यह धर्म बचाने की नहीं, तिरंगा बचाने की लड़ाई

सीतामढ़ी। जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने मेहसौल आजाद चौक स्थित ईदगाह में चल रहे एनआरसी सीएए व एनपीआर के विरोध में चल रहे धरना प्रदर्शन में शामिल हुए।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 06 Feb 2020 12:07 AM (IST) Updated:Thu, 06 Feb 2020 06:16 AM (IST)
यह धर्म बचाने की नहीं, तिरंगा बचाने की लड़ाई
यह धर्म बचाने की नहीं, तिरंगा बचाने की लड़ाई

सीतामढ़ी। जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने मेहसौल आजाद चौक स्थित ईदगाह में चल रहे एनआरसी, सीएए व एनपीआर के विरोध में चल रहे धरना प्रदर्शन में शामिल हुए। धरना को संबोधित करते हुए कहा कि यह लड़ाई किसी एक धर्म की नहीं है, बल्कि तिरंगे को बचाने की लड़ाई है। संविधान को बचाने के लिए लड़ाई है, इस आंदोलन में दलित पिछड़े अति पिछड़े को साथ मिलकर लड़ना होगा। दिल्ली के जामिया में गोडसे के चेले ने गोली चला कर यह साबित कर दिया कि सरकार के मंत्री ने कहा गोली मारो। कल होकर गोली चल जाती है। जामिया, जेएनयू, एएमयू जैसे यूनिवर्सिटी में सिर्फ मुसलमान के बच्चे ही नहीं पढ़ते, बल्कि हर मजहब के बच्चे पढते हैं । बच्चों को गोली लगी,बच्चों के पैर टूटे हाथ टूटे। जामिया कैंपस मे घुस कर पुलिस बच्चों को पीटती है, वही जेएनयू मे नकाबपोश गुंडों को खुली छूट दे रखी थी। इसका जवाब सरकार को देना पड़ेगा। धरने पर बैठे आंदोलनकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि एन आर सी लागू नहीं हो सकता,जब तक पप्पू यादव की सांसे चल रही है। आखिरी दम तक देशवासियों के लिए पप्पू यादव अपनी जान दे देगा,मगर संविधान और देशवासियों पर आंच नहीं आने देगा। मौके पर जाप के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष राघवेंद्र सिंह कुशवाहा, पार्टी के जिला अध्यक्ष सैयद एहतेशाम उल हक,प्रदेश महासचिव महेंद्र सिंह यादव, प्रदेश सचिव अवध किशोर यादव, मीडिया प्रभारी कामेश्वर सिंह कुशवाहा, युवा जिलाध्यक्ष रजनीश यादव, मायाशंकर यादव, दिलीप खिरहर, ईशा अंसारी, जुनैद आलम, अल्पसंख्यक एकता मंच जिलाध्यक्ष मुर्तुजा, मदरसा रहमानिया मेहसौल के अध्यक्ष अरमान अली, प्रो. गौहर सिद्दीकी, हाजी अब्दुल्लाह रहमानी,कलीमुल्लाह रहमानी,बशारत करीम गुलाब, मुखिया हाशिम, मुखिया जिलानी, आरजू, जमीर, अलीमुद्दीन, सिफ्फत हबीबी, अफरोज आलम, जकाउल्हा, अशरफ़, इरशाद अशरफ़, अनवारूल हक, जफीर समेत सैकड़ों महिला-पुरुष मौजूद थे।

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