नौ सरकारी बैंकों ने लगाया फंसे कर्ज में बढ़ोतरी का शतक

संप्रग के पिछले दस वर्षो के कार्यकाल में सरकारी बैंकों की फंसे कर्जे (एनपीए) की समस्या जस की तस बनी हुई है। वर्ष 2005 के शुरुआत में इन बैंकों के एनपीए का अनुपात 5.50 फीसद था। दिसंबर, 2013 की समाप्त हुई तिमाही में यह फिर से 5.17 फीसद पर पहुंच गया है। हालत यह है कि इस तिमाही में नौ ऐसे बैंक हैं जिन्होंन

By Edited By: Publish:Fri, 07 Mar 2014 09:17 AM (IST) Updated:Fri, 07 Mar 2014 09:17 AM (IST)
नौ सरकारी बैंकों ने लगाया फंसे कर्ज में बढ़ोतरी का शतक

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संप्रग के पिछले दस वर्षो के कार्यकाल में सरकारी बैंकों की फंसे कर्जे की समस्या जस की तस बनी हुई है। वर्ष 2005 के शुरुआत में इन बैंकों के एनपीए का अनुपात 5.50 फीसद था। दिसंबर, 2013 की समाप्त हुई तिमाही में यह फिर से 5.17 फीसद पर पहुंच गया है। हालत यह है कि इस तिमाही में नौ ऐसे बैंक हैं जिन्होंने एनपीए वृद्धि का शतक लगाया है यानी इनके फंसे कर्जे में सौ फीसद से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है।

इन बैंकों में यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के अलावा बैंक ऑफ महाराष्ट्र, कॉरपोरेशन बैंक, विजया बैंक, सिंडिकेट बैंक और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) के तीन सहयोगी बैंक शामिल हैं। इन सभी पीएसयू बैंकों के एनपीए (कुल अग्रिम की तुलना में फंसे कर्जे का अनुपात) में इस अवधि के दौरान 100 से लेकर 244 फीसद तक की वृद्धि हुई है। यह स्थिति तब है जब वित्ता मंत्री पी. चिदंबरम लगातार बैंकों को गैर निष्पादक परिसंपत्तिायों यानी एनपीए का स्तर घटाने के लिए दबाव बनाए हुए हैं।

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पिछले बुधवार को सरकारी बैंक प्रमुखों के साथ बैठक में वित्ता मंत्री इन बैंकों को एक बार फिर चेतावनी दी है। वित्ता मंत्री ने इन बैंकों को साफ कहा है कि अगर इस तिमाही में बैंकों ने एनपीए नहीं घटाया तो उनके लिए कई तरह की मुसीबत खड़ी हो सकती है।

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वित्ता मंत्रालय के बैंकिंग विभाग ने बैंकों के एनपीए को लेकर जो नया डाटा तैयार किया है वह किसी भी तरह से यह भरोसा दिलाता नजर नहीं आ रहा है कि इस समस्या पर हाल फिलहाल काबू पाया जा सकता है। सरकारी क्षेत्र के 27 बैंकों में 24 ऐसे हैं जिनके एनपीए में अक्टूबर से दिसंबर, 2013 की तिमाही में कम से कम 52 फीसद का इजाफा हुआ है। पिछले एक दशक में किसी भी एक तिमाही में एक साथ कई बैंकों के एनपीए में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है।

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जुलाई 2013 में वित्ता मंत्री ने सख्त हिदायत दी थी कि कोई भी बैंक एनपीए वसूली से ज्यादा राशि बट्टे खाते में नहीं डालेगा। इसका कोई असर नहीं हुआ। पिछली तिमाही में एनपीए वसूली 18,933 करोड़ रुपये की हुई है। इसके मुकाबले बैंकों ने 19,505 करोड़ रुपये की राशि बट्टे खाते में डाली है।

यूबीआइ में एनपीए की समस्या इतनी बढ़ गई है कि सरकार इसे उबारने के लिए कई विकल्पों पर विचार कर रही है। बैंक की सीएमडी अर्चना भार्गव को पद छोड़ना पड़ा है। बैंक के हालात पर चिदंबरम आज रिजर्व बैंक के साथ चर्चा करेंगे। इस बैंक के एनपीए में पिछली तिमाही में 230.87 फीसद का इजाफा हुआ है। इससे बैंक को 1,238 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा है।

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