फंसे कर्जे के दलदल में और धंसेंगे बैंक
फंसे कर्जे यानी एनपीए की समस्या में उलझे सरकारी बैंकों को अभी और दुर्दिन देखने पड़ सकते हैं। वित्तीय स्थायित्व पर आरबीआइ की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि जब तक अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं दिखाई देगा, तब तक फंसे कर्ज की राशि बढ़ती रहेगी। अगर हालात नहीं सुधरे तो सितंबर, 2014 तक भारतीय बैंकों का कुल एनप
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। फंसे कर्जे यानी एनपीए की समस्या में उलझे सरकारी बैंकों को अभी और दुर्दिन देखने पड़ सकते हैं। वित्तीय स्थायित्व पर आरबीआइ की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि जब तक अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं दिखाई देगा, तब तक फंसे कर्ज की राशि बढ़ती रहेगी। अगर हालात नहीं सुधरे तो सितंबर, 2014 तक भारतीय बैंकों का कुल एनपीए (नॉन परफॉरमिंग असेट्स) 2,29,000 करोड़ रुपये हो सकता है। सितंबर, 2013 में फंसे कर्जो का यह आंकड़ा 1,65,000 करोड़ रुपये था। केंद्रीय बैंक की नजर में यह बहुत ही खराब स्थिति है।
रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर, 2013 तक भारतीय बैंको की ओर से वितरित कुल कर्ज के लगभग 10 फीसद हिस्से की वसूली में समस्या पाई गई है। कुल अग्रिम के मुकाबले शुद्ध एनपीए इस दौरान बढ़कर 4.6 हो चुका है। अर्थंव्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो यह अनुपात और बढ़कर सात फीसद हो सकता है। बढ़ता एनपीए सबसे ज्यादा सरकारी बैंकों के लिए मुसीबत पैदा करने की क्षमता रखता है। इससे न सिर्फ बैंकों की विस्तार योजनाओं पर असर पड़ेगा, बल्कि मुनाफा कमाने की इनकी क्षमता भी प्रभावित होगी। सितंबर, 2013 की अवधि में सभी बैंकों के संयुक्त कर बाद लाभ में नौ फीसद की गिरावट हुई है। इसके छह महीने पहले 12 फीसद था।
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फंसे कर्जे की समस्या पिछले दो-तीन वर्षो से लगातार गहराती जा रही है। सरकार व रिजर्व बैंक के स्तर पर इसे कम करने की कोशिश की गई है, लेकिन अभी तक सुधार के कोई खास संकेत नहीं मिले हैं। एनपीए के बढ़ने का साफ मतलब है कि जनता और कंपनियां बैंकों से कर्ज लेकर उन्हें समय पर नहीं लौटा रही हैं। कर्ज नहीं लौटाने में कॉरपोरेट सेक्टर सबसे आगे है। समय पर कर्ज वापसी नहीं करने का खामियाजा पूरी अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ता है, क्योंकि उस राशि का इस्तेमाल उत्पादक कार्यो में किया जा सकता था। हालात को संभालने के लिए कुछ ही दिन पहले रिजर्व बैंक ने समय पर कर्ज नहीं लौटाने वाले ग्राहकों को ज्यादा समय देने का प्रावधान किया है।