क्लोरोक्विन के लिए अमेरिका, ब्राजील समेत ढ़ाई दर्जन देशों ने भारत से किया आग्रह, कोरोना के खिलाफ लड़ाई में कारगर साबित हो रही है यह दवा
पिछले शनिवार भारत सरकार ने इसके निर्यात को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। दुनिया में जैसे जैसे यह बात फैलती जा रही है कि मलेरिया में इस्तेमाल होने वाली दवा हाइड्राक्सी क्लोरोक्विन कोरोना वायरस से पीडि़त मरीजों में भी काम करती है वैसे वैसे इसकी मांग बढ़ती जा रही है। अभी तक 30 देश भारत सरकार से इसकी आपूर्ति की मांग कर चुके हैं। सामान्य परिस्थितियों में भारत की दो कंपनियां ही इन सभी देशों की मांग करने के लिए काफी हैं लेकिन कोरोनावायरस के प्रसार को देखते हुए सरकार कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती। पिछले शनिवार भारत सरकार ने इसके निर्यात को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है।
अमेरिका, ब्राजील, नेपाल जैसे देशों की मांग पर सरकार देश में सभी पक्षों से विमर्श कर रही है कि क्या कुछ विशेष परिस्थितियों में इसका निर्यात किया जा सकता है या नहीं। सरकारी अधिकारी व दवा बनाने वाली कंपनियां यह स्वीकार कर रही हैं कि आनन फानन में उत्पादन भी बढ़ाना संभव नहीं है।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दो दिन पहले पीएम नरेंद्र मोदी के साथ हुई टेलीफोन बातचीत में क्लोरोक्विन दवा का निर्यात करने का आग्रह किया गया था। बाद में ट्रंप ने बताया भी कि, 'हमने मोदी से मलेरिया के इलाज में काम ने वाली दवा हाइड्राक्सी क्लोरोक्विन दवा का निर्यात खोल दे। भारत में यह दवा बड़े पैमाने पर बनती है। यह दवा कोरोना के इलाज में भी कारगर है।
मोदी ने कहा है कि वह गंभीरता से विचार करेंगे।' ट्रंप के इस बयान के कुछ ही घंटे बाद ब्राजील के राष्ट्रपति जे एम बोलसोनारो ने भी ट्विट कर कहा कि, 'उनकी भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी से बात हुई है और भारत से हाइड्राक्लीक्लोरोक्विन की आपूर्ति जारी रखने का आग्रह किया गया है। हम लोगों की जान बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।'' इन देशों के अलावा दूसरे यूरोपीय व एशियाई देशों ने भी इसकी मांग की है। इसमें पड़ोसी देश भी शामिल है।भारत में कोरोनावायरस आने वाले दिनों में किस तरह का रुख दिखाएगा, इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। यही वजह है कि भारत सरकार ने पहले इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाया और उसके बाद 4 अप्रैल, 2020 को एक नई अधिसूचना जारी कर यह सुनिश्चित किया कि किसी भी तरह से इसका निर्यात नहीं हो सके।
इसमें साफ किया गया कि जिन कंपनियों ने पहले निर्यात के लिए एडवांस ले रखा है वह भी ऐसा नहीं कर सकेंगी। साथ ही स्पेशल इकोनोमिक जोन से भी इसका निर्यात नहीं हो सकेगा। सरकार की पहली वरीयता यह है कि घरेलू स्टाक पर्याप्त रहे ताकि समय पर इसकी कमी न हो। सरकार अभी सही तरीके से आकलन करने में जुटी है कि भारत में इस दवा का उत्पादन क्षमता कितना है और आपातकालीन हालात में इसे कितना बनाया जा सकता है।दवा निर्माण से जुड़े उद्योग सूत्रों का कहना है कि भारत में मोटे तौर पर चार कंपनियां इपका, मंगलम, वाइटल हेल्थ केयर और कैडिला इसे बनाती हैं।
इसमें मुख्य तौर पर 47 डाईक्लोरोक्वीनोलिन नाम का कच्चा माल लगता है और इसे बनाने के लिए ईएमएमई नाम की एक अलग उत्पाद का उपयोग होता है। ईएमएमई के लिए भारत मुख्य तौर पर चीन पर निर्भर रहता है। चीन से आपूर्ति अभी प्रभावित है और कंपनियां कोरोनावायरस की वजह से चीन से माल मंगवाने को लेकर अभी उत्साहित नहीं है। मोटे तौर पर एक बार में भारत में संयुक्त तौर पर क्लोरोक्विन बनाने के लिए 60-80 टन कच्चा माल स्टाक है जिससे इसकी 20 करोड़ टैबलेट बनाये जा सकते हैं। आम दिनों में यह भारत के साथ ही दुनिया की जरुरत को भी पूरा करने के लिए काफी है। लेकिन अभी तमाम देशों की मांग पूरी करने में भारत भी सक्षम नहीं है। साथ ही