सात साल में भी छह लेन नहीं हो सका हाइवे

पानीपत से आगे भी एनएच-1 की हालत बहुत अच्छी नहीं है। इसे जालंधर तक छह लेन करने का काम सात सालों से चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बावजूद यह अभी तक पूरा नहीं हुआ है। पानीपत-जालंधर खंड की सिक्स लेनिंग का कांट्रैक्ट मई 2008 में सोमा-आइसोलक्स एनएच-1

By Shashi Bhushan KumarEdited By: Publish:Wed, 06 May 2015 08:34 AM (IST) Updated:Wed, 06 May 2015 08:43 AM (IST)
सात साल में भी छह लेन नहीं हो सका हाइवे

संजय सिंह, नई दिल्ली। पानीपत से आगे भी एनएच-1 की हालत बहुत अच्छी नहीं है। इसे जालंधर तक छह लेन करने का काम सात सालों से चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बावजूद यह अभी तक पूरा नहीं हुआ है। पानीपत-जालंधर खंड की सिक्स लेनिंग का कांट्रैक्ट मई 2008 में सोमा-आइसोलक्स एनएच-1 टोलवे प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया था। डिजाइन, बिल्ड, फाइनेंस, आपरेट (डीबीएफओ) आधार पर 15 साल के रियायत पर दिए गए इस प्रोजेक्ट का काम नवंबर 2011 में पूरा होना था। परंतु साढ़े तीन साल के विलंब के बावजूद यह अपूर्ण है।

तकरीबन 272 किलोमीटर लंबे इस खंड के चौड़ीकरण के तहत कोई डेढ़ सौ फ्लाईओवर बनाए जाने थे, लेकिन डेढ़ दर्जन फ्लाईओवर पर अभी भी काम चल रहा है। इनमें करनाल में निलोखेड़ी, झांझरी, बाल्दी बाईपास, देवीलाल चौक, नमस्ते चौक व घरौंदा, कुरुक्षेत्र में पीपली चौक, रतनगढ़ व शाहाबाद तथा अंबाला में कालका चौक, मोटर मार्केट चौक व गुरुद्वारा मणिशंकर साहिब, पंजाब में सरहिंदू, खन्ना और लुधियाना के फ्लाईओवर शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे 31 मार्च तक पूरा करने का निर्देश दिया था। इस तारीख को बीते एक माह से ऊपर हो गए, मगर अभी भी काम जारी है।

कंपनी का कहना है कि पिछले दिनों बेमौसम बरसात के कारण काम में कुछ रुकावट आई परंतु इसे शीघ्र ही पूरा कर लिया जाएगा। दरअसल, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) ने दिल्ली-पानीपत 70 किमी के लघु खंड के चार ठेके देकर जो भूल की थी, उससे बड़ी गलती 272 किमी के इस विशाल खंड को एक ही कंपनी के हवाले करके की है। साथ ही एग्रीमेंट की त्रुटियों के कारण कंपनी से पीछा छुड़ाना मुश्किल हो गया।

काम पिछड़ने की मुख्य वजह दो टोल प्लाजा की शिफ्टिंग को लेकर कंपनी व एनएचएआइ के बीच दो साल तक चला विवाद है। एनएचएआइ ने पहले तो कंपनी का अनुरोध मान लिया, मगर बाद में मना कर दिया। नतीजतन मामला हाई कोर्ट पहुंच गया जिसने एनएचएआइ को प्रोजेक्ट अपने हाथ में लेने का निर्देश दे दिया। इसके जवाब में कंपनी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई जिसने उसके पक्ष में इस शर्त के साथ फैसला दिया कि कंपनी 31 मार्च, 2015 तक काम पूरा कर देगी।

बहरहाल, विलंब के फलस्वरूप परियोजना की लागत दो गुना हो गई है, जबकि दिल्ली से चंडीगढ़, लुधियाना या जालंधर जाने वाले वाहन चालकों की मुश्किलें दूर होने का नाम नहीं ले रही हैं।

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