न्यारा है गंगा पट्टी का बासमती

गंगा पट्टी में पैदा होने वाला बासमती जैसा चावल कहीं और नहीं होता है। इसी बात की लड़ाई अब परवान चढ़ने वाली है। गंगा पट्टी के बासमती के असल होने की मुहर जल्द ही लगने वाली है। जीआइ की लड़ाई से बासमती के लिए नई मुसीबत पैदा हो गई है।

By Shashi Bhushan KumarEdited By: Publish:Thu, 28 May 2015 09:21 AM (IST) Updated:Thu, 28 May 2015 10:17 AM (IST)
न्यारा है गंगा पट्टी का बासमती

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। गंगा पट्टी में पैदा होने वाला बासमती जैसा चावल कहीं और नहीं होता है। इसी बात की लड़ाई अब परवान चढ़ने वाली है। गंगा पट्टी के बासमती के असल होने की मुहर जल्द ही लगने वाली है। जीआइ की लड़ाई से बासमती के लिए नई मुसीबत पैदा हो गई है। मध्य प्रदेश के बासमती धान उगाने वालों के दावे को केंद्रीय वाणिज्य मंत्रलय ने खारिज कर दिया है। लेकिन, यह मुद्दा बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड में विचाराधीन है, जिस पर जल्द ही फैसला होने वाला है।

कृषि व प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास एजेंसी (एपीडा) बासमती चावल के लिए भौगोलिक चिन्ह (जीआइ) जल्द से जल्द पंजीकृत कराना चाहती है। ताकि बासमती चावल पर उसका अधिकार कायम रहे। लेकिन, पाकिस्तान के बासमती चावल उत्पादक संघ ने एपीडा के प्रयास को चुनौती दी है। वहीं घरेलू स्तर पर मध्य प्रदेश की चावल उत्पादक कंपनियों व किसानों के साथ कानूनी लड़ाई से इसमें देरी हो रही है।

एपीडा ने कहा कि जीआइ पंजीकरण को ‘राष्ट्रीय हित’ के तौर पर देखा जाना चाहिए। वजह यह है कि पाकिस्तान भी इसके लिए अपना दावा ठोंक रहा है। मध्य प्रदेश के बासमती धान को जीआइ रजिस्ट्री में शामिल करने को एपीडा ने बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड में चुनौती दी है। सवाल यह है कि क्या मध्य प्रदेश के बासमती में उत्तराखंड के मूल बासमती चावल के गुण हैं। इस तरह की कई अपीलें बोर्ड में विचाराधीन हैं, जिनमें से ज्यादातर पर फैसला फरवरी में ही आ गया था। बाकी मामलों में आगामी जुलाई के पहले सप्ताह में फैसला हो जाने की उम्मीद है।

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