महंगे बिके टिकटों की एयरलाइनों को देनी होगी जानकारी

गर्मियों की छुट्टियों के दौरान यदि कोई एयरलाइंस महंगी दरों पर टिकट की बिक्री करती है तो उसे इसकी जानकारी सरकार को देनी होगी। इस बारे में डीजीसीए सभी एयरलाइंस को पत्र भेज रहा है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 06 May 2016 07:46 PM (IST) Updated:Sat, 07 May 2016 08:10 AM (IST)
महंगे बिके टिकटों की एयरलाइनों को देनी होगी जानकारी

नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। गर्मियों की छुट्टियों में एयरलाइनों की तरफ से ऊंचे किरायों पर टिकटों की बिक्री को नियंत्रित करने के लिहाज से सरकार ने कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। जल्द ही एयरलाइनों के लिए यह बताना अनिवार्य होगा कि उन्होंने हर महीने सबसे ऊंचे किराये पर कितनी सीट बेची। इस संबंध में एयरलाइन रेग्युलेटर नागरिक उड्डयन महानिदेशालय यानी डीजीसीए एयरलाइनों को चिट्ठी भेजने जा रहा है।

डीजीसीए अधिकारियों के मुताबिक, नयी कोशिश का मकसद हवाई किराये को लेकर स्पष्ट सोच तैयार करनी है। हालांकि उन्होंने साफ किया कि किराये को नियंत्रित करने या फिर कंपनियों की कमाई व्यवस्था में दखल देने की सरकार का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि किराये तय करने की पूरी आजादी एय़रलाइन कंपनियों की है और वो जारी रहेगी।

ताजा प्रस्ताव के तहत, डीजीसीए एयरलाइंस से 20 मार्गो के लिए सबसे ऊंचे किराये पर बेची गई कुल सीटों की जानकारी मांगेगी। इन मार्गो में दिल्ली-हैदराबाद, दिल्ली-पटना, मुंबई-दिल्ली, मुंबई-श्रीनगर, कोलकाता-चेन्नई, कोलकाता-पोर्ट ब्लेयर, बैंगलुरू-कोलकाता और बैंगलुरू-दिल्ली मुख्य रूप से शामिल हैं। एयरलाइनों को ये भी जानकारी देनी होगी कि सबसे ऊंचे किराये पर बेचे गए टिकट से हुई कमाई की, कंपनी की कुल कमाई में कितनी हिस्सेदारी है। इन जानकारी के आधार पर डीजीसीए हर महीने ये जानकारी सार्वजनिक करेगा कि सबसे ऊंचे और सबसे कम किराये पर कितने टिकट बेचे गए। ये जानकारी यात्रियों की संख्या से जुड़ी मासिक आंकड़ों का हिस्सा होगी।

नियमित टाइम टेबल के आधार पर उड़ान मुहैया कराने वाली तमाम एयरलाइनें हर महीने डीजीसीए को अपने किराये की विस्तृत तालिका सौंपती है। यही तालिका हर एयरलाइन को अपनी वेबसाइट पर भी लगानी होती है। इस तालिका में सबसे कम किराये से लेकर सबसे ऊंचे किराये तक का जिक्त्र होता है। तकनीकी भाषा में इस व्यवस्था को डायनमिक फेयर प्राइसिंग कहते हैं। इसमें जैसे-जैसे मांग बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे किराया बढ़ता जाता है। मांग के हिसाब से अलग-अलग फेयर बकेट यानी अलग-अलग किराया तय किया जाता है।

मसलन, दिल्ली से पटना की उड़ान के लिए पहली पांच सीटें 1500 रुपये की होंगी, उसके बाद 10 सीटें 2000 रुपये, फिर 20 सीटें 3000 रुपये पर और आगे इसीतरह ये सिलसिला बढ़ता जाएगा। यदि मांग ज्यादा है तो मुमकिन है कि ऊंचे किराये पर ज्यादा सीटें बिके। ये भी हो सकता है कि यदि मांग नहीं हो तो अंतिम समय में काफी कम किराये पर सफर करने का मौका मिल जाए। एयरलाइन कंपनियां एक ही रास्ते के लिए मांग के हिसाब से दर्जन भर से भी ज्यादा किराया तय करती हैं।

ये शिकायत आम है कि पर्व त्यौहार, गरमी या बड़े दिन की छुट्टियों या फिर लंबे सप्ताहांत के दौरान एय़रलाइने काफी ऊंचा किराया वसूलती है। संसद के दोनों सदनों में भी कई बार ये मामला उठा है और संसदीय समिति ने भी सरकार से किराये को नियंत्रित करने की बात कही। हालांकि डीजीसीए के अधिकारियों का कहना है कि जब तक किराया, महीने की शुरु में सौंपे गए फेयर शीट के हिसाब से सबसे कम और सबसे ज्यादा किराये के बीच है, तब तक एयरलाइनों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। साथ ही डीजीसीए नियमित तौर पर किराये पर नजर रखती है।

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