उत्पादन से निर्यात की श्रृंखला को बाधामुक्त बनाने की रहेगी चुनौती, कानूनी प्रावधानों को किसानों तक पहुंचाना भी अहम

बड़ी मुश्किल छोटे किसानों की है जिनकी पहुंच मंडियों तक कभी नहीं रही। उनके यहां आसपास के छोटे व्यापारी ही बड़े आढ़तियों की एवज में उपज की खरीद करते रहे हैं। PC Pexels

By Pawan JayaswalEdited By: Publish:Sat, 19 Sep 2020 11:08 AM (IST) Updated:Sat, 19 Sep 2020 06:42 PM (IST)
उत्पादन से निर्यात की श्रृंखला को बाधामुक्त बनाने की रहेगी चुनौती, कानूनी प्रावधानों को किसानों तक पहुंचाना भी अहम
उत्पादन से निर्यात की श्रृंखला को बाधामुक्त बनाने की रहेगी चुनौती, कानूनी प्रावधानों को किसानों तक पहुंचाना भी अहम

नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। किसानों को मंडी की बाध्यता से मुक्ति दिलाने की राह संसद से तो निकल आएगी लेकिन इसे जमीन पर उतारने की चुनौती संभवत: ज्यादा जटिल होगी। संसद में दिखे राजनीतिक विरोध के बाद केंद्र को जहां राज्य सरकारों को साधना होगा वहीं जमीन पर किसानों को जागरुक करना सबसे अहम होगा।

कृषि उत्पादन से निर्यात की पूरी लंबी श्रृंखला को आसान बनाने और बाधामुक्त करने की चुनौती अभी बरकरार है। इसके बगैर इस क्षेत्र में निजी निवेशकों का आना संभव नहीं होगा। इसमें किसान सबसे बड़ा पक्षकार है, जिसे जागरुक बनाने के लिए उसे कानूनी प्रावधानों से पूरी तरह परिचित कराना होगा। कई राज्यों में किसान संगठनों का विरोध प्रदर्शन हो रहा है। उन्हें जिन मुद्दों को लेकर भ्रमित किया जा रहा है उसे लेकर सरकार की ओर से उच्च स्तर पर सफाई जरूर दी गई है। लेकिन जमीनी स्तर पर विस्तृत जागरुकता अभियान चलाने की जरूरत पड़ेगी।

कृषि उपज की खरीद फरोख्त पर किसानों और व्यापारियों के बीच के परंपरागत रिश्तों की जगह नए समीकरण बनने वाले हैं। बड़े उपभोक्ता, निवेशक, प्रोसेसर, कंपनियां, एनजीओ और छोटे-बड़े निर्यातकों से सीधा कारोबारी संबंध बनाना होगा। उनके खेत व खलिहान तक पहुंच बनाने वाले इन पक्षकारों को लेकर छोटे किसान बिदक भी सकते हैं। ऐसे समय में राज्य प्रशासन के निचले स्तर के कर्मचारियों की भूमिका महत्त्‍‌वपूर्ण हो जाएगी।

सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की प्रतिबद्धता लगातार जताई जा रही है। लेकिन कितनी फसलों की खरीद के लिए यह प्रतिबद्धता है। फिलहाल तो मुश्किलन आधा दर्जन फसलों की सरकारी खरीद ही हो पाती है। बाकी फसलों के मूल्य का निर्धारण मंडियों के व्यापारियों के भरोसे ही होता है। जिन फसलों की खरीद में सरकार सीधे हस्तक्षेप करती है, उसका मूल्य एमएसपी के आसपास पहुंच जाता है।

नजीर के तौर पर चालू सीजन में मक्के का एमएसपी जहां 1850 रुपए प्रति क्विंटल है, लेकिन खुले बाजार में उसकी कीमत 1100 से 1300 रूपए प्रति क्विंटल के बीच ही झूल रही है। किसानों को इस तरह की गंभीर समस्याओं से निजात दिलाने की सख्त जरूरत है। संभव है नया कानून इसमें सहायक साबित हो सके। दरअसल सरकारी तौर पर बमुश्किल दो दर्जन फसलों का एमएसपी निर्धारित है। इनमें से केवल गेहूं, चावल, गन्ना और कपास के अलावा छिटपुट जगहों पर इक्का-दुक्का फसलों की सरकारी खरीद होती है।

सबसे बड़ी मुश्किल छोटे किसानों की है, जिनकी पहुंच मंडियों तक कभी नहीं रही। उनके यहां आसपास के छोटे व्यापारी ही बड़े आढ़तियों की एवज में उपज की खरीद औने-पौने दामों पर करते रहे हैं। मंडियों के बड़े व्यापारियों के इस तरह के नेटवर्क से उन्हें मुक्त कराना एक बड़ी जिम्मेदारी होगी।

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