संगति के अनुरूप जीवन में चढ़ता है रंग

वैशाली। नगर के अक्षयवट राय स्टेडियम में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के तत्वावधान में आयोजित पांच दिवसीय श्री रामचरितमानस एवं गीता ज्ञान यज्ञ का भव्य आयोजन किया जा रहा है। यज्ञ के दूसरे दिन आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी अमृता भारतीजी ने सत्संग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जीवन में संगति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मनुष्य जैसा संग करता है वैसे ही उसपर रंग चढ़ता है। दुर्योधन शकुनी का संग करके आजीवन दुखी व पराजित हुआ एवं अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण का संग करके विजयश्री को हासिल किया।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 21 Nov 2018 12:32 AM (IST) Updated:Wed, 21 Nov 2018 12:32 AM (IST)
संगति के अनुरूप जीवन में चढ़ता है रंग
संगति के अनुरूप जीवन में चढ़ता है रंग

वैशाली। नगर के अक्षयवट राय स्टेडियम में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के तत्वावधान में आयोजित पांच दिवसीय श्री रामचरितमानस एवं गीता ज्ञान यज्ञ का भव्य आयोजन किया जा रहा है। यज्ञ के दूसरे दिन आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी अमृता भारतीजी ने सत्संग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जीवन में संगति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मनुष्य जैसा संग करता है वैसे ही उसपर रंग चढ़ता है। दुर्योधन शकुनी का संग करके आजीवन दुखी व पराजित हुआ एवं अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण का संग करके विजयश्री को हासिल किया। उन्होंने संत सहजोबाई की एक पंक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि

सहजो साधु संग से काग हंस हो जाए, तज के भक्ष अभक्ष को मोती चुग चुग खाए।

उन्होंने कहा कि बुरे संगति को प्राप्त कर मनुष्य बिगड़ जाता है परंतु कितना भी बिगड़ा हुआ मनुष्य क्यों न हो अगर साधु की संगति को प्राप्त कर ले तो उसके जीवन में परिवर्तन आता है। उन्होंने अंगुलीमाल के जीवन का उदाहरण देते हुए कहा कि अंगुलीमाल जैसे डाकू भी गौतम बुद्ध का सानिध्य पाकर जीवन में बदलाव आया। उन्होंने सत्संग को परिभाषित करते हुए कहा कि जो हम कथा पंडाल या टेलीविजन में सुनते हैं यह सत्संग नहीं है। सत्संग दो शब्दों के मेल से बना है। सत्य और संग बराबर सत्संग अर्थात सत्य यानि परमात्मा का संग करना ही सत्संग है।

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