जहां भक्ति है वहीं रहते हैंभगवान : मोरारी बापू

खरका रोड स्थित रामकथा स्थल मिथिलाधाम में रामकथा के सातवें दिन शुक्रवार को मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने कहा कि जनकपुर में आम्रकुंज में ठहरे मुनि विश्वामित्र एवं राम-लक्ष्मण को ठहराने के लिए सुंदर भवन का चुनाव किया गया।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 13 Jan 2018 02:23 AM (IST) Updated:Sat, 13 Jan 2018 02:23 AM (IST)
जहां भक्ति है वहीं रहते हैंभगवान : मोरारी बापू
जहां भक्ति है वहीं रहते हैंभगवान : मोरारी बापू

सीतामढ़ी। खरका रोड स्थित रामकथा स्थल मिथिलाधाम में रामकथा के सातवें दिन शुक्रवार को मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने कहा कि जनकपुर में आम्रकुंज में ठहरे मुनि विश्वामित्र एवं राम-लक्ष्मण को ठहराने के लिए सुंदर भवन का चुनाव किया गया। एक सुंदर भवन वह जहां सियाजुल सीता रहती है। लेकिन जहां से सिया हट जाए वहां राम कैसे रह सकते हैं। जिस स्थान से भक्ति निकल जाए वहां भगवान कैसे जाएंगे। इसलिए दूसरे सुंदर भवन में मुनि विश्वामित्र एवं राम-लक्ष्मण को ठहराया गया। जनकपुर में उनका दूसरा दिन था। उस भवन के बाहर एक बड़ा गेट लगा था। मिथिला के बच्चों को जब पता चला कि रघुकुल के दो राजकुमार आए हैं तो उसे देखने गेट पर जमा हो गए थे। लेकिन गेट बंद था। बालक ब्रह्म रूप होते हैं। राम उनसे मिलने को व्याकुल हो उठे। उन्होंने एक योजना बनाई। लेकिन भवन से बाहर जाने के लिए गुरु से आज्ञा लेना जरूरी थी। तब राम पहुंचे गुरु विश्वामित्र के पास और कहा भगवन लक्ष्मण को जनकपुर घुमने की इच्छा है। वह जनकपुर देखना चाहता है। गुरु ने कहा तो वह क्यों नहीं कहता है तुम क्यों कह रहे हो। श्री राम ने कहा उसे कहने में थोड़ा संकोच हो रहा है और डर भी रहा है। गुरु मन ही मुस्कुराए और कहा कि तो ठीक है जाओ लक्ष्मण। लेकिन राम ने सोचा ऐसे तो केवल लक्ष्मण जा पाएगा। तब उन्होंने फिर गुरु से कहा भगवान मैं उसे घुमा लाता हूं उसने पहले कभी जनकपुर देखा नहीं है। गुरु मुस्कुराए और कहा तो तुम यहां पहले भी आए थे क्या, तुम्हारा जनकपुर देखा हुआ है। भगवान राम कहते हैं आगे और न कहिए कुछ पर्दे में रहने दीजिए। गुरु भी मुस्कुराए भगवान की इस लीला पर। कहा ठीक है जाओ देखता तो बहाना है। गुरु की आज्ञा मिलते ही राम-लक्ष्मण दोनों भाई निकल पड़े। राघव को देखते हीं बच्चे हर्षित हो उनसे मिल और हाथ पकड़ कर नगर भ्रमण कराने चल पड़े। कोई कहता यह मंदिर है, यह चौक है और यह तालाब है। रास्ते में इन दोनों भाई को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है। लेकिन ज्ञानी, विद्वजन जानते हुए उनसे परिचय प्राप्त नहीं करते वे दूरी बनाए रखते हैं। लेकिन बच्चे तो राघव का हाथ पकड़-पकड़ कर पूरा नगर घुमाते जा रहे हैं। ज्ञानी पुरुष व्याख्या में उलझे रहते हैं और वे भगवान के पास नहीं पहुंच पाते। लेकिन बच्चे सीधे भगवान के पास पहुंच जाते हैं। बच्चे ब्रह्म का रूप हैं। मिथिला रसमयी भूमि है । इसलिए पुरुषों को पूरी बात पता नहीं लेकिन वहां की स्त्रियों को सब पता चल गया कि रघुकुल के दो राजकुमार आए हैं धनुष यज्ञ देखने। स्त्रियां भक्ति की रूप है। इसलिए उन्हें पता चल गया कि कोई मतवाला आया मेरे द्वार। उधर, सीया की सखियों को भी पता चल गया है कि रघुकुल के दो राजकुमार आए हैं। वह सीता से कहती है दो राजकुमार आएं हैं। राम-लक्ष्मण के रास्ते में फूल बरसा रही है। इसी दौरान एक सयानी सखी ने भगवान राम के बारे में कहा माना का तुम बहुत सुंदर हो लेकिन हमारी सीया को देखना उसकी सुंदरता का वर्णन नहीं। सखियां घरों की छतों से फूल फेंकती है यानी सुमन फेंकती है। राम-लक्ष्मण बालकों के साथ नगर भ्रमण के दौरान जिस रास्ते से जा रहे उसी रास्ते में एक मकान में नई नवेली बहू भी झरोखे से राम को देख कर उसमें खो गई। इसी बीच उसकी सास मंदिर से पूजा कर लौट आती है और बहू को झरोखे से बाहर देखते हुए कहती है बहू सड़क पर इतने लोग हैं बड़े-बुजुर्ग हैं, लड़के हैं और तुम घुंघट उठा कर सड़क पर देख रही हो, कोई तुम्हें देख लेगा तो। बहू जैसे तंद्रा से जगी और कहा मां जी सब लोग तो राम का चेहरा देख रहे हैं सभी तो उसमें खो गए हैं ऐसे में मेरा चेहरा कौन देखेगा। नगर भ्रमण करते-करते शाम ढलने को आई तो राम को याद आई कि संध्या वंदन का समय होने वाला है। तब दोनों भाई वापस आवास स्थल पर लौट आए। संध्या वंदन, भोजन के बाद ज्ञानियों संतों के साथ कुछ देर सत्संग हुआ और रात्रि विश्राम करते हैं। सोने से पहले राम, गुरु विश्वामित्र का चरण दबा रहे हैं। जिनके चरण कमल के लिए साधु, संत, महात्मा तपस्या करते हैं वे स्वयं गुरु के चरण दबा रहे हैं।

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