राजस्व संग्रह में भारी कमी से मुसीबत में राज्य, विशेष फंड इस्तेमाल की मांगी इजाजत

अभी तक कुछ राज्यों ने केंद्र सरकार के सामने अपने खजाने का जो सूरते हाल पेश किया है वह बेहद चिंताजनक है।

By Ankit KumarEdited By: Publish:Tue, 05 May 2020 07:56 PM (IST) Updated:Wed, 06 May 2020 06:50 AM (IST)
राजस्व संग्रह में भारी कमी से मुसीबत में राज्य, विशेष फंड इस्तेमाल की मांगी इजाजत
राजस्व संग्रह में भारी कमी से मुसीबत में राज्य, विशेष फंड इस्तेमाल की मांगी इजाजत

नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। कोविड-19 की वजह से देश भर में लागू लॉकडाउन से राज्यों की अर्थव्यवस्था एकदम चरमरा गई है। लॉकडाउन को हटाने की प्रक्रिया शुरु की गई है लेकिन आर्थिक गतिविधियों में खास सुधार होता नहीं देख राज्यों के राजस्व संग्रह में भी इजाफा होने की गुंजाइश नहीं है। ऐसे में राज्यों ने केंद्र से आग्रह किया है कि उन्हें सिंकिंग फंड, मिनरल विकास फंड जैसे तमाम रिजर्व फंड का इस्तेमाल करने की इजाजत दी जाए। साथ ही अब बिना किसी देरी के राज्यों को ज्यादा उधारी लेने की इजाजत दी जानी चाहिए। राज्यों ने वित्त मंत्रालय को एक तरह से त्राहिमाम संदेश भेजा है कि उन्होंने अप्रैल का महीना तो किसी तरह से निकाल लिया है लेकिन अभी राजस्व संग्रह की जो स्थिति है उससे मई का महीना नहीं निकाला जा सकता।

अभी तक कुछ राज्यों ने केंद्र सरकार के सामने अपने खजाने का जो सूरते हाल पेश किया है वह बेहद चिंताजनक है। बिहार ने बताया है कि अप्रैल के महीने में उनका राजस्व औसत के मुकाबले महज 14 फीसद रह गया है। उत्तर प्रदेश में औसत संग्रह का महज 20 फीसद ही हो पाया है। पश्चिम बंगाल आम तौर पर अप्रैल के महीने में जितना संग्रह कर पाता है उसका महज 12 फीसद ही कर पाया है। महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कनार्टक जैसे ज्यादा औद्योगिक तौर पर विकसित राज्यों का कुल राजस्व संग्रह सामान्य से 80 फीसद तक घट चुका है। यह राशि इनके सामान्य खर्चे के लिए भी नाकाफी है। बिहार के उप मुख्यमंत्री व वित्त मंत्री सुशील मोदी ने दैनिक जागरण को बताया कि दूसरे राज्यों की तरह बिहार की वित्तीय स्थिति भी बेहद गंभीर है। राज्य को हर महीने वेतन, पेंशन, उधारी पर ब्याज आदि चुकाने के लिए आवश्यक तौर पर 8000 करोड़ रुपये चाहिए।

सुशील मोदी के मुताबिक अभी दो ही उपाय है जिससे राज्यों को जरूरत के मुताबिक संसाधन का इतंजाम किया जा सकता है। पहला है सभी तरह के रिजर्व फंड के इस्तेमाल की इजाजत दी जाए और दूसरा, राज्यों को अपने सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले कम से कम 5 फीसद उधारी लेने की इजाजत मिले। अभी राज्य तीन फीसद तक ही उधारी ले सकते हैं। उन्होंने बताया कि इन तमाम उपायों पर केंद्र से बात हो रही है। पिछले महीने केंद्र सरकार ने अपने हिस्से का फंड एकदम सही वक्त पर सभी राज्यों को भेज दिया है जिससे सामान्य वित्तीय लेन-देन को सुचारू रूप से चलाने में मदद मिली है। मोदी ने जिस सिंकिंग फंड की बात कही है उसका गठन ऐसे ही आपातकालीन हालात के लिए किया गया था। आरबीआइ के आंकड़ों के मुताबिक मार्च, 2019 तक सिंकिंग फंड में 1.15 लाख करोड़ रुपये की राशि है। सिर्फ बिहार के पास इस मद में 7,000 करोड़ रुपये की राशि है।

इसके अलावा भी कई दूसरे रिजर्व फंड है। जैसे कई राज्यों के पास श्रम अधिभार का फंड है, बिहार ने भी इस फंड में 1200 करोड़ रुपये की राशि संचित कर रखी है। कई राज्यों के पास के खान व खनिज विकास फंड के तौर पर भारी भरकम राशि है। कुछ राज्यों ने कई वर्षो से सूखा राहत फंड वसूल किया है जिसका भी इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन इस फंड का इस्तेमाल ये राज्य तभी कर सकेंगे जब केंद्र उसकी इजाजत दे।

इन राज्यों के पास पेट्रोल व डीजल पर वैट शुल्क को बढ़ाना एक विकल्प है लेकिन ज्यादातर राज्य अभी इसे आजमाने से हिचक रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में तेलंगाना, असम व दिल्ली ने पेट्रोल और डीजल पर वैट की दरों को बढ़ा जरुर दिया है लेकिन दूसरे राज्यों का कहना है कि जब पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री ही नहीं हो रही है तो शुल्क बढ़ाने से कोई खास फायदा नहीं होगा। सुशील मोदी कहते हैं, ''अभी पेट्रोल व डीजल की बिक्री एकदम बंद है। इस पर वैट की दर बढ़ाने से बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। हमारे पास पेट्रो उत्पादों पर शुल्क की दर बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।''

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