सरकारी बैंकों को एक और झटका

भारतीय बैंकों के इतिहास में पहली बार प्राइवेट बैंकों ने सरकारी बैंकों को कर्ज के मामले में पीछे छोड़ दिया।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Publish:Mon, 06 Jun 2016 09:38 PM (IST) Updated:Mon, 06 Jun 2016 10:12 PM (IST)
सरकारी बैंकों को एक और झटका

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। फंसे कर्ज (एनपीए) की बीमारी व बढ़ते घाटे और बदहाल ग्राहक सेवा के लिए बदनाम सरकारी बैंकों को अब एक बड़ा झटका लगा है। भारतीय बैंकिंग के इतिहास में पहली बार निजी बैंकों ने नए कर्ज के मामले में सरकारी बैंकों को पीछे छोड़ दिया है। निजी बैंकों की नए कर्ज की राशि सरकारी बैंकों के मुकाबले डेड़ गुना ज्यादा तेजी से बढ़ी है। यह इस बात का प्रमाण है कि सरकारी बैंकों का कारोबार सिमट रहा है। अगर हालात नहीं सुधरे तो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और गहरे संकट में फंस सकते हैं।

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फंसे कर्ज की वजह से ही पिछले वित्त वर्ष में सरकारी बैंकों को 18,000 करोड़ रुपये घाटा हुआ है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को सरकारी बैंकों के प्रदर्शन की सालाना समीक्षा के लिए बैठक बुलाई थी, जिसमें ये चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।

सरकारी बैंकों का लोन चार फीसद तो निजी बैंकों का 25 फीसद बढ़ा

सूत्रों के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने मार्च, 2016 तक कुल 51.16 लाख करोड़ रुपये कर्ज दिया। जबकि मार्च, 2015 में उनकी ओर से दिए गए कर्ज की राशि 49.17 लाख करोड़ रुपये थी। इस तरह सरकारी बैंकों के लोन में मात्र चार प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसके उलट निजी क्षेत्र के बैंकों ने मार्च, 2015 तक 14.37 लाख करोड़ रुपये कर्ज दिया था। यह आंकड़ा मार्च, 2016 में बढ़कर 17.91 लाख करोड़ रुपये हो गया। इस तरह निजी क्षेत्र के बैंकों के कर्ज में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

सरकारी बैंकों ने वितरित किया दो लाख करोड़ रुपये का नया लोन

सरकारी बैंकों के वितरित कर्ज में एक साल में मात्र दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई। जबकि इसी दौरान निजी क्षेत्र के बैंकों का नया कर्ज साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये रहा। इसका साफ मतलब है कि आम ग्राहक और व्यवसाय जगत कर्ज लेने के लिए अब निजी बैंकों पर ज्यादा भरोसा कर रहा है। हालात यह है कि छह सरकारी बैंकों की कर्ज वृद्धि नकारात्मक रही है। भारतीय स्टेट बैंक व पंजाब नेशनल बैंक ही दो ऐसे बैंक हैं, जिनकी ऋण राशि दहाई अंक में बढ़ी है।

फंसे कर्ज ने तोड़ी कमर

सूत्रों ने कहा कि फंसे कर्ज की बीमारी ने सरकारी बैंकों की कमर तोड़ दी है। हाल यह है कि मार्च, 2016 में सरकारी बैंकों का सकल एनपीए बढ़कर 4.76 लाख करोड़ रुपये हो गया है। जबकि मार्च, 2015 में यह 2.67 लाख करोड़ रुपये थीं। मार्च, 2016 में सकल एनपीए और अन्य फंसे कर्ज को मिलाकर सरकारी बैंकों की कुल 7.33 लाख करोड़ रुपये की राशि फंसी है। मार्च, 2015 में यह राशि 6.62 लाख करोड़ रुपये थी।

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सरकारी बैंकों के फंसे कर्ज बढ़ते जा रहे हैं। उसे वसूलने के लिए बैंकों के प्रयास कुछ खास कारगर नहीं रहे हैं। सभी सरकारी बैंकों ने वित्त वर्ष 2015-16 में कुल 1.28 लाख करोड़ रुपये का फंसा कर्ज वसूला। यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2014-15 में 1.27 लाख करोड़ रुपये था। साल दर साल एनपीए की राशि तेजी से बढ़ रही है। हालत यह है कि सरकारी बैंकों का परिचालन खर्च, उनके ऑपरेटिंग प्रॉफिट से भी कम हो गया है। फंसे कर्ज की राशि इसी तरह बढ़ती रही तो बैंकों की पूंजी और मुनाफा दोनों पर बुरा असर पड़ेगा। बैंकों की आय कर्ज वितरण पर ही निर्भर है। ऐसे में बैंकों की आमदनी नहीं बढ़ी, तो कर्मचारी लागत व प्रशासनिक खर्चो का बोझ बैंकों पर बढ़ेगा।

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