5जी स्पेक्ट्रम का बेस प्राइस कम रखे सरकार: CII

सीआइआइ का कहना है कि इस तरह की रेडियोवेव का बेस प्राइस ऊंचा रखने से दूरसंचार क्षेत्र का तेज विकास बाधित हो सकता है और जनता दूरसंचार सेवाओं से दूरी बना सकती है।

By Pawan JayaswalEdited By: Publish:Mon, 05 Aug 2019 09:04 AM (IST) Updated:Mon, 05 Aug 2019 09:04 AM (IST)
5जी स्पेक्ट्रम का बेस प्राइस कम रखे सरकार: CII
5जी स्पेक्ट्रम का बेस प्राइस कम रखे सरकार: CII

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। उद्योग जगत की संस्था सीआइआइ ने सरकार से 5जी स्पेक्ट्रम का बेस प्राइस कम रखने का अनुरोध किया है। सीआइआइ का कहना है कि इस तरह की रेडियोवेव का बेस प्राइस ऊंचा रखने से दूरसंचार क्षेत्र का तेज विकास बाधित हो सकता है और जनता दूरसंचार सेवाओं से दूरी बना सकती है।भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) ने सरकार को आगाह किया है कि चूंकि इस वक्त दूरसंचार कंपनियों का प्रति ग्राहक औसत राजस्व (एआरपीयू, उद्योग की भाषा में आरपू) कम है। लिहाजा 5जी स्पेक्ट्रम के लिए होने वाली आगामी नीलामी में भारतीय दूरसंचार कंपनियों की भागीदारी गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है।

यदि स्पेक्ट्रम का न्यूनतम स्वीकार्य मूल्य अधिक हुआ, तो ये भागीदारी और भी कम हो सकती है। सरकार को सौंपे ज्ञापन में सीआइआइ ने 5जी स्पेक्ट्रम की कीमत कम रखे जाने की मांग की है। स्पेक्ट्रम नीलामी इस वर्ष की अंतिम तिमाही में होने की संभावना है।ज्ञापन में सीआइआइ ने कहा कि है कि भारतीय दूरसंचार क्षेत्र ने बढ़त की रफ्तार के कारण वैश्विक मान्यता हासिल कर ली है। भारत में दरें कम होने के कारण दूरसंचार सेवाओं की पहुंच गरीबों तथा सुदूरवर्ती इलाकों तक हो गई है।

स्पेक्ट्रम के ऊंचे बेस प्राइस से इस बढ़त पर लगाम लग जाएगी तथा समाज का गरीब तबका दूरसंचार सेवाओं के उपयोग से कतराने लगेगा।मूल्य तय करने का आधार उपयुक्त नहीं: सीआइआइ ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि स्पेक्ट्रम के मूल्य तय करने का मौजूदा मॉडल (जिसमें कीमत का निर्धारण प्रति व्यक्ति, प्रति मेगा हट्र्ज के हिसाब से डालर में किया जाता है) भारतीय बाजार के लिए अनुपयुक्त है। इसकी वजह यह है कि यहां जनसंख्या बहुत अधिक है, और दाम बहुत कम है। इसलिए सीआइआइ ने इसके बजाय विभिन्न बाजारों में स्पेक्ट्रम की तुलना के लिए डॉलर/मेगा/राजस्व हट्र्ज अथवा डॉलर/मेगा हट्र्ज/जीडीपी मॉडल अपनाए जाने का सुझाव सरकार को दिया है।

सीआइआइ का कहना है कि भारत में जनसंख्या के अनुपात में राजस्व नहीं प्राप्त होता। नतीजतन मोबाइल आपरेटरों को अपेक्षाकृत कम नकदी आय हासिल होती है।इसके अलावा अंतिम नीलामी मूल्य पर निर्भरता केवल तभी काम करती है, यदि नीलामी प्रक्रिया में कोई गड़बड़ नहीं हो। टेलीकॉम जगत के नियामक ट्राई ने वैसे भी रिजर्व कीमत निर्धारित करने के लिए नीलामी मूल्यों को बढ़ाने का दृष्टिकोण इससे पहले कभी नहीं अपनाया है। कुछ मामलों में ट्राई ने पिछली नीलामी में बाजार मूल्य अधिक होने के बावजूद रिवर्ज प्राइस घटाया है।

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