तिजोरी में करीब 5.36 लाख करोड़ रुपये आएंगे।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sat, 30 Apr 2016 09:05 PM (IST) Updated:Sat, 30 Apr 2016 10:27 PM (IST)
स्पेक्ट्रम नीलामी की योजना पर ट्राई के पक्ष में टेलीकॉम आयोग

नई दिल्ली (प्रेट्र)। टेलीकॉम आयोग ने दूरसंचार नियामक ट्राई की ओर से सुझाए गए मूल्य पर पूरे उपलब्ध स्पेक्ट्रम की नीलामी का पक्ष लिया है। इससे सरकार के खजाने में करीब 5.36 लाख करोड़ रुपये आएंगे। नीलामी जुलाई में होनी है। अंतिम मंजूरी के लिए आयोग के सुझावों को कैबिनेट के पास भेजा जाएगा।

सूत्रों ने बताया कि आगामी नीलामी में 700 मेगाह‌र्ट्ज बैंड की बिक्री शामिल है। यह सर्वाधिक प्रीमियम बैंड है। इसकी बिक्री 11,485 करोड़ रुपये प्रति मेगाह‌र्ट्ज पर होगी। 3जी सेवाएं प्रदान करने के लिए इस्तेमाल होने वाले 2100 मेगाह‌र्ट्ज के मुकाबले 700 मेगाह‌र्ट्ज बैंड में मोबाइल सेवाएं देना करीब 70 फीसद कम बैठ सकता है।

टेलीकॉम सचिव जेएस दीपक की अध्यक्षता में अंतर-मंत्रालयी पैनल (टेलीकॉम आयोग) ने नियमों को मंजूरी दी है। इसके मुताबिक 700 मेगाह‌र्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम खरीदने के लिए इच्छुक कंपनी को न्यूनतम 57,425 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। इस बैंड में अकेले चार लाख करोड़ से ज्यादा की बोलियां आ सकती हैं।

स्पेक्ट्रम बिक्री से 5.36 लाख करोड़ रुपये आने की संभावना है। जबकि टेलीकॉम सर्विस इंडस्ट्री का रेवेन्यू 2014-15 में 2.54 लाख करोड़ रुपये रहा। इस लिहाज से संभावित बिक्री से प्राप्त होने वाली राशि उद्योग के रेवेन्यू से दोगुने से ज्यादा है।

प्रमुख ऑपरेटरों ने 700 मेगाह‌र्ट्ज स्पेक्ट्रम की बिक्री को टालने के लिए अनुरोध किया था। उनका कहना था कि इस बैंड में सेवाएं प्रदान करने के लिए माहौल तैयार नहीं हो पाया है। बिक्री से कई साल तक स्पेक्ट्रम का पूरा उपयोग नहीं हो सकेगा। साथ ही यह उद्योग के फंड को ब्लॉक करेगा।

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भुगतान की कड़ी शर्ते

सरकार को 2016-17 में सेक्टर से 98,995 करोड़ रुपये की आमदनी होने की उम्मीद है। पैनल ने भुगतान की शर्तो को भी कड़ा करने का सुझाव दिया है। इसके मुकाबले ट्राई ने इनमें थोड़ी नरमी बरती थी। आयोग इसके पक्ष में है कि अधिक फ्रीक्वेंसी बैंड में स्पेक्ट्रम पाने वाली कंपनियों को 50 फीसद अग्रिम भुगतान करना चाहिए। फिर दो साल रुकने के बाद शेष भुगतान 10 साल में करना चाहिए। इससे पहले कंपनियों को 33 फीसद अग्रिम भुगतान करने का विकल्प दिया गया था।

अलग-अलग भुगतान व्यवस्था

हाई फ्रीक्वेंसी बैंड में एक गीगाह‌र्ट्ज से अधिक के स्पेक्ट्रम आते हैं। जैसे 1800 मेगाह‌र्ट्ज, 2100 मेगाह‌र्ट्ज और 2300 मेगाह‌र्ट्ज। 700 मेगाह‌र्ट्ज, 800 मेगाह‌र्ट्ज, 900 मेगाह‌र्ट्ज जैसे एक गीगाह‌र्ट्ज बैंड से नीचे के स्पेक्ट्रम के लिए कंपनियों को 25 फीसद अग्रिम भुगतान करना होगा। फिर दो साल रुकने के बाद शेष राशि 10 साल में चुकानी होगी। यह ट्राई के सुझाव से अलग, लेकिन पूर्व की नीलामी की व्यवस्था के तर्ज पर है।

एसयूसी पर फैसला टाला

पैनल ने स्पेक्ट्रम यूसेज चार्ज (एसयूसी) के विवादास्पद मुद्दे पर फैसला टाल दिया है। रिलायंस जियो इंफोकॉम और कुछ प्रमुख ऑपरेटरों के बीच इस मुद्दे पर टकराव है। दूरसंचार विभाग की तकनीकी समिति ने सभी ऑपरेटरों से एकसमान साढ़े चार फीसद एसयूसी वसूलने की सिफारिश की है।

एमटीएनएल पर चर्चा

स्पेक्ट्रम नीलामी के अलावा आयोग ने सार्वजनिक क्षेत्र की टेलीकॉम फर्म एमटीएनएल में जान फूंकने पर भी चर्चा की। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप में कनेक्टिविटी बढ़ाने के साथ रूरल ब्रॉडबैंड के लिए भारत नेट प्रोजेक्ट के विस्तार पर भी विचार-विमर्श हुआ। सूत्रों के मुताबिक, टेलीकॉम आयोग ने 50 साल से अधिक उम्र के एमटीएनएल कर्मचारियों के लिए वीआरएस का भी पक्ष लिया है।

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