Jagran Dialogues: अनलॉक के बाद भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में किस रफ्तार से आ सकती है तेजी, जानिए एक्‍सपर्ट की राय

हमारी अर्थव्यवस्था में हमेशा से हेल्थ को इतना ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था। विकसित देशों या हमारी समकक्ष अर्थव्यव्थाओं के मुकाबले हम हेल्थ पर काफी कम खर्च करते हैं। इसका खामियाजा हम भुगत भी रहे हैं। हमें अब यह एहसास हुआ है कि हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ाना होगा।

By Pawan JayaswalEdited By: Publish:Tue, 08 Jun 2021 03:08 PM (IST) Updated:Wed, 09 Jun 2021 06:40 AM (IST)
Jagran Dialogues: अनलॉक के बाद भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में किस रफ्तार से आ सकती है तेजी, जानिए एक्‍सपर्ट की राय
Jagran Dialogues P C : File Photo

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। कोविड-19 महामारी ने सिर्फ आम जनजीवन को ही अस्‍त-व्‍यस्‍त नहीं किया, बल्कि इससे भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था (Indian Economy) भी प्रभावित हुई है। Rating Agencies और RBI ने चालू वित्‍त वर्ष के लिए अर्थव्‍यवस्‍था की वृद्धि दर के अनुमानों में हाल ही में कटौती की है। दैनिक जागरण लगातार 'Jagran Dialogues' के माध्यम से ऐसे विषयों पर पाठकों को जागरूक कर रहा है। इसी कड़ी में जागरण न्यू मीडिया के मनीश मिश्रा ने Mahindra Group के मुख्य अर्थशास्त्री डॉ सच्चिदानंद शुक्ला से 'भारतीय अर्थव्यवस्था की Growth Rate और कोविड महामारी का इस पर असर' विषय पर चर्चा की।

इस बातचीत के संपादित अंश इस प्रकार हैंः

सवाल: कोविड-19 की दूसरी लहर से अर्थव्यवस्था किस हद तक प्रभावित हुई है और इसका दूरगामी असर क्या होगा।

सच्चिदानंद शुक्ला: कोविड की दूसरी लहर काफी विस्तृत थी। इसमें जान-माल का काफी नुकसान हुआ। लेकिन पहली लहर में आजीविका बहुत प्रभावित हुई थी। पहली लहर में लॉकडाउन भारत में काफी ज्यादा कठोर लगा था। यही कारण था कि बीते वित्त वर्ष की पहली तिमाही में करीब 24 फीसद का संकुचन जीडीपी में देखा गया। इस बार फर्क यह है कि लॉकडाउन स्थानीय स्तर पर लगाए गए थे। अब अनलॉक की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। इसके कारण आर्थिक गतिविधियां पहले की तरह प्रभावित नहीं हुईं। लेकिन मृत्यु दर इस दौरान काफी अधिक रही। हम आकंड़ों की बात करें, तो दूसरी लहर में जीडीपी को 4 से 5 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान है। वहीं, कोविड की पहली लहर से अर्थव्यवस्था को 11 से 12 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

सवाल: लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें, इसके लिए सरकार को क्या करना चाहिए।

सच्चिदानंद शुक्ला: हमारी अर्थव्यवस्था में हमेशा से हेल्थ को इतना ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था। विकसित देशों या हमारी समकक्ष अर्थव्यव्थाओं के मुकाबले हम हेल्थ पर काफी कम खर्च करते हैं। इसका खामियाजा हम भुगत भी रहे हैं। अच्छी बात यह है कि हमें यह एहसास हुआ है कि हमें हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ाना होगा। सिर्फ अस्पताल बना देना ही पर्याप्त नहीं हैं, हमें साथ-साथ सॉफ्ट इंफ्रा अर्थात योग्य मेडिकल स्टॉफ पर भी ध्यान देना होगा। सबसे जरूरी चीज है कि केंद्र और राज्य को सामंजस्य बिठाना होगा।

सवाल: सरकार और आरबीआई ने अर्थव्यवस्था में काफी लिक्विडिटी डाली है, लेकिन महंगाई काबू में नहीं आ रही। इसके लिए क्या होना चाहिए।

सच्चिदानंद शुक्ला: कठोर लॉकडाउन लागू होने से सप्लाई पर बुरा असर पड़ता है। सप्लाई में बाधा आने के चलते महंगाई बढ़ती है। पिछले साल भी कई उत्पादों में महंगाई बढ़ी। नीतियों की बात करें, तो आरबीआई ने इसे नजरअंदाज किया है। दूसरी लहर में डिमांड पर भी असर पड़ा है। अलग-अलग समय पर राज्यों में लॉकडाउन लगने से डिमांड में अचानक से कुछ राज्यों में वृद्धि हुई, लेकिन सप्लाई तो स्थिर ही रही। इसके कारण भी महंगाई बढ़ी हो सकती है। हमें महंगाई को कम करने के लिए नीतियां लानी चाहिए। कई देशों द्वारा अर्थव्यवस्थाओं में भारी लिक्विडिटी डालने से यह लिक्विडिटी कमोडिटी में जा रही है, इस कारण भी मेटल जैसी कुछ कमोडिटीज की कीमतों में वृद्धि हुई है।

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सवाल: ईंधन की कीमतों में वृद्धि से भी क्या महंगाई बढ़ी है।

सच्चिदानंद शुक्ला: ईंधन की कीमतों में वृद्धि से महंगाई पर असर पड़ता है। वैश्विक स्तर पर क्रूड ऑयल की कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल के करीब हैं। हमारे देश में केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोल-डीजल पर टैक्स वसूलती हैं। यह टैक्स सरकार को अच्छा-खासा राजस्व प्रदान करता है। सरकार को कोरोना काल में मुफ्त अनाज बांटने और स्वास्थ्य सेवाओं आदि पर खर्च के लिए इस टैक्स से मदद मिली। कोविड-19 महामारी का प्रभाव कम होने के बाद हम पेट्रोल-डीजल पर टैक्स में कटौती की उम्मीद कर सकते हैं।

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