दस राज्यों की उधारी में 50-425 फीसद तक का इजाफा, बिहार और यूपी की उधारी में गिरावट

आंध्र प्रदेश कनार्टक महाराष्ट्र तमिलनाडु जैसे औद्योगिक तौर पर ज्यादा विकसित राज्य ज्यादा संक्रमित हैं। लेकिन वह बाजार से काफी ज्यादा उधारी ले रहे हैं। (PC pixabay.com)

By Manish MishraEdited By: Publish:Fri, 04 Sep 2020 09:05 AM (IST) Updated:Fri, 04 Sep 2020 09:05 AM (IST)
दस राज्यों की उधारी में 50-425 फीसद तक का इजाफा, बिहार और यूपी की उधारी में गिरावट
दस राज्यों की उधारी में 50-425 फीसद तक का इजाफा, बिहार और यूपी की उधारी में गिरावट

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोविड-19 की मार ने अर्थव्‍यवस्‍था की कमर तो तोड़ी ही है, कोरोना से जूझने और इससे बाहर निकलने में राज्यों की सोच और व्यवहार को भी सामने लाकर रख दिया है। देश की अर्थव्‍यवस्‍था में ज्यादा योगदान देने वाले राज्यों की स्थिति ज्यादा खराब दिख रही है। आंध्र प्रदेश, कनार्टक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे औद्योगिक तौर पर ज्यादा विकसित राज्य ज्यादा संक्रमित हैं। लेकिन वह बाजार से काफी ज्यादा उधारी ले रहे हैं जो बताता है कि राजस्व संग्रह के मोर्चे पर इनकी चुनौती ज्यादा दुरुह है। लेकिन वह खर्च भी कर रहे हैं। जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों में उधारी कम हो रही है। 

कोविड के असर पर एसबीआइ की रिपोर्ट इकोरैप बताती है कि कम से कम दस ऐसे राज्य हैं जिन्होंने पिछले वर्ष के मुकाबले 50 से 425 फीसद तक ज्यादा कर्ज लिया है। सभी राज्यों ने 1 सितंबर, 2020 तक संयुक्त तौर पर 2,81,686 करोड़ रुपये की उधारी ली है जो पिछले वित्त वर्ष की 3 सितंबर, 2019 की अवधि के मुकाबले 49 फीसद ज्यादा है। बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, असम, हिमाचल प्रदेश, असम व अरुणाचल प्रदेश ऐसे राज्य हैं जो पिछले वर्ष से भी कम उधारी ले रहे हैं। 

चालू वित्त वर्ष में 1 सितंबर, 2020 तक बिहार ने पिछले वर्ष के मुकाबले 19 फीसद तो उत्तर प्रदेश ने 42 फीसद से कम उधारी ली है। पंजाब ने 18 फीसद तो हिमाचल प्रदेश ने 69 फीसद कम उधारी ली है। अब जबकि पूरे देश में जीएसटी, एसजीएसटी में इतनी कमी हो रही है तो इन राज्यों में कम उधारी लेने का एक ही मतलब यह है कि यहां खर्चे भी कम हो रहे हैं। जानकारों की मानें तो आर्थिक विकास व समाजिक विकास के मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों की तरफ से ज्यादा उधारी लेना उनकी सरकारों की तरफ से कोविड से निपटने में होने वाले खर्चे में बढ़ोतरी भी एक वजह है।

बताते चलें कि राजस्व संग्रह की कमी की वजह से केंद्र सरकार राज्यों को कंपनसेशन सेस का भुगतान भी नहीं कर पा रही है और यह केंद्र सरकार व राज्यों के बीच विवाद का एक बड़ा विषय है। ताजे आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल से अगस्त के दौरान 3.64 लाख करोड़ रुपये का कुल राजस्व संग्रह रहा है जो पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 29 फीसद कम है। सेस कलेक्शन भी पिछले वर्ष के मुकाबले 32 फीसद कम रही है। जीएसटी काउंसिल की बैठक में राज्यों को केंद्र की मदद से आरबीआइ से 2.35 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेने का प्रस्ताव किया गया है। गैर भाजपाई राज्यों ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया है। पहले से ही ज्यादा उधारी लेने वाले राज्यों के लिए नई उधारी लेना मुसीबत को बुलावा देने के समान है।

chat bot
आपका साथी